Saturday, July 9, 2011



मै.......




मै हसंती बहुत हूँ ना
थोड़ी सी पागल ,
थोड़ी सी दीवानी
थोड़ी सी शोखी
से भरी
फिर उसी पल
कुछ उदास सी
थोड़ी थोड़ी
नादान सी
ओर पल में
समझदार भी
कैसे कहूँ खुद को
कि मै क्या हूँ
कुछ कुछ प्यासी सी
खुद में भरी हुई सी
कुछ कुछ खुद से
दहकती हुई सी
खुद से नाराज़ ..
खुद को मानाती
हुई सी
पलो के जिन्दगी को
खुद में सहजती हुई सी




मै




बोलती आँखों की भाषा.
सोचती आँखों का सपना
सपनो की दुनिया में
सच का आईना हूँ
जो समझे इस दिल को
उसकी प्रीत हूँ
ना समझने वालो के लिए
सिर्फ अतीत हूँ...
यादो के संसार की
एक चकोर हूँ
बिन बोले मन में बस
जाने वाली चितचोर हूँ
सखी हूँ तुम्हारी...
दूर हूँ तुम से फिर भी
दिल के करीब हूँ...
दिल में धड़कन सी ही नहीं
धड़कन हूँ

तुम्हारी हर सोच में बसी
एक सोच हूँ
मै ...........(अनु)

44 comments:

vandana gupta said...

वाह्…………बहुत खूब कहा।

Manoranjan Manu Shrivastav said...

बहुत ही अच्छी सोच हूँ, मैं
__________
वन्स मोर !

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

शब्दों को अधरों पर लाकर
मन के भेद न खोलो ।
मैं आँखों से सुन सकता हूं
तुम आखों से ही बोलो।

संबंधों की असिधारा पर
चलना बहुत कठिन है।
पग धरने से पहले
अपने विश्वासों को तोलो।

कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी आपकी कविता पढ कर।
सुंदर भाव हैं। साधुवाद आभार

मनोज कुमार said...

दोनों मिलाकर एक शब्द - ‘इंटेलिजेंट’!

ASHOK ARORA said...

Ashok Arora
sach main
बोलती आँखों की भाषा.
सोचती आँखों का सपना
सपनो की दुनिया में
सच का आईना ho tum
जो समझे tere दिल को
उसकी प्रीत ho tum......Bahut Bahut ..sunder
aur jo samjhe uske liye...Mei nahi...tum kewal tum ho tum..
ashok arora

masoomshayer said...

तुम्हारी हर सोच में बसी
एक सोच हूँ

bahaut bahut saunr panktiyaan

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अरे वाह आपने तो बहुत सुन्दर रचनाएँ लिखी है!
शब्द भी सटीक और अभिव्यक्ति भी!

रविकर said...

बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ||
बधाई ||

सुनीता शानू said...

waah bahut sundar anu...jaisa chehara waisi hi khoobsurat kavita...bahut bahut badhai..

बी.एस.गुर्जर said...

खुद से नाराज़ ..
खुद को मानाती
हुई सी
पलो के जिन्दगी को
खुद में सहजती हुई सी ....
लगती हो आप आज भी अपने बचपन सी
वाही नादान बचपन के हट (जिद्द ) सी.......अब तो बचपन से बाहर आ जाओ के बही जिंदगी अच्छी थी बचपन की ........,

रश्मि प्रभा... said...

is hansi mein saara pyaar sari samajh hai sari komalta hai ....

DR. ANWER JAMAL said...

waah

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बोलती आँखों की भाषा.
सोचती आँखों का सपना
सपनो की दुनिया में
सच का आईना हूँ
जो समझे इस दिल को
उसकी प्रीत हूँ

मैं ... पर लिखी दोनों रचनाएँ सुन्दर हैं ...कहीं आप खुद में खुद को सहेज रही हैं तो कहीं साथ दे रही हैं ...

Kunwar Kusumesh said...

बहुत खूब.

Vichar Kranti said...

अनु जी आप की तो हर कविता बहुत अच्छी होती हे इसिलए कुछ शब्द नहीं हे मेरे पास

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

मेरी समझ में यह नही आ रहा है कि यह ‘मैं’ क्या-क्या नहीं है? इतना सब कुझ केवल ‘मैं’...बहुत ही सुन्दर...बधाई

"नेह्दूत" said...

SAKHI hun tumhari......
Duur hun tum se phir bhi dil ke kareeb hun...
Dil ki dhadkan se nahi dhadkan hun.
Har soch me basi ek soch hun.
....... kya baat he.... sakhi or sakha ka to jeevan bhar ka santh he is riste me radha kishan sa ahsas he.n tum se phir bhi dil ke kareeb hun...
Dil ki dhadkan se nahi dhadkan hun.
Har soch me basi ek soch hun.
....... kya baat he.... sakhi or sakha ka to jeevan bhar ka santh he is riste me radha kishan sa ahsas he.

Udan Tashtari said...

वाह!! बहुत उम्दा....

36solutions said...

बहुत सुन्‍दर ढ़ग से, सहजता से मैं को अभिव्‍यक्‍त किया है आपने. धन्‍यवाद.

सहज साहित्य said...

बहुत अच्छी कविताएं हैं अनु जी ! लिखते रहिए । अपने पुराने मित्र कैलाश आदमी जी का प्रमाण पत्र देखकर और अच्छा लगा ।

राजीव तनेजा said...

भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति

nilesh mathur said...

वाह! बहुत सुन्दर!

संजय भास्‍कर said...

कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

संजय भास्‍कर said...

अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

kitni khoobsurati se piroyaa hai aapne bhavnaao ko.

Cloud said...

जो समझे इस दिल को
उसकी प्रीत हूँ
ना समझने वालो के लिए
सिर्फ अतीत हूँ...wah wah wah wah

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...
This comment has been removed by the author.
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपकी ये ख़ूबसूसर रचना कल मंगलवार के चर्चामंच पर भी है आप इस लिंक http://charchamanch.blogspot.com/ पर आएं और अपने विचारों से अवगत कराएं

सुनील गज्जाणी said...

दूर हूँ तुम से फिर भी
दिल के करीब हूँ...
दिल में धड़कन सी ही नहीं
धड़कन हूँ

तुम्हारी हर सोच में बसी
एक सोच हूँ

प्रणाम ! बेहद सुंदर अभिव्यक्ति , आप कि नज़र अपनी अभिव्यक्ति '' मैं , मैं हो कर भी मैं नहीं /जब तुम मुझे संबोधन में तुम कहती हो और मैं तुम और मैं में विलीन हो जाता हूँ ''
सादर

amrendra "amar" said...

दूर हूँ तुम से फिर भी
दिल के करीब हूँ...
दिल में धड़कन सी ही नहीं
धड़कन हूँ

तुम्हारी हर सोच में बसी
एक सोच हूँ
bhavook prastuti.......

परमजीत सिहँ बाली said...

हुत ही अच्छी प्रस्तुति

شہروز said...

क्या बात है.गद्य कविता इतनी भी तरल हो सकती है.नदी की रवानी सी, चकित हुआ..अत्यंत प्रभावी पोस्ट!
हमज़बान की नयी पोस्ट मेन इटर बन गया शिवभक्त फुर्सत हो तो पढें

Amit Chandra said...

वाह। क्या चित्रण किया है आपने। शानदार।

kshama said...

Pahli baar aayee hun aapke blog pe! Bahut,bahut achha laga!

कुमार पलाश said...

चकित करती है आपकी कविता....'एक मैं' के दो रूप और कविता में नदी सा प्रवाह...बहुत सुन्दर

Sunil Kumar said...

मै का सुंदर चित्रण अच्छी भावाव्यक्ति बधाई

Rajiv said...

"बोलती आँखों की भाषा.
सोचती आँखों का सपना
सपनो की दुनिया में
सच का आईना हूँ
जो समझे इस दिल को
उसकी प्रीत हूँ
ना समझने वालो के लिए
सिर्फ अतीत हूँ.."सुन्दर भाव और उतना ही सुन्दर सम्प्रेषण

नीरज गोस्वामी said...

सुन्दर शब्द और उतने ही सुन्दर भाव...बहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें

नीरज

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... खुद पर गरूर होना भी तो एक अदा है ...
लाजवाब लिखा है ..

Anju (Anu) Chaudhary said...

आप सभी दोस्तों का शुक्रिया ....मेरी कविता को पढने का
ऐसे ही मेरा हौंसला बढ़ाते रहे ......आभार

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

क्या कहने, बहुत सुंदर..

मुकेश कुमार सिन्हा said...

iss "main" me jo mere liye "tum" ho...khubsurat sa ek pyara sa dost najar aa raha hai:)

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

वाह...वाह...वाह
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

Unknown said...

सुन्दर रचना बधाई