Wednesday, February 24, 2010

अजीब सी उलझन में है ये मन


अजीब सी उलझन में है ये मन
अजीब सा ये एहसास है
उम्र के इस मौड़ पर
क्या किसी के आगमन का ये आभास है
क्यों अब ये दिल जोर जोर से धड़कता है
क्यों हर पल उसकी ही सोचो का दायरा है
हर पल ऐसा लगे कि वो मेरे साथ है
क्या उसे भी मेरी तरह इस बात का एहसास है
कि है कोई जो इस दिल के तारो को अब झनझनाता सा है
आ आ कर सपनो में अब वो जगाता सा है
क्यों वो धीरे धीरे मेरे लिए ही गुनगुनाता सा है
अजीब सी उलझन में है ये मन.............
क्यों मै अब नए सपने बुनने लगी हूँ
क्यों इस नयी इस दुनिया में विचरने लगी हूँ
क्यों खुद से ही मै बाते करने लगी हूँ
अरमानो के पंख लगा ...
लो उड़ चला अब मेरा मन
क्यों प्यार के इस नए एहसास से अब मन
डरा डरा सा है
मेरे मन और तन कि भाषा
अब बदली बदली सी है
मेरी आँखों में अब नए सपनो कि दुनिया
अब सजी सजी सी है
है बदलाव का नया नया दौर ये
क्यों मै तरु सी खुद में ही अब
सिमटी सिमटी सी हूँ
अजीब सी उलझन में है ये मन.............
(..कृति..अंजु..(अनु..)

3 comments:

विवेक दुबे"निश्चल" said...

Ajeeb si uljhan me he man,
Har pal lage bow mere paas he kya us ko bhi yah ahsas he.
Wah kya baat he ..

विवेक दुबे"निश्चल" said...

sab kuchh to kah diya aap ne ab koi or kya kahega bas jo padega is rachna ko padta hi rahega bar bar padta hi rahega mano uske liye hi likha ho aapne yah mansus karega .

मुकेश कुमार सिन्हा said...

ajeeb sii uljhan me bhi mann jo kahta hai........wo sahi hota hai.......:) bahut khubsurat rachna......