इन आड़ी-तिरछी लकीरों से
खींचती है ज़िंदगी एक तस्वीर
एक सोच
एक द्वंद्ध
एक लड़ाई
इस बेरहम जिंदगी से
एक सोच
उस खालीपन की कसक
कुछ तो करना है
जो अभी अधूरा है
एक जद्धोजहद
उस खालीपन की
जिसके इंतज़ार में
उम्र निकलती जा रही है
खाली से टेबल पर
खाली से वक़्त में
कागज़,पेंसिल से खेलने की कला
जो बेमतलब खींच देती है
किस्मत की लकीरों को
इन आड़ी-तिरछी रेखाओं की तरह ||
ये तन्हाई भी क्या चीज़ होती है, बेकार बना देती है इंसान को
क्या करेगा ये दिल यूं ही , पुराने पन्ने पलट-पलट कर ||
(एक ही शॉर्ट में लिखी गयी कविता को यूं अब ब्लॉग में रखने की सोची है .......इस कविता में भी लिखने के बाद कोई भी बदलाब नहीं किया गया )
अंजु चौधरी अनु
10 comments:
कितने अर्थ छिपे हैं इन लकीरों में...
बहुत सुंदर
अनु
बेहतरीन प्रस्तुति
ऐसी कविता कैसे लिख लेती हैं आप?....मन की अकूलाहट को शब्द देना आसान नहीं..
जिंदगी के लम्बे साल इन्ही लकीरों में खींचे आते हैं ... लाजवाब ... गहरा एहसास छिपा है रचना में ...
Bahut umda anu ji....
जिंदगी भी कभी कभी प्रतीत होती है , खाली लकीर की तरह .. बहुत सुन्दर कविता ..
काश पढ़ पाते इन लकीरों को...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
सुंदर रचना
सार्थक एवं उम्दा प्रस्तुति !
आभार !
कुछ तो करना है
जो अभी अधूरा है
वाह
सुन्दर भाव
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