तेरी खामोशिया बहुत कुछ ब्यान करती है
बंदिशे तेरी ..मुझे तक पहुँचती है
देके आवाज़ तुझे ..रोकने का मन करता है
पर क्या करूँ...तेरी भी कुछ मजबूरिया
मुझे हर बार रोकती है ...
बाँध दिए थे सब अरमां…
दूर किसी डाली से..
मेरे चेहरे से तेरे ग़म को जीया आज भी मैंने ,
मिलके जो हमने जलाया वो दोस्ती का दीया आज भी है.....(...कृति....अंजु...अनु..)
5 comments:
अनुराधा जी बहुत खूब रचना,पढने के बाद खामोश भी नहीं रहा जाता !!
dhanywad sanjay...
aap bahut achha likhti ho anju ji
dil ko choo jata hai
aapki is kala ko salaam dost
behtareen likha hai aapne ...
"मिल के जो हमने जलाया वो दोस्ती का दीया आज भी है"भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति……। आभार!
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