प्रेम दीवानी
सूरज की गरमी ,चन्दा की ठंडक
इसमें छिपे अनंत बसंत
अपनी बानी प्रेम की बानी
इसकी सियाई आँखों का पानी
जिसको ना घर समझे
ना समझे गली दीवानी
जिसकी हर अदा पर
मर गई ये
मीरा दीवानी ....
मै तो हूँ एक पिंजरे के मैना
जात अजानी ,नाम अनजाना
कहीं ना उसका ठौर ठिकाना ,
दिल है शोला ,आँखों में शबनम
कुछ चोट लगी बाहर थी
कुछ चोट लगी भीतर थी
शबनम की बूंदों तक पर
निर्दयी धूप की कड़ी नज़र थी
कोई था बदहाल धूप में
कोई था ग़मगीन छावं में
जिसको अपनाया उसकी
याद संजोई मन में ऐसे
जो दीवा जले तुलसी-पूजन में
आज भले ही तुम कुछ भी
कहें लो ....
मै उसकी हो गई जी
जो थाम के जिगर उठा ,
जो मिला के नज़र
इस प्रेम द्वारे झुका जी
--
((anu))
anu
सूरज की गरमी ,चन्दा की ठंडक
इसमें छिपे अनंत बसंत
अपनी बानी प्रेम की बानी
इसकी सियाई आँखों का पानी
जिसको ना घर समझे
ना समझे गली दीवानी
जिसकी हर अदा पर
मर गई ये
मीरा दीवानी ....
मै तो हूँ एक पिंजरे के मैना
जात अजानी ,नाम अनजाना
कहीं ना उसका ठौर ठिकाना ,
दिल है शोला ,आँखों में शबनम
कुछ चोट लगी बाहर थी
कुछ चोट लगी भीतर थी
शबनम की बूंदों तक पर
निर्दयी धूप की कड़ी नज़र थी
कोई था बदहाल धूप में
कोई था ग़मगीन छावं में
जिसको अपनाया उसकी
याद संजोई मन में ऐसे
जो दीवा जले तुलसी-पूजन में
आज भले ही तुम कुछ भी
कहें लो ....
मै उसकी हो गई जी
जो थाम के जिगर उठा ,
जो मिला के नज़र
इस प्रेम द्वारे झुका जी
--
((anu))
anu
39 comments:
जिसको अपनाया उसकी
याद संजोई मन में ऐसे
जो दीवा जले तुलसी-पूजन में
bahut khoob
बेहतरीन कविता है.
सादर
समर्पण की भावना को लेकर बहुत सुन्दर रचना!
Nice post.
Wah ....
खूबसूरत एहसास ..सुन्दर प्रस्तुति
MAM BAHUT KHUBSURAT KAVITA LIKHI HAI APNE..
JAI HIND JAI BHARAT
nice poem Anu ji...
'प्रेम दीवानी'... बहुत सुन्दर...बधाई
याद संजोई मन में ऐसे
जो दीवा जले तुलसी-पूजन में
ये दो पंक्तियां गोपाल दास नीरज की याद दिला गयी।
सुंदर कविता है।
आभार
मै तो हूँ एक पिंजरे के मैना
जात अजानी ,नाम अनजाना
कहीं ना उसका ठौर ठिकाना ,
दिल है शोला ,आँखों में शबनम
कुछ चोट लगी बाहर थी
कुछ चोट लगी भीतर थी
अनु जी
बहुत ही अच्छी कविता हे
आप का बहुत बहुत धन्यवाद!
कोई था बदहाल धूप में
कोई था ग़मगीन छावं में--- शायद इन्सान को किसी तरह चैन नही । लेकिन आपके समर्पण के लिये शुभकामनायें। सुन्दर रचना।
बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
खूबसूरत प्रेम के रंग में रची रचना ...
प्रेम पर सदियों से लिखा जा रहा है... दीवानगी पर वर्षों लिखा गया है... लेकिन नदी की तरह जिस तरह यह कविता बह रही है प्रेम के प्रति पागलपन नए क्षितिज पर है... कविता एक सांस में पढ़ गया और यह दिल में उतर गई.... सुन्दर कविता...
रचना के भाव प्रत्यक्षतः निरूपित हैं.... पर यह अतिरंजित रूप हैं मीरा और राधा का युग बीत गया अब ..शाश्वत प्रणय केवल संभाषण और उत्कर्ण में ही प्रेरित करता हैं समर्पण हालाँकि साधिकार ही होता हैं पर समर्पण और अतिक्रमण को बहुत महीन रेखा विभाजित करती हैं
रचना अंतस की जद्द-ओ-जहद को बखूबी बयां करती हैं पर रवानगी में पशोपेश हैं की उलाहना हैं या समर्पण...शेष ..बहुत खूबसूरत लिखा हैं
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
एक कृष्ण दीवानी मीरा , एक दीवानी इस कविता में
प्रेम को समर्पित खूबसूरत कविता !
prem mein doobi hui bhaavpoorn rachna anu ji...
khubshurat prem ka ahsaas dikha diya aapne:)
khubsurat rachana
शबनम की बूंदों तक पर
निर्दयी धूप की कड़ी नज़र थी
कोई था बदहाल धूप में
कोई था ग़मगीन छावं में
आपकी कविता में कथ्य और संवेदना का सहकार है जिसका मकसद इस संसार को व्यवस्थित और प्रेममय देखने की आकांक्षा है।
bahut hi sunder aur bhaavpurna prastuti.badhai:)
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने ! बधाई!
प्रेम में समर्पण ,प्रेम की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति है . भाव प्रवण कविता .
आज भले ही तुम कुछ भी
कहें लो ....
मै उसकी हो गई जी
जो थाम के जिगर उठा ,
जो मिला के नज़र
इस प्रेम द्वारे झुका जी
bahut khoob!!!!
isse pichhli rachna ishq ki mulakaat bhi laajawaab hai...........
"जिसको अपनाया उसकी
याद संजोई मन में ऐसे
जो दीवा जले तुलसी-पूजन में"
बहुत बढ़िया...
beautifully written.
सूरज की गरमी ,चन्दा की ठंडक
इसमें छिपे अनंत बसंत
अपनी बानी प्रेम की बानी
इसकी सियाई आँखों का पानी
क्या आज भी है ऐसी दीवानी.? ......आभार .... बहुत सुन्दर ...
कुछ चोट लगी बाहर थी
कुछ चोट लगी भीतर थी
कुछ खोट रही थी अंतर में --
थपकाने से अब बेहतर है |
हूँ कुम्भकार की रचना मैं -
एह्सान सदा ही मुझ पर है ||
पर हक़ उसका सबसे ज्यादा -
जो दिल में है वो दिलवर है ||
"मै उसकी हो गई जी
जो थाम के जिगर उठा ,
जो मिला के नज़र
इस प्रेम द्वारे झुका जी"
बहुत बेहतरीन और सारगर्भित बात उभरकर आयी है.प्रेम की इन्तहा शायद यही है,यही हो.
bahut khoobsurat prempagi rachna... sundar prastuti..shubhkamnayen!
मै उसकी हो गई जी
जो थाम के जिगर उठा ,
जो मिला के नज़र
इस प्रेम द्वारे झुका जी... प्रेम में समर्पण का सुन्दर भाव और सुन्दर अभिव्यक्ति...
अनु जी आप मेरे ब्लांग में आई ..बहुत बहुत धन्यवाद..
आप सभी मित्रो का मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद
ऐसे ही अपने विचारो से मेरा हौंसला बढ़ाते रहे ...........आभार
सच. बहुत ही सुंदर भाव.. क्या बात है..
जो दीवा जले तुलसी-पूजन में
आज भले ही तुम कुछ भी
कहें लो ....
मै उसकी हो गई जी
जो थाम के जिगर उठा ,
मै उसकी हो गई जी
जो थाम के जिगर उठा ,
जो मिला के नज़र
इस प्रेम द्वारे झुका जी...
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
kya kahun, bahuto ne bahut kuchh kah diya..sach me kahin se prem bah raha hai....samajh me aa raha hai..:)
mahendr ji...sada ji...mukhe ji aap sabka shukriya...ki aapne dil se meri kavita ko padha
bahut bahut aabhar
Mai ho gaai uski jo tham ke jigar uttha , jo mila ke najar is prem duar jhuka jhuka.
Bahut sundar waaaaah
awsome poem......... dil ko chu gayi bua.........
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