हर डग पर हर पग पर जाने अनजाने ही,
एक बूंद गिरती है और बिखर जाती है |
आज ओशो की किताब पढ़ते हुए जब इन पंक्तियों पे नज़र पड़ी तो मन में अचानक एक सवाल उठा कि इस धरती पे जन्म और मृत्यु का सिलसिला क्यों है ?क्यों हर युग में एक औरत का जन्म किसी-ना-किसी कामना पूर्ति के लिए हुआ है
? क्यों हर युग में सीता ,अहिल्या और द्रौपदी जैसी नारियों को ही हर
कसौटी के लिए चुना गया ? क्यों पुरुष प्रधान समाज में नारी को ही केन्द्र
बिंदु की भांति सबके बीच ला खड़ा कर दिया जाता है ? ऐसे अनेक सवाल है जो आज मेरे मन में तूफ़ान मचा रहे है और इनका उत्तर ही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा |उगता सूरज सुबह का ,प्राची लाल हो गई पक्षियों के गाने फूट पड़े ,बंद कलियाँ खिलने लगी सब सुन्दर है !सब अपूर्व है ,फिर भी इस क्षण अगर मेरा मस्तिष्क आंदोलित हो उठे तो मैं क्या करूँ ,ऐसा क्यों हो रहा है | जहाँ हृदय के प्रश्न खत्म होते है वहाँ से अनुभव की यात्रा शुरू होती है और ये ही बात मैंने बहुत वक्त से महसूस कर रही हूँ कि युगों युगों से नारी अपने ही आसपास के पुरुषों से छली जा रही है ,युग कोई भी रहा हो नारी का जीवन कठिन था ,है और आने वाले वक्त में भी ऐसा ही कठिन रहेगा वक्त और युग कोई भी हो नारी के जीवन में कोई परिवर्तन होने वाला नहीं है |
कहते हैं कि अभिमन्यु-पुत्र परीक्षित का जिस दिन अभिषेक हुआ ,उसी दिन से कलयुग का प्रारंभ हुआ और
आज इस कलयुग में जब सब कुछ धर्म के विपरीत हो रहा है तो हम कैसे इस
बात को सोच सकते है कि आज के वक्त एक नारी का सम्पूर्ण सम्मान होता होगा, जबकि कवियों की कवितायों में औरत के रूप को उसके सौंदर्य को वर्णित करते
है ,सुंदरी ,अप्सरा और गजगामिनी जैसे शब्दों से
आज का युग और आज के युग के
लोगों औरत को आज भी भोग्या की नज़र से ही
देखते है .मैं ये नहीं कहती कि हर आदमी,समाज गलत होता है पर आज भी नारी का जीवन कठपुतलियों जैसा है तो ये कोई अतिशयोक्तिपूर्ण बात नहीं होगी क्यों कि हम सब देखते और समझते है की उसे जाने अंजाने मनमानी डोर से नचाया जाता है जो अदृश्य हो कर भी उसके मन-मस्तिष्क
को काबू किए रहती है .भले ही आज के समाज में ऐसी औरतो की तादाद बढ़ रही है
जो अकेले रहना पसंद करती है ,पर फिर भी उसकी आत्मनिर्भरता किसी ना किस के
संग बंधी होती है ,चाहें वो पिता हो ,भाई या कोई ऐसा दोस्त जो उसके करीब
हो क्यों कि वो पुरुष की भांति सर्वथा आत्मनिर्भर
नहीं होती इसलिय उसके भीतर के हर बड़े तूफ़ान बवंडर वो चाहें विचारों के हो
,वासनाओं के या उसी के शोर गुल के जो उसके भीतर चलते है कोई कहें या ना कहें वो अपने आप ही एक कठपुतली बन नाचने को मजबूर हो जाती है .अपने आप से लड़ना जितना मुश्किल है उतना ही आसान
संसार और उसकी बातों से भागना है
,खुद को हठयोगी साबित करने के चक्कर में कब वो अपना नुकसान कर जाती है ये
उसे भी बहुत देर से पता चलता है .एक औरत के जीवन में पढ़ लिख जाने के बाद भी
जब तकलीफ कम नहीं होती और उसी दुखो के चलते उसके जीवन की बदलियां घनी से
घनी होती जाती जाती है तो उसका खड़ा पर से भी विश्वास डगमगाने लगता है
|युगों
से नारी को देवी का दर्ज़ा देकर उसके मन की इच्छायों को दबाने का जो सफल
प्रयास किया गया वो आज भी कायम है ,अपने मन की करने से पहले अनेको अनेको
प्रश्नों से घिरी नारी स्वतः अपना जीवन जीना भूल जाती है पर मैं अपने मन
की ये बात जरुर कहूँगी कि औरत कोई
देवी नहीं अपितु वो एक साधारण मानव के रूप में खुद को देखना अधिक पसंद
करती है ताकि वो भी एक सुलभ सा जीवन जी सके अपने मन के पवित्र रिश्ते के
साथ भले ही वो रिश्ता पति-पत्नी का ,भाई बहन का
,पिता पुत्री का या फिर सखा-सखी का हो बिना किसी स्वार्थ ,बिना किसी
ढकोंसले के .अंत में मैं अपनी बात रखने के लिए ये ही लिखना अधिक उचित
समझती हूँ कि इस पृथ्वी पर सब अपना-अपना जीवन जीने के लिए आए हैं तो उन्हें उनके हिस्से का जीवन जीने देना चाहिए |वहीँ दूसरी और दिनों दिन औरत के साथ बदसलूकी की घटनाएँ तेज़ी से बढ़ रही है | एक युग में सीता अपना दुःख ,लज्जा
,अपमान छुपाने के लिए धरती की गोद में चली गई ,तो सती ने अपनी आहुति अग्नि
में दे दी ,द्रोपदी की वजह से महाभारत का युद्ध हुआ, ये लांछन लेकर वो कैसे अपने जीवन को जी पाई होगी?कहते है खाली दिमाग विचारों की जननी होती है और लिखने वाला तो वैसे ही बहुत सोचता है हो सकता है कि रसोई में काम करते हुए या कॉफी बनाते हुए ,दूध के उबाल के साथ साथ मेरे विचार भी मेरे ही भीतर उबल रहे
थे ,जिनका बाहर आना जरुरी था | एक तुलनात्मक सोच ने मेरे इस इस संग्रह को जन्म
दिया और ये संग्रह किस कसौटी पे रखा जाएगा ये मैं भी नहीं जानती |ये संग्रह,मैं हर उस सखी को समर्पित करती हूँ जो, मन से सोचती और अपनी सपनों की उस सहेली को अपने भीतर महसूस करती है और जिसके
अस्तित्व में ही स्त्री का सच्चा सृजन होता है| हर नारी सोचती तो बहुत कुछ है,
पर किसी के साथ अपने विचार बाँट नहीं सकती,उन्ही विचारों की ये लेखनी
समर्पित है, हर नारी मन को |
अंजु (अनु)
46 comments:
हर डग पर हर पग पर जाने अनजाने ही,
एक बूंद गिरती है और बिखर जाती है.....और वहीँ से सृजन की प्रक्रिया आरंभ होती है शायद...बहुत अच्छी भूमिका है...सच कहा है आपने कि हर नारी सोचती तो बहुत कुछ है, पर किसी के साथ अपने विचार बाँट नहीं सकती...!
पुस्तक के लिए आपको हार्दिक बधाई!
शुभकामनाओं सहित
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
सुन्दर लेख | बधाई |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आरंभ से अंत तक इस भूमिका में नारी दुख की असह वेदना प्रगट हो रही है, लेखिका की संवेदनशीलता, व्यवस्था की त्रासदी के विरोध में और नारी भावनाओं को मुखर करने में कितनी सक्षम हुई है यह सग्रह की कविताओं को पढ़ने से ही ज्ञात होगा. आगाज तो जबरदस्त है.
Anju tumhari lekhni bahut sundar hai aur mujhe vishwas hai ki tumhara yah kavya sangrh ek nyi unchaiya prapt karega
sundar bhoomika...
बहुत बढ़िया ...
बधाई अनु !
बहुत खूबसूरत उपहार ... और शाश्वत सत्य
बहुत सुन्दर....
संग्रह की सफलता की कामना करती हूँ.
सस्नेह
अनु
बहुत सुंदर भूमिका
शुभकामनाएं
dil ki bat.......sari sakhiyon ke dil ki ......
नारी की सोंच सिर्फ अपने तक ही सीमित नहीं रहते , वह खुद से अधिक औरों के लिए ही जीती आयी है पर अपनी बाते कह नहीं पाती ......
ekdam sahi aur dil ko chu jane vali bat hai annu.. bas kuch mat socho likhte raho, likhte raho...
एक औरत के दिमाग में ऐसे विचार आना सामान्य है |
क्या खूब लिखते हो बड़ा सुन्दर लिखते हो आपकी भूमिका अच्छी है
हमारी वेदना सच्चा स्वर तभी पाती है, जब दूसरों की वेदना से जुड़ जाती है. आपका प्रयास सराहनीय है.
ऐ रे सखी पुस्तक की लाजबाब भूमिका,,,,पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई,शुभकामनाओं सहित
Recent Post: कुछ तरस खाइये
बहुत सशक्त भूमिका है अन्जू जी ! आपकी हर बात मन को छूती है और आंदोलित करती है !
इस विशिष्ट उपलब्धि के लिए आप नि:संदेह रूप से बधाई की हकदार हैं !
अंजू आपके लिखे एक -एक शब्द मन में गहरे उतरते जाते हैं ,आपने मेरे मन कि ही बात कह दी हो जैसे .....
पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई
बढ़िया प्रस्तुति |
आभार आदरेया ||
हर नारी सोचती तो बहुत कुछ है, पर किसी के साथ अपने विचार बाँट नहीं सकती,उन्ही विचारों की ये लेखनी समर्पित है, हर नारी मन को |
नारी मन की व्यथा को कहती नारी को समर्पित बहुत ही उम्दा आलेख ,
अर्थपूर्ण प्रवाहमयी.... बांधे रखने वाले भाव लिए है भूमिका
ज़रूर पढूंगी इसे ...ऐ ऋ सखी ....:)
सार्थक प्रस्तुती बहुत अच्छी रचना आन्नद मय करती रचना
मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
sirf dudh coffee ke ubaal ke saath hi nahi.. har samay dimag chalta rahta hai.. bas aapne usko ek aayam diya.. ek behtareen kavita sangrah ... ek naye claver ke saath prastut kiya hai badhai.. w shubhkamnayen..
padh kar speechless ho gayi.....itna prbhavi aur sateek likha hai ki kya kahu.....hamare man mey uthte vicharo ko shabd dey diye apne
बहुत सुन्दर ....
bahut bahut sundar ..sangrh bahut sundar hai naari man ki har baat ujagar hai is mein ...sanjo ke rakhne laayk sangrh ..jald hi likhungi is sangrh par kuch main bhi anju :)
रंजू दी ......आभार
नारी ओर पुरुष में प्राकृति ने भी भिन्नता पैदा की है ... पर उसने ये नहीं बताया की एक महान ओर दूसरा उसके अधीन रहेगा ... ये सब पुरुष की बल सत्ता का प्रदर्शन है .. क्योंकि मनुष्य के पास दिमाग है वो फायदा उठाना जानता है ... नहीं तो स्त्री पुरुष के भेड़ को मनुष्य के अलावा कौन इस दृष्टिकोण से देखता है ....
अच्छा लिखा है आपने ... दिल की कशमकश बाहर आनी जरूरी है ...
बहुत सुन्दर और सटीक भूमिका...शुभकामनायें!
भूमिका में आपने जीवन को अभिव्यक्त कर दिया है.
नारी मन के भावों को बखूबी पिरोया है ………बधाई अंजू
अति सुन्दर!!
एक संवेदनशील लेखिका की संवेदनशील नजर .....प्रत्यासा है संवेदना की शायद असंवेदनशीलता से....
bahut hee sundar
didi pranam !
ek aur pustak ke liye hardik hardik badhai ! aap maa saraswati ki yuhi hi sevaa karti rahe sahity smridh karti rahe ye hum kaamna karte hai .badhai .
saadar
नारी मन के कई आयाम आपने लिख दिए हैं. सच है दूध के उबाल के साथ या फिर आलमीरा में कपड़े सहेजने के साथ कई बार विचार जन्म ले लेते है. निरंतर जीते हुए जीवन के हर पहलू से जुड़े रहना एक आतंरिक सोच विकसित करता है और इसका परिणाम आपकी पुस्तक 'ऐ री सखी'. भूमिका और पुस्तक के लिए आपको बहुत शुभकामनाएँ.
खली कुँए में आप पानी निकालने के लिए पानी डालियेगा? परीक्षा योग्य व्यक्ति की होती है। अहिल्या, दौपदी, तारा, मंदोदरी, कुंती को पञ्च कन्या मानकर सदा पूजा जाता है आपको गर्व होना चाहिए? नारी सदा पूज्य रही है सदा रहेगी यह अटल सत्य है
हर नारी सोचती तो बहुत कुछ है, पर किसी के साथ अपने विचार बाँट नहीं सकती, बिलकुल ठीक कहा आपने पूर्णतः सहमत हूँ आपकी बात से जमान चाहे कितना भी क्यूँ न बादल जाये नारी जीवन केवल नारी जीवन ही रहेगा...
लाजबाब भूमिका पुस्तक की ....पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई !
नारी मन के विभिन्न आयामों का विमर्श है यह विचारोत्तेजक आलेख.
अभिवादन अंजू जी.
शुक्रिया अंजू . मेरी कविता को पसंद करने के लिए
आपकी ये पोस्ट पढ़ी . सखी अपने आप में एक पूर्ण अस्तित्व है किसी भी स्त्री का . आपने अपने भीतर के संवाद को बहुत अच्छा रूप दिया है . बधाई .
विजय
www.poemsofvijay.blogspot.in
सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति ...
पुस्तक की सफलता के लिये शुभकामनाएं
कोई तो हो ... सखी..
बहुत सार्थक प्रस्तुति आपकी अगली पोस्ट का भी हमें इंतजार रहेगा महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
कृपया आप मेरे ब्लाग कभी अनुसरण करे
अनु...
सही कहा अपने...विचारों में जब उबल आता है तो ऐसे ही आता है ! दूध,चाय,दाल..सब पीछे रह जाते हैं...! आपने अपने इस उबाल को इस माध्यम से यहाँ तक फैला दिया है..हम सभी के पास आज ये एक माध्यम के तौर पर ही मौजूद है...अक्सर पढ़ती हूँ महिला मित्रों को...सब का उबाल किसी न किसी प्रकार दिख ही जाता है...फिर भी होता जाता कुछ भी नहीं है...अपने मन की बात कह के सब शांत भाव से अपनी अपनी परिस्थिति से जूझने के लिए खुद को फिर सक्षम कर लेती हैं... !
बिलकुल सही कहा आपने...
"हर नारी सोचती तो बहुत कुछ है, पर किसी के साथ अपने विचार बाँट नहीं सकती....."
और बंटे भी तो किसके साथ.....!!
Post a Comment