आज फिर से
एक बार
भीग जाने का
मन करता है
वो छत का
एक कोना पकड़ कर
घंटे-दर-घंटे वहीँ
बैठ जाने का
अब भी,मन करता है |
घंटो-घंटो की बरसात में
नंगे पैरों से
छप-छप करते हुए
सूनी पड़ी सड़क पर
कहीं दूर भाग जाने का
अब भी,मन करता है |
बस्ते को प्लास्टिक से
लपटे हुए
जुराबे-जूते
हाथ में पकड़े हुए
खुद को जान-बूझ कर
भिगाते हुए
भीगते-भीगते
घर,भाग-भाग कर आने को
हर बार सोचते-सोचते
खुद पर हँसने का
अब भी, मन करता है |
मेरा प्राचीन वक्त
और
गैस पर चढ़ी वो कड़ाही,
अब भी माँ के हाथ के
आलू और प्याज के पकौड़े,
खाने का मन करता है
वो दादी के हाथों की
चने की दाल की और
मीठी डोली*
चोरी करके,भागने का
अब भी, मन करता है |
वो इमली,वो राम लड्डू
वो छोटे-छोटे बेर
वो शतूत,वो भुने चन्ने
स्कूल की कैंटीन के
ब्रेड पकौड़े,समोसे
और साथ में
गरम-गरम चाय का कसोरा
और उसकी चुस्कियाँ
उफ़ उन कमबख्त यादों में
डूब जाने का
अब भी,मन करता है |
अब की,बरसात में भी
बिना कष्ट साँस लेती हूँ
अपने ही अंतहीन
संग्रह के लिए
खुद के आँसुओं को
सबसे छिपान के लिए
इस बरसात में भी
खूब भीगने का
मन करता है |
(*एक तरह की घर की बनी हुई कचौड़ी )
अंजु(अनु)
57 comments:
मन जो करे करना चहिये , बरसात में पर्स को पन्नी में लपेट लो . सैंडिल हाथ में ले लो . कौन रोकता है . हा छत पर बहुत देर तक भीगने वाले कार्यक्रम में जुकाम होने की प्रबल सम्भावना है .
एक दम सही है जी
यादों में अक्सर ,,बचपन में जाने को मन करता है ...
आप भी मन की बात मानिये ...अच्छा लगेगा !
शुभकामनायें!
bahut khub.bhigne ka bhi apna mza hai............
यादों की बरसात में भीगी हुई इस खूबसूरत रचना को बार-बार दौहराने को मन करता है। :-)
बरसात और पुरानी यादें, एक लाजवाब चित्र खींचा है आपने, बहुत ही पुरानी यादों को ताजा कर दिया.
रामराम.
आपकी रचना को पढ़ भाग कर अपने भी बचपन की वीथियों में फिर से लौट जाने को मन करता है ! बहुत ही आत्मीय सी रचना ! अति सुंदर !
बिलकुल सही कहा,इन सबको फिर से करने को बहुत मन करता है
सुनहरी यादें और उनकी निश्छलता कभी पीछा नहीं छोड़तीं। बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको।
ताऊ जी जब याद करने बैठो तो बहुत सी बाते याद आ ही जाती है :)
सही कहा आपने
कभी कभी मन कुलांचे भरने लगता है , कभी कभी मन को कुलांचे भरने दीजिये बेहद सुकून मिलता है ....बेहतरीन यादें अनु जी
बहुत ही सुन्दर! रचना
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - इंतज़ार उसका मुझे पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (03-08-2013) के गगन चूमती मीनारें होंगी में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुबह सबह क्या याद दिला दिया..
मीठी मधुर यादें !
सच में अभी भी किसने रोका है , बाहर नहीं तो बालकनी या छत पर सही !
आभार
आभार
मन करता है अपना भी यही सब दोहराने का जो कविता कह रही है...
काश हो पाता!
Sundar rachna .....ab bhi man karta hai ...man hai hi aisa chain se baithta hi nahi ...
आपकी यह रचना आज शनिवार (03-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
मन में रहता है एक बच्चा जो बार-बार सिर उठाता है -सुनता नहीं किसी की!
bachpan ki yadon say bhari is rachna ko bar bar padh bachpan aur barsat yaad karne ka man karta hai.....didi bahut sundar rachna
बहुत बढ़िया ....सच में …अब भी मन करता तो है ही
bachpan ki bow baate ab bas khayalo me hi milengi........
Khubsurat yaade......
बारिश !
कम्बख्त , पुराने ज़ख्म हरे कर जाती है , इसके बाबजूद भी ये कितनी अच्छी लगती है,
उन सभी यादों को दुहराने के लिए शुक्रिया !!!
बारिश !
कम्बख्त , पुराने ज़ख्म हरे कर जाती है , इसके बाबजूद भी ये कितनी अच्छी लगती है,
उन सभी यादों को दुहराने के लिए शुक्रिया !!!
ab bhi man karta hai kai baato ka jo bachapn thaa ..sahi likha .bahut badhiya
बचपन में पहुंचा दी आप अनु जी ...बहुत सुन्दर !
"ये मन और वो बचपन " बहुत कुछ होता है इसमें ....
-
सुलभ
अनु जी आपने बचपन से चलकर जीवन के हर को छूकर दर्द के एहसास को आसुओं से भिगो दिया बेहद सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति
मन के हारे हार है मन के जीते जीत तो वही करो जो मन कहे | बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
बरसात और पुरानी यादें, बहुत बढ़िया
man to vapas laut jana chahta hai bachpan ki shararton me lekin mushkil lagta hai vo sukh paana
Swarnim ateet ko sametti bahut sundar rachna ....
भावो का सुन्दर समायोजन......
भावो का सुन्दर समायोजन......
हाय! हाय! हमारा भी मन होने लगा..
सचमुच बचपन में लौट जाने का बहुत मन करता है. बहुत ही प्यारी रचना। अब बस एक दिन छत पे जाकर बारिश का आनंद ले ही लीजिये ,ज़िन्दगी बहुत छोटी है मन की इच्छाओं को जहाँ तक हो सके पूरा कर लेना चाहिए।
क्षितिजा का cover बहुत सुन्दर है. congrats अंजू जी
बचपन की वो सुनहरी यादों में फिर से जीने को मन करता है.... सरल , कोमल .सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
:-)
बचपन के दिन भी क्या दिन थे... सुंदर भावपूर्ण रचना !
hame bhi aisa hi bachpan fir se jeene ka man karta hai ........par kaise :)
aapne bachpan yaad kara diya...abhar
लो जी चार दिन पहले ही भीगा था...गरम गरम चाय पी थी...समोसे और ब्रेड पकोड़े खाए थे..कसम से जी मजा आ गया..बस जी बस्ता न था कंधे पर...न जूते हाथ में....
मेरा कमेंट कहा गया
ये कोई बात है.....बताइए भीगे हम भी ..कुछ दिन पहले ..समोसे खाए ..ब्रैड पकौड़े खाए...बस जूता हाथ में न लिया..बस्ता था नहीं सो पन्नी में लपेटा नहीं...आपका ब्लाग गुस्से में हमारा कमेंट खा गया..ये अच्छी बात नहीं
लों जी आपके सारे कमेन्ट आ गए .......अब तो खुश है ना आप
....बहुत सुंदर रचना दी
इस कम्बख्त बरसात से भी कितनी यादें जुडी होती हैं .. खत्म लेना का नाम नहीं लेती ...
बचपन से जवानी तक का सफर लौट आता है हर बरसात के साथ ...
bhigi bhigi kavita!
bahut badhiya!
bahut sundar Anu ji...
अब मेरा कमेन्ट गायब हो गया ...
सच में पुरानी यादों में डूबने का बहुत मन करता है...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
सच मेँ ..वापस ले जाती ही एक बार से ..उस कल मेँ...जो.. कहीँ .खो गया और सही कहा कि अब तो बस....
खुद के आँसुओं को
सबसे छिपान के लिए
इस बरसात में भी
खूब भीगने का
मन करता है |
कुछ चीज़ों के लिये हमेशा ही मन करता है...
आज फिर से
एक बार भीग जाने का मन करता है
वो छत का
एक कोना पकड़ कर
घंटे-दर-घंटे वहीँ बैठ जाने का
अब भी, मन करता है...
बरसात के बहाने बचपन की स्मृतियों में चले जाना बहुत अच्छा लगा आदरणीया अंजु अनु चौधरी जी
♥ (मैंने भी कुछ दिन पहले छत पर बरखा में भीगते हुए तीस-पैंतीस साल पहले के ज़माने को याद किया , परिणाम स्वरूप एक-दो गीत और आठ-दस छंद मां सरस्वती की कृपा से बने)
हां, सुंदर भावुकता भरी रचना के लिए नमन !
❣शुभकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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