मै.......
मै हसंती बहुत हूँ ना
थोड़ी सी पागल ,
थोड़ी सी दीवानी
थोड़ी सी शोखी
से भरी
फिर उसी पल
कुछ उदास सी
थोड़ी थोड़ी
नादान सी
ओर पल में
समझदार भी
कैसे कहूँ खुद को
कि मै क्या हूँ
कुछ कुछ प्यासी सी
खुद में भरी हुई सी
कुछ कुछ खुद से
दहकती हुई सी
खुद से नाराज़ ..
खुद को मानाती
हुई सी
पलो के जिन्दगी को
खुद में सहजती हुई सी
मै
बोलती आँखों की भाषा.
सोचती आँखों का सपना
सपनो की दुनिया में
सच का आईना हूँ
जो समझे इस दिल को
उसकी प्रीत हूँ
ना समझने वालो के लिए
सिर्फ अतीत हूँ...
यादो के संसार की
एक चकोर हूँ
बिन बोले मन में बस
जाने वाली चितचोर हूँ
सखी हूँ तुम्हारी...
दूर हूँ तुम से फिर भी
दिल के करीब हूँ...
दिल में धड़कन सी ही नहीं
धड़कन हूँ
तुम्हारी हर सोच में बसी
एक सोच हूँ
मै ...........(अनु)
44 comments:
वाह्…………बहुत खूब कहा।
बहुत ही अच्छी सोच हूँ, मैं
__________
वन्स मोर !
शब्दों को अधरों पर लाकर
मन के भेद न खोलो ।
मैं आँखों से सुन सकता हूं
तुम आखों से ही बोलो।
संबंधों की असिधारा पर
चलना बहुत कठिन है।
पग धरने से पहले
अपने विश्वासों को तोलो।
कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी आपकी कविता पढ कर।
सुंदर भाव हैं। साधुवाद आभार
दोनों मिलाकर एक शब्द - ‘इंटेलिजेंट’!
Ashok Arora
sach main
बोलती आँखों की भाषा.
सोचती आँखों का सपना
सपनो की दुनिया में
सच का आईना ho tum
जो समझे tere दिल को
उसकी प्रीत ho tum......Bahut Bahut ..sunder
aur jo samjhe uske liye...Mei nahi...tum kewal tum ho tum..
ashok arora
तुम्हारी हर सोच में बसी
एक सोच हूँ
bahaut bahut saunr panktiyaan
अरे वाह आपने तो बहुत सुन्दर रचनाएँ लिखी है!
शब्द भी सटीक और अभिव्यक्ति भी!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ||
बधाई ||
waah bahut sundar anu...jaisa chehara waisi hi khoobsurat kavita...bahut bahut badhai..
खुद से नाराज़ ..
खुद को मानाती
हुई सी
पलो के जिन्दगी को
खुद में सहजती हुई सी ....
लगती हो आप आज भी अपने बचपन सी
वाही नादान बचपन के हट (जिद्द ) सी.......अब तो बचपन से बाहर आ जाओ के बही जिंदगी अच्छी थी बचपन की ........,
is hansi mein saara pyaar sari samajh hai sari komalta hai ....
waah
बोलती आँखों की भाषा.
सोचती आँखों का सपना
सपनो की दुनिया में
सच का आईना हूँ
जो समझे इस दिल को
उसकी प्रीत हूँ
मैं ... पर लिखी दोनों रचनाएँ सुन्दर हैं ...कहीं आप खुद में खुद को सहेज रही हैं तो कहीं साथ दे रही हैं ...
बहुत खूब.
अनु जी आप की तो हर कविता बहुत अच्छी होती हे इसिलए कुछ शब्द नहीं हे मेरे पास
मेरी समझ में यह नही आ रहा है कि यह ‘मैं’ क्या-क्या नहीं है? इतना सब कुझ केवल ‘मैं’...बहुत ही सुन्दर...बधाई
SAKHI hun tumhari......
Duur hun tum se phir bhi dil ke kareeb hun...
Dil ki dhadkan se nahi dhadkan hun.
Har soch me basi ek soch hun.
....... kya baat he.... sakhi or sakha ka to jeevan bhar ka santh he is riste me radha kishan sa ahsas he.n tum se phir bhi dil ke kareeb hun...
Dil ki dhadkan se nahi dhadkan hun.
Har soch me basi ek soch hun.
....... kya baat he.... sakhi or sakha ka to jeevan bhar ka santh he is riste me radha kishan sa ahsas he.
वाह!! बहुत उम्दा....
बहुत सुन्दर ढ़ग से, सहजता से मैं को अभिव्यक्त किया है आपने. धन्यवाद.
बहुत अच्छी कविताएं हैं अनु जी ! लिखते रहिए । अपने पुराने मित्र कैलाश आदमी जी का प्रमाण पत्र देखकर और अच्छा लगा ।
भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह! बहुत सुन्दर!
कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
kitni khoobsurati se piroyaa hai aapne bhavnaao ko.
जो समझे इस दिल को
उसकी प्रीत हूँ
ना समझने वालो के लिए
सिर्फ अतीत हूँ...wah wah wah wah
आपकी ये ख़ूबसूसर रचना कल मंगलवार के चर्चामंच पर भी है आप इस लिंक http://charchamanch.blogspot.com/ पर आएं और अपने विचारों से अवगत कराएं
दूर हूँ तुम से फिर भी
दिल के करीब हूँ...
दिल में धड़कन सी ही नहीं
धड़कन हूँ
तुम्हारी हर सोच में बसी
एक सोच हूँ
प्रणाम ! बेहद सुंदर अभिव्यक्ति , आप कि नज़र अपनी अभिव्यक्ति '' मैं , मैं हो कर भी मैं नहीं /जब तुम मुझे संबोधन में तुम कहती हो और मैं तुम और मैं में विलीन हो जाता हूँ ''
सादर
दूर हूँ तुम से फिर भी
दिल के करीब हूँ...
दिल में धड़कन सी ही नहीं
धड़कन हूँ
तुम्हारी हर सोच में बसी
एक सोच हूँ
bhavook prastuti.......
हुत ही अच्छी प्रस्तुति
क्या बात है.गद्य कविता इतनी भी तरल हो सकती है.नदी की रवानी सी, चकित हुआ..अत्यंत प्रभावी पोस्ट!
हमज़बान की नयी पोस्ट मेन इटर बन गया शिवभक्त फुर्सत हो तो पढें
वाह। क्या चित्रण किया है आपने। शानदार।
Pahli baar aayee hun aapke blog pe! Bahut,bahut achha laga!
चकित करती है आपकी कविता....'एक मैं' के दो रूप और कविता में नदी सा प्रवाह...बहुत सुन्दर
मै का सुंदर चित्रण अच्छी भावाव्यक्ति बधाई
"बोलती आँखों की भाषा.
सोचती आँखों का सपना
सपनो की दुनिया में
सच का आईना हूँ
जो समझे इस दिल को
उसकी प्रीत हूँ
ना समझने वालो के लिए
सिर्फ अतीत हूँ.."सुन्दर भाव और उतना ही सुन्दर सम्प्रेषण
सुन्दर शब्द और उतने ही सुन्दर भाव...बहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
बहुत खूब ... खुद पर गरूर होना भी तो एक अदा है ...
लाजवाब लिखा है ..
आप सभी दोस्तों का शुक्रिया ....मेरी कविता को पढने का
ऐसे ही मेरा हौंसला बढ़ाते रहे ......आभार
क्या कहने, बहुत सुंदर..
iss "main" me jo mere liye "tum" ho...khubsurat sa ek pyara sa dost najar aa raha hai:)
वाह...वाह...वाह
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सुन्दर रचना बधाई
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