तेरह साल का परेश रंगमंच के हॉल की सफाई किया करता था |वहाँ रोज़ कोई ना कोई साहित्य से जुड़ा बड़े नाम का व्यक्ति आता ही रहता था |
इसी के चलते परेश के दिमाग में नित-नई कहानी/कविता जन्म लेती ही रहती थी तो वो सब अपनी कॉपी में लिखता रहता था||उसने एक दो बार कोशिश की कि नाटक रचने वाले उसकी कहानी भी पढे पर,हर किसी ने उसे छोटा समझ का नजरंदाज कर दिया| वो मायूस होकर फिर से अपने काम में लग जाता था |पर उसे पक्का विश्वास था कि कामयाबी का एक दिन उसके हिस्से भी लिखा होगा जो सिर्फ उसके लिए होगा |
ऐसे ही दो साल ओर बीत गए |एक दिन उस रंगमंच की रौनक देख कर वो समझ गया की आज कोई बड़ी हस्ती यहाँ आने वाली है|सामने लगे बैनर पर मशहूर कथाकार ऋतु कपूर का नाम देख कर वो बेहद खुश हो गया |भले ही वो उन्हे नहीं जानता था पर वो भी लिखती हैं ये ही बात उसके लिए बहुत बड़ी थी | सही वक़्त पर कार्यक्रम शुरू हो गया वहीं ऋतु जी ने अपने भाषण में नए बच्चों को लेखन सीखने के लिए मुफ्त की शिक्षा देने की बात कही, जिसके चलते उन्होने अपने नाम के पर्चे भी पूरे हॉल में बँटवा दिए और वही पर्चा परेश को जब मिला तो उसने भी उसे संभाल कर रख लिया |
ओर एक दिन इसी के चलते वो ऋतु जी के घर जा पहुंचा और अपनी लिखी कहानियाँ उनके चरणों में रख दी और कहा ‘’मैंने जो जो लिखा हुआ था वो सब इस में हैं, अब इस से आगे मैं आपसे सीखना चाहता हूँ’’|परेश से कॉपी लेते हुए वो बोली ''देखो बच्चे ! मैंने इसे रख रही हूँ आराम से पढ़ कर तुम्हें बताती हूँ, मैं फोन करूंगी , बस तब ही तुम मुझ से मिलने आना |''
दिन,महीना और फिर दो महीने बीत गए परेश को ऋतु जी का कोई फोन नहीं आया | परेश ने कुछ वक़्त के बाद उनसे संपर्क बनाने की बहुत कोशिश की पर हर बार नाकाम हो गया,तभी उसे किसी से पता चला की कपूर मैडम जी की एक नई कहानियों की किताब आई है जो बाज़ार में बहुत धूम मचा रही है,उसने वो किताब खरीदी और जैसे जैसे उसने कहानियाँ पढ़ी उसकी समझ में आ गया कि क्यों ऋतु जी उस से मिलने का मन नहीं बना सकी |आज वो समझ गया कि उसके जीवन की अब तक की सारी पूँजी लुट चुकी है,वो जान चुका था कि इन बड़े नाम वालों के भी नकली चहरे हैं |
17 comments:
अक्सर बड़े नाम वाले सुन्दर चेहरे के पीछे उनका घिनौना चेहरा छुपा होता है..
ऐसा होता है अक्सर ... दुनिया भरी पड़ी है ऐसे चालबाजों से जो सब कुछ लूट लेते हैं फिर काव्य, कगानी क्या है ... अच्छी कहानी ...
बहुत आम बात है ये...
बेहद दुखद भी...
अच्छी पोस्ट !!
सस्नेह
अनु
एक कडवी हकीकत प्रस्तुत की है
ऊनची दूकान फीकी पकवान !सुन्दर हहानी
अच्छे दिन आयेंगे !
सावन जगाये अगन !
ओ हो... एक बच्चे के लेख भी चोरी करते ज़रा संकोच न हुआ।
अच्छा लगा आप के ब्लॉग पर आकर।
यही साहित्य का सत्य है
बेहद दुखद
kafi had tak ye bade sahityekaron ka hi saty hai.
kafi had tak ye bade sahitykaron ka sach hai.
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें...
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें...
क्या खूब कथा कही है.. नकली चेहरों के असली कारनामे!
आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक
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आपकी कहानी मेरे दिल को छू गयी इसलिए
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कड़वी सच्चाई !
दुनियां में ऐसे दूसरों। का फ़ायदा उठाने वाले बहुत होते है जो दूसरों की वस्तुओं का उपयोग करके उसे अपना नाम दे देते है
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