एक अबोध बचपन
एक धीमा बचपन
जो खुद में ढूंढता है
एक मासूम बच्चा
जिसका कोई उत्तर नहीं ...
मन का वो बच्चा जो
भागता है ,
नदी के बहाव के साथ साथ
कहीं दूर तक
बिन सोचे कि
ये कौन दिशा जाएगी
और वो दौड़ता
चला गया
साइकिल के पीछे
अपने कदमो की
गति के साथ
बिन अपने कदमो की
मिथ्या को पहचाने .....
बच्चे का मुखौटा बदला
उसने अपने 'स्व ' से
खिसकना बंद किया
ढांचा स्थिर हुआ
अचानक उसके चेहरे से
एक अजनबी चेहरा
प्रगट हुआ ...
जो क्रूर था ..अपनों
और गैरों के लिए
कुछ कठोर ,कुछ निर्दयी
कुछ अनजान ,कुछ परेशान सा
अपने ही वक़्त से
उसके मन का सरोवर
उसका ही कठोर ,
छिपा हुआ जलपुंज उसका
अपने ही
दर्प से जल रहा था ...
बच्चे का मुखौटा
फिर से बदला
वो अपने 'स्व 'के साथ
फिर से स्थिर हुआ
नयनो में अब मौन
की भाषा थी ....
आहट ,जर्जर ह्रदय था
उसने जीवन में ..
तब उसने
संतोष पाने का संकल्प किया
जब अपनों ने भी साथ छोड़ दिया
किसने उसे सुना ?
किस आवाज़ ने उसका उत्तर दिया ?
वो चीखा ...और किसी को
इसका पता नहीं चला ..
अकेलपन का भयानक चक्र
जब ऊपर उठा
तब....उसकी वापिसी हुई
एक अबोध बचपन
जो खुद में ढूंढता है
एक मासूम बच्चा
हमेशा ही अपने भीतर
एक अबोध बचपन .......
अनु ...
अनु
35 comments:
पूरी ज़िंदगी मन में एक अबोध बच्चा रहता है ..वक्त बदल जाता है ..बचपन से बुढ़ापा आजाता है .. ज़िंदगी के सभी दृश्यों का सटीक वर्णन किया है .. अच्छी प्रस्तुति
sach...hraday machal gaya...bachpan ki yad dila di annu.. aur aaj kabhi vo bachpan dhundhti bhi hu...
khud me khud ki talash ... masumiyat kee talash
bahut achcha likhti hai aap annu ji
http://harsinngar.blogspot.com/
वाह, बहुत सुंदर
sach me... ab tak apne andar ke abodh bachche ko dhundhte hi rah gaye..:) masumiyat chali gayee, par wo bachpan wo dhul dhusrit maidan, wo rona chikkhna.........sab abhi bhi kahin saheja hua hai:)
anju!! simply superb!!
सुन्दर कविता.. अबोध मन में ईश्वर रहता है..
वाह बहुत खूब
नीरज
वाह बहुत खूब
नीरज
आपकी इल उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार केचर्चा मंच पर भी की जा रही है! सूचनार्थ!
utkrast rachna....
ati sundar rachana....
अनु जी, आपकी सुन्दर रचना गहन भाव संजोये है.
अबोध बचपन का अहसास बहुत ही मासूम सा है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत सुन्दर!
बहुत सुंदर ,आभार.
भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति.
दिल तो बच्चा है,बचपन की अबोधता उम्र-भर साथ देती है,बशर्ते उस पर
बनावटी ससंकारों की धूल न जमें.भावपूर्ण प्रस्तुति.
बहुत अच्छे ढंग से बचपन की मौलिकता को प्रतिपादित किया है ।
waah di, bahut sunder rachna ,
hum sabke bhiter ke abodh bachhe se hamara sakshatkar kera diya aapne
sunder prastuti
mam bahut hi sundar tareeke se likhi hai aapne ye rachna...
bachpan , bachpan hota hai..
jai hind jai bharat
सच में हरेक व्यक्ति के अन्दर एक अबोध बच्चा है, जरूरत है सिर्फ़ उसको ईमानदारी से ढूंढने की...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
सुंदर!
कहीं सीधा कहीं वक्र है
यही जीवन का चक्र है.
बढ़िया रचना...
सादर...
सुंदर कविता
बहुत ही सुन्दर कविता अनु जी बधाई और शुभकामनायें
आपकी पोस्ट सोमबार १४/११/११ को ब्लोगर्स मीट वीकली (१७)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह हिंदी भाषा की सेवा अपनी रचनाओं के द्वारा करते रहें यही कामना है /आपका "ब्लोगर्स मीट वीकली (१७) के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /आभार /
आपकी पोस्ट सोमबार १४/११/११ को ब्लोगर्स मीट वीकली (१७)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह हिंदी भाषा की सेवा अपनी रचनाओं के द्वारा करते रहें यही कामना है /आपका "ब्लोगर्स मीट वीकली (१७) के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /आभार /
sundar bhaavpoorn prastuti Anu ji
बढ़िया अभिव्यक्ति है ....
शुभकामनायें आपको !
bhavpoorn abhivyakti.
सटीक वर्णन किया है सुन्दर कविता ....अनु जी
सटीक रचना सुन्दर अभिव्यक्ति...
bahut sundar... :)
बढ़िया लिखा है.
अशोक अरोरा
ज़िँदगी...के चक्र को समझाती ...एक भावपूर्ण रचना..इँसान.ता उम्र सच मेँ बच्चा ही रहता है...अँजू...
Post a Comment