क्यों मौन है ये ताश के पत्ते सी घर की चारदीवारी
आँख खुली तो अन्याय को
तांडव करते हुए पाया
अवतरण के वक़्त मुसीबतों ने ही
अमंगल गीत था गाया
अन्याय का दर्द भोग रही
हर श्वांस
पल पल कसता
मुसीबतों का घेरा सा |
हर किसी की एक नई जिन्दगी जो
जो शुरू होती है ....ब्याहा से ,
हर किसी को रास नहीं आती है ..
वे शादियाँ जिन में
खटास आ चुकी है
वे झगड़ते हुए दम्पति
क्यों नहीं ....खुद को एक बार
मौका देते ...
क्यूँ लम्हा -लम्हा सुलग रहे
खुद के ही भीतर वो
क्यों नहीं अपनी कहानियों
का अंत कर देते
क्यों नहीं उनकी तनी
हुई भवें ...झुक जाती |
स्वमं को मानव कहने वाले
क्यूँ झगड़ते है जानवर सामान
एक जंगली मानसिकता
जिसके है वो दोनों ही
शिकार
कोई कानून नहीं,
ना ही कोई व्यवस्था
जिसका करना है पालन उनको
उनके घर छाया
सर्वत्र जंगलराज
मेरा सिर्फ उनसे इतना है कहना
हर वो वैवाहिक ...
जो झगड़ते है
कृपया ..कृपया
अपनी अपनी असहमति
से सहमत हो जाये
अपने वाणों के
चाकू ,अपने काँटें...
अपनी नकली हँसीं..
लेकर ...नकली आंसूं
ना बहाएँ
क्यों कि प्रेम के
मुहाने पर
अभी तक आंसुओ के लिए जगह है
लेकिन रिश्तो के अस्त होने पर
आप लोग ....खुद को
घायल करने या काट खाने के लिए
अपने कटु बाणों के
तीर लिए
बिस्तर पर ना जाए |
क्यूँ कि-शब्दों के प्रहार से
घायल है उनके अपनों
की ही जिंदगियां
वो लोग देखे और बतलाये कि
क्यों ..मौन है ये ताश के पत्ते
सी घर की चारदीवारी
क्यों अधूरी है उनकी जिन्दगियाँ
अपनों के बिना ?
अनु
32 comments:
Thoda alag vichar....
Samvedansheelta se paripurn.....
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
अहम एक बहुत बड़ी चीज़ हो गई है आज के दौर में ... इस अहम से पार नहीं जाते लोग .... अच्छा लिखा है बहुत ...
खूबसूरत कविता... अहम् मानव जीवन के पतन का कारण है...
दोनों की अपनी अपनी सोंच के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा अच्छी रचना .
अहम से दूर रहना ही अच्छा है।
सादर
सोचने पर विवश करती अच्छी प्रस्तुति ...
सही सोच.
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक,लाना न हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा.
एक दमदार अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें.
kitna bada aur kitna sahi prashn uthaya hai ... prashn uthte hi raahen nikalti hain
हर रिश्ता प्रेम पर आधारित है,जहां,जब भी,हम उसे कोई नाम देते हैं तो,वह एक औपचारिकता
बन जाती है.
रिश्तों को कोई नाम ना दो,प्यार को प्यार ही रहने दो.
आपकी रचना इसी पीडा को व्यक्त करती है.
हर रिश्ता प्रेम पर आधारित है,जहां,जब भी,हम उसे कोई नाम देते हैं तो,वह एक औपचारिकता
बन जाती है.
रिश्तों को कोई नाम ना दो,प्यार को प्यार ही रहने दो.
आपकी रचना इसी पीडा को व्यक्त करती है.
क्या खूब रेखांकन किया है अनुजी देहरी के भीतर की दुनिया का ..... हर पंक्ति सच से रुरु करवाती हुई.....
i am speech less..bahut badiyaa..
जबरदस्त!!
गहन रचना!!
behtareen abhivyakti
आम किन्तु अछूते विषय पर एक गंभीर/चिंतनोनमुख करती सार्थक रचना....
सादर बधाई...
har ki apni value hai, par ham apni value kuchh jayda hi dekh lete hain... aur apne sahchar ke samne to ye jayda hi ho jata hai......!!
bahut khubsurat rachna...
god bless my freind!
सुन्दर शब्द और अद्भुत भाव लिए अप्रतिम रचना ...बधाई
नीरज
बहुत ही सुंदर रचना अच्छी प्रस्तुति ...!
एक संवेदनशील विषय पर बहुत सटीक और सुंदर अभिव्यक्ति ।
वाह, बहुत सुंदर रचना,
विचारों का प्रवाह सराहनीय
बहुत बहुत शुभकामनाएं
waah Di, kya baat hai is rachna ne bahut kuch sochne pe majbur ker diya .......
bahut pyari bahut hi bhavmayi, sunder rachna ke liye aaapko bahut bahut badhai
बेहद सुन्दर ! आप एक साथ इतने सारे ब्लॉग से जुडी हुई है और कुशलतापूर्वक संभाल भी रही है बहुत सराहनीय है !
विचारणीय रचना
वाह क्या खूब लिखा है !!
आज की ज्वलंत समस्या को बेहद खुबसूरत अंदाज में लिखा है..
anuji..aaj pahli baar aapke blog per aana hua..behtarin rachna ke liye sadar badhayee..swasthya ki bajah se aaj kaphi antral ke baad blog per aana hua...punah hardik badhayee ke sath
स्वमं को मानव कहने वाले
क्यूँ झगड़ते है जानवर सामान
एक जंगली मानसिकता
जिसके है वो दोनों ही
शिकार
वर्तमान सन्दर्भों को उद्घाटित करती आपकी यह रचना प्रासंगिक है .....!
हमेशा की तरह बहुत सुंदर अनु जी
आभार...
बहुत सुन्दर और सटीक रचना....
Great blog!! You should start many more. I love all the info provided. I will stay tuned
From everything is canvas
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