Sunday, September 26, 2010

वीरानियाँ


क्यों उदास है मेरी ये जिन्दगी
खाली खाली सी क्यों लगती है मुझे
गर जिन्दगी रूठ जाये तो
ख़ुशी दूर हो गई मन से

बहुत वीरानियो से गुज़री है ये जिन्दगी
बहारो का अब कोई इंतज़ार भी नहीं है
रास्तो पे चलती भटकती है ये जिन्दगी ......
होगी कोई मंजली इसका भी पता नहीं है

दिल के दरवाज़े खिडकियों को यू किया बंद .......
पर मन की तुफ्फा से झूझती है ये जिन्दगी
आंधियो से कभी डर नहीं लगा हमहे .....
पर खुद के वजूद से ही डरती क्यों है ये जिन्दगी


मान अभिमान में डोलती ये जिन्दगी
अपने ही स्वाभिमान को तोडती ये जिन्दगी

((((((अंजु.....(अनु))))







12 comments:

शारदा अरोरा said...

मन के खिड़कियाँ दरवाजे कब बंद हुए हैं , कलम ले कर सब बह जाएगा , अच्छा प्रयास ।

कुमार संतोष said...

अंजू जी आपकी कविता मन के भावो को स्पष्ट कर रही है !
बहुत सुंदर, बधाई !

Anju (Anu) Chaudhary said...

धन्यवाद शारदा जी और संतोष ......आपको मेरा लिखा पसंद आया

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत ही खूबसूरत भाव हैं..... ऐसे ही लिखती रहें.... शुभकामनायेँ.....

"नेह्दूत" said...

मन अभिमान में डोलती यह जिंदगी
अपने ही स्वाभिमान को तोडती यह ज़िन्दगी
बहुत सुन्दर
क्या बात कही आप ने

Amit Chandra said...

dil ko chu lene wali rachna. shubhkamnaye

मुकेश कुमार सिन्हा said...

udas jindagi ko apne kalmo se khushiya bhar den...:)

bahut khub!!
kabhi samay mile to hamare blog pe tasreef layen...

दिगम्बर नासवा said...

ऐसी निराशा क़ि बात कहे ...... जीवन बहुत लम्बा है .... अच्छा लिखा है ...

Anonymous said...

जीवन के एक पक्ष को शब्द देने का अच्छा प्रयास

कविता रावत said...

Manobhavon ka achha chitran laga...

कविता रावत said...

Likhte rahiye... man ko bahut sukun milta hai.. tanhayee sab door hone lagegi... achha likhti hai aap! Meri Shubhkamnayen aapke saath...

mridula pradhan said...

bahot sunder.