कुछ दिल की बातें
इस दुनिया की रीत में इतनी ,तपिश सी क्यूँ है|
दिल की गहराइयों में इतना दर्द सा क्यूँ है
बेबसी ,बेताबी और बेचैनी का आलम क्यूँ है ||
अपना सा हर शख्स ,परछाईं सा पराया क्यूँ है
जिसको भी माना अपना,वही इतना बेगाना सा क्यूँ है ||
हर कोई अपने ही वास्ते ,इस रिश्ते को जीता क्यूँ है ||
आज हर घर में रिश्तो का गुलशन सा ,क्यूँ नहीं है
जो बांध सके सबको गुलदस्ते में,वो माली क्यूँ नहीं है ||पर हर कोई बाहर की आँधियों से , लिपटा सा क्यूँ है ||
अपने घर के आँगन में मांगी थी ,धूप छावं जीवन की
जिन राहों पर बिछने थे ,गुलशन के फूल कलियाँ
उन राहों से चुन चुन के कांटे ,मै हटा रही क्यूँ हूँ ||
मुश्किल से मैंने खुद को ,मुश्किल से निकला था
आगे की मुश्किलों से .मै दामन बचा रही सी क्यूँ हूँ ||
अनु
अनु
37 comments:
बहुत सुंदर रचना,आभार.
बहुत बढ़िया ||
बधाई ||
बहुत ही खुबसूरत रचना....
बढ़िया अभिव्यक्ति अच्छा प्रयास !
शुभकामनायें !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..शुभकामनाएँ
भावपूर्ण रचना ..इस क्यों है के जवाब ही तो नहीं मिलते .
सुंदर कविता
लेकिन इन प्रश्नें का जवाब असंभव है
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 26-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
प्रश्नों के उत्तर मुश्किल है ,इसी को जीवन कहते हैं भावों की सुंदर अभिव्यक्ति ,
पाठकों के दिल तक पहुंच रही हैं बातें...
बधाई।
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आप चलेंगे इस महाकुंभ में...?
...खींच लो जुबान उसकी।
प्रश्न गंभीर हैं।
वाह बहुत ही खूबसूरत :)
एकदम अलग अंदाज़ में आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा.
बहुत बढ़िया.
rajiv kumar to me
मैं तुम्हारे ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं कर पा रहा हूँ,इसलिए यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ .इसे अपने ब्लॉग पर डाल देना.
राजीव
"इस दुनिया की रीत में इतनी ,तपिश सी क्यूँ है|
हर कोई अपने ही वास्ते ,इस रिश्ते को जीता क्यूँ है"
ये जीवन है,इस जीवन का यही है रंग-रूप. उत्तर में ही प्रश्नों की तलाश करती,मन की बेचैनी को शब्द-शरीर देती एक सुन्दर रचना .
बहुत बढ़िया.
दुनिया की रीत पर प्रश्न उठाती एक सार्थक अभिव्यक्ति।
मूल्य बदल रहे हैं ... आस्थाएं बदल रही हैं ... अपने आप की लिए जीना चाहते हैं सब ... संवेदनाएं है बहुत सी इस लाजवाब रचना में ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाओं सहित
बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन !
tum jo itna muskura rahe ho kya gum hai jise chhipa rahe ho kuch kuch wasa wasa
जीवन के भंवर में गोते खाते कई प्रश्नों के उत्तर ढूंढती सार्थक रचना
kya baat hai....this is very beautiful...
सुन्दर अभिव्यक्ति.... सार्थक कथन...
(क्षमा सहित...प्रश्न में प्रश्नवाचक क्यूँ नहीं...?):))
सादर....
दिल की बातें जुबां पे आईं, लेखनी से सजा दिया। अपने ही बेगाने बनकर शायद हमको है "सज़ा" दिया॥ बहुत ही सुंदर मार्मिक अभिव्यक्ति…बहुत बहुत बधाई।
waah bahut umda . dil ko chu gayi ...........
aabhar
ye kyun ka koi jabab nahi:):)
बहुत सुंदर रचना है।
आसान से शब्दों को संजोकर पूरी माला बना दी आपने, जिसमें सुंदरता भी है, खुशबू भी है और आकर्षण भी।
क्या कहने..
बहुत सुंदर रचना है।
आसान से शब्दों को संजोकर पूरी माला बना दी आपने, जिसमें सुंदरता भी है, खुशबू भी है और आकर्षण भी।
क्या कहने..
apne ghar ke aangan me mangi thi maine dhup chav jivan ki...par har koi bahar ki aandhiyo se lipta kyu hai..
wahhhh bahut badhiya kaha.annu
anju,
ajkal net se door hoon, shadi kee taiyari men lagi hoon isaliye padh aur comment kuchh bhi nahin kar pa rahi hoon.
ye gazal padhi bahut sundar likhi hai, kuchh anuttarit prashon se ye prashna khud kabhi uttar nahin khoj pate hain aur ham har kisi se inake uttar mangate hai lekin parinam to siphar hi nikalata hai.
--Rekha srivastava
उलझनों को उपयुक्त अभिव्यक्ति दी है आपने.
आप लोग अपना ब्लाग लाक्ड कर लेते हो । प्लीज ये गजल ब्लाग समीक्षा हेतु golu224@yahoo.com पर भेज दें ।
गहन रचना.
अशोक अरोरा
इस दुनिया की रीत मैँ इतनी, इतनी तपिश सी क्युँ है...
हर कोई अपने ही वास्ते, इस् रिश्ते को जीता क्युँ है ....
ज़िदगी का एक कटू सत्य् .....रचना..लाजवाब है.....ज़िन्दगी के अनसुलझे सवालोँ से..परिपूर्ण...
आपकी कविता के भाव सहज एवं सुंदर होने के साथ-साथ मन को भी एक असीम आनंद की अनुभूति से दोलायमान कर जाते हैं । पोस्ट पर आना अचछा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
एक अच्छी और गहन रचना. की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
sundar chitra ke sath bahut hi acchi rachana.
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