
बचपन के वो दिन जो बहुत अच्छे थे ..जिसकी याद में हर व्यक्ति खुद को जीने लगता है कुछ यादे कभी भुलाये नहीं भूलती ॥बस उन्ही यादो को लिखने की चेष्टा की है
कोई लौटा दे मेरे बचपन के दिन ....
दे मुझे वोह खुला आसमान
जहाँ ना हो टेंशन का आगमन ..
मै भी जी लूँ मस्त बन कर ..
खेलू अपनी गुडियों पटोलो संग ,
वो मिट्टी की ज़मी ..वो रेत का टीला..
वो सावन का झूला मेरा
वो स्कूल का बस्ता...वो किताबो की मस्ती
वो माँ का डांटना और मेरा छिप जाना
फिर प्यार से माँ का पास बिठा के
मुझको खाना खिलाना
वो स्कूल का बस्ता...वो किताबो की मस्ती
वो माँ का डांटना और मेरा छिप जाना
फिर प्यार से माँ का पास बिठा के
मुझको खाना खिलाना
यहाँ है सिर्फ खुशियों के डेरा ,
जहाँ न है गृहस्थी का कोई बोझ
ना है अपनों की कोई रोक टोक ..
मै फिर से अपनी गुडिया का
विवाह..गुड्डे से रचा लूँ ..
संग सहेलियों के मै..
फिर से ठहाके लगा लूँ
एक बार फिर से अपने
पितःमाह..को है पाने की इच्छा ..
कोई लौटा दे मुझे ,
मेरे दुलार वाले दिन ..
जिसकी मै थी प्यारी गुडिया ..
काश !कोई मुझे उस से एक बार मिला दे ..
कोई लौटा दे मेरे बचपन के दिन ..............
(......कृति ...अंजु ....(अनु .....)
3 comments:
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really nice
SABKO apne bachpan ke din sabse pyare hote hain........kassh wo din fir laut aata......:)
pyari rachna..........
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