Sunday, November 20, 2011


क्यों मौन है ये ताश के पत्ते सी घर की चारदीवारी

आँख खुली तो अन्याय को
तांडव करते हुए पाया
अवतरण के वक़्त मुसीबतों ने ही
अमंगल गीत था गाया
अन्याय का दर्द भोग रही
हर श्वांस
पल पल कसता
मुसीबतों का घेरा सा |

हर किसी की एक नई जिन्दगी जो
जो शुरू होती है ....ब्याहा से ,
हर किसी को रास नहीं आती है ..
वे शादियाँ जिन में
खटास चुकी है
वे झगड़ते हुए दम्पति
क्यों नहीं ....खुद को एक बार
मौका देते ...
क्यूँ लम्हा -लम्हा सुलग रहे
खुद के ही भीतर वो
क्यों नहीं अपनी कहानियों
का अंत कर देते
क्यों नहीं उनकी तनी
हुई भवें ...झुक जाती |

स्वमं को मानव कहने वाले
क्यूँ झगड़ते है जानवर सामान
एक जंगली मानसिकता
जिसके है वो दोनों ही
शिकार
कोई कानून नहीं,
ना ही कोई व्यवस्था
जिसका करना है पालन उनको
उनके घर छाया
सर्वत्र जंगलराज

मेरा सिर्फ उनसे इतना है कहना
हर वो वैवाहिक ...
जो झगड़ते है
कृपया ..कृपया
अपनी अपनी असहमति
से सहमत हो जाये
अपने वाणों के
चाकू ,अपने काँटें...
अपनी नकली हँसीं..
लेकर ...नकली आंसूं
ना बहाएँ
क्यों कि प्रेम के
मुहाने पर
अभी
तक आंसुओ के लिए जगह है
लेकिन रिश्तो के अस्त होने पर
आप लोग ....खुद को
घायल करने या काट खाने के लिए
अपने कटु बाणों के
तीर लिए
बिस्तर पर ना जाए |

क्यूँ कि-शब्दों के प्रहार से
घायल है उनके अपनों
की ही जिंदगियां
वो लोग देखे और बतलाये कि
क्यों ..मौन है ये ताश के पत्ते
सी घर की चारदीवारी
क्यों अधूरी है उनकी जिन्दगियाँ
अपनों के बिना ?

अनु

32 comments:

Prakash Jain said...

Thoda alag vichar....
Samvedansheelta se paripurn.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

दिगम्बर नासवा said...

अहम एक बहुत बड़ी चीज़ हो गई है आज के दौर में ... इस अहम से पार नहीं जाते लोग .... अच्छा लिखा है बहुत ...

अरुण चन्द्र रॉय said...

खूबसूरत कविता... अहम् मानव जीवन के पतन का कारण है...

Sunil Kumar said...

दोनों की अपनी अपनी सोंच के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा अच्छी रचना .

Yashwant R. B. Mathur said...

अहम से दूर रहना ही अच्छा है।

सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सोचने पर विवश करती अच्छी प्रस्तुति ...

विशाल said...

सही सोच.

वो अफ़साना जिसे अंजाम तक,लाना न हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा.

एक दमदार अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें.

रश्मि प्रभा... said...

kitna bada aur kitna sahi prashn uthaya hai ... prashn uthte hi raahen nikalti hain

मन के - मनके said...

हर रिश्ता प्रेम पर आधारित है,जहां,जब भी,हम उसे कोई नाम देते हैं तो,वह एक औपचारिकता
बन जाती है.
रिश्तों को कोई नाम ना दो,प्यार को प्यार ही रहने दो.
आपकी रचना इसी पीडा को व्यक्त करती है.

मन के - मनके said...

हर रिश्ता प्रेम पर आधारित है,जहां,जब भी,हम उसे कोई नाम देते हैं तो,वह एक औपचारिकता
बन जाती है.
रिश्तों को कोई नाम ना दो,प्यार को प्यार ही रहने दो.
आपकी रचना इसी पीडा को व्यक्त करती है.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

क्या खूब रेखांकन किया है अनुजी देहरी के भीतर की दुनिया का ..... हर पंक्ति सच से रुरु करवाती हुई.....

poonam said...

i am speech less..bahut badiyaa..

Udan Tashtari said...

जबरदस्त!!

Udan Tashtari said...

गहन रचना!!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

behtareen abhivyakti

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

आम किन्तु अछूते विषय पर एक गंभीर/चिंतनोनमुख करती सार्थक रचना....
सादर बधाई...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

har ki apni value hai, par ham apni value kuchh jayda hi dekh lete hain... aur apne sahchar ke samne to ye jayda hi ho jata hai......!!
bahut khubsurat rachna...
god bless my freind!

नीरज गोस्वामी said...

सुन्दर शब्द और अद्भुत भाव लिए अप्रतिम रचना ...बधाई


नीरज

कुमार संतोष said...

बहुत ही सुंदर रचना अच्छी प्रस्तुति ...!

nilesh mathur said...

एक संवेदनशील विषय पर बहुत सटीक और सुंदर अभिव्यक्ति ।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

वाह, बहुत सुंदर रचना,
विचारों का प्रवाह सराहनीय
बहुत बहुत शुभकामनाएं

amrendra "amar" said...

waah Di, kya baat hai is rachna ne bahut kuch sochne pe majbur ker diya .......
bahut pyari bahut hi bhavmayi, sunder rachna ke liye aaapko bahut bahut badhai

Jeevan Pushp said...

बेहद सुन्दर ! आप एक साथ इतने सारे ब्लॉग से जुडी हुई है और कुशलतापूर्वक संभाल भी रही है बहुत सराहनीय है !

Vandana Ramasingh said...

विचारणीय रचना

संजय भास्‍कर said...

वाह क्या खूब लिखा है !!

Amrita Tanmay said...

आज की ज्वलंत समस्या को बेहद खुबसूरत अंदाज में लिखा है..

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

anuji..aaj pahli baar aapke blog per aana hua..behtarin rachna ke liye sadar badhayee..swasthya ki bajah se aaj kaphi antral ke baad blog per aana hua...punah hardik badhayee ke sath

केवल राम said...

स्वमं को मानव कहने वाले
क्यूँ झगड़ते है जानवर सामान
एक जंगली मानसिकता
जिसके है वो दोनों ही
शिकार


वर्तमान सन्दर्भों को उद्घाटित करती आपकी यह रचना प्रासंगिक है .....!

Mahesh Barmate "Maahi" said...

हमेशा की तरह बहुत सुंदर अनु जी
आभार...

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर और सटीक रचना....

Always Unlucky said...

Great blog!! You should start many more. I love all the info provided. I will stay tuned
From everything is canvas