Tuesday, February 7, 2012

ख्याब ,प्यार और अलगाव





विजय कुमार सप्पत्ती जी के ब्लॉग पर .......मर्द और औरत ... कविता पढ़ने के बाद ....कुछ विचार उभरे ..जो शब्दों के  रूप में आपके सामने लेकर आई हूँ  ...

ख्याब ,प्यार और  अलगाव
अपने ख्यालो में मैं
मुद्दत से तुम से ही
मोहब्बत करती थी
रातो को जागती
और कभी सोती थी
खुद ही रोती थी ,
और आहें भी भरती थी ,
पर तुमसे कहते हुए
डरती थी ||

ना थी फूलो की तमन्ना
ना थी कभी किसी
गुलदस्ते की हसरत थी
मुझे तो खुद की
मोहब्बत से ,प्यार था
क्या कहूँ ,खुद को
एक भभकती मैं खुद में ही
एक आग थी |

ये प्रेम ...
एक अजीब सी आग में जल रहा था
जिसमें ,शीतलता और जलन 
एक साथ थी ,
पर मुझ पर ,
ये आग बन कर बरसी तो ....
मेरी खुद की पहचान
बदरी बन ,बरस गई
मुझ पर ही ||

इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया  ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने  विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||

अनु

43 comments:

Dr.NISHA MAHARANA said...

और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||bilkul shi bat ,bahut achchi prastuti.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सही ... मर्द और औरत में बांटने से प्यार तो खो ही जाता है...

बहुत सुंदर कविता.

अशोक सलूजा said...

खूबसूरत अंदाज़े बयाँ ....

विभूति" said...

बहुत ही खुबसूरत रचना...........बेहतरीन अंदाज़........

Nirantar said...

pyaar agar vaakai
pyaar hai to
bant nahee saktaa
gahraayee se sochiye

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति

NEW POST.... बोतल का दूध...

राजीव तनेजा said...

हर कोई इस दुनिया जहाँ में किसी ना किसी वजह से त्रस्त है...फिर भी अपने सपनों को पूरा करने में पूरी तरह से व्यस्त है...
कुछ भी कहें...आपका अन्दाज़ ए बयाँ निराला एवं मस्त है... :-)

Shaifali said...

अंजुजी, बहुत अच्छी और सच्ची लगी यह कविता. यह पंक्तियाँ -

मुझे तो खुद की
मोहब्बत से ,प्यार था

तो प्यार का स्वभाव दर्शाती है- मोहब्बत में हम खुदसे प्यार करने लगते है, किसी की चाहत में खुदको डुबोकर एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश हम करने लगते है. मोहब्बत इंसान की फितरत है मगर जहाँ मर्द और औरत होने का भाव समाज रेखांकित करता है, वही प्यार, दर्द और याद बन जाता है.

Aditya said...

मेरी खुद की पहचान
बदरी बन ,बरस गई
मुझ पर ही ||

subdar bhaav..:)

palchhin-aditya.blogspot.in

shikha varshney said...

बेहतरीन अंदाज ..न जाने कब प्यार के बीच ये औरत और मर्द का रूप आ जाता है.

Deepak Shukla said...

Anu ji...

Baant nahi sakta hai koi...
Bhav kisi se pyaar agar...
Do jan bhale hain dikhte sabko..
Ek jaan hoti hai andar...

Vijay ji ke blog par bhi yahi likha tha ki...khud ko mard aur unko aurat manenge to yah bhav sarvatga rahega.. Prem main samarpan ka bhav hota hai...aur samarpan main aham nahi hota... Priytam ko sarvasva samarpan ke bhav hi sarvopari hai...yahan bhale do shareer dikhte hain par aatma ek hoti hai... Ve aurat mard se aham main kabhi nahi bant sakte..

Sundar bhav...

Saadar..

Deepak..

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

beautiful

रश्मि प्रभा... said...

गहरी अभिव्यक्ति -
इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के

Fatan said...

वह था क्या ? जो मैं समझ न पाया था वही अब बन गया तेरे मेरे बीच की एक दीवार वह कोई कहता जिसे अदब कोई कहता जिसे रीत दुनिया की कुछ ने जिस्मानी नाम दिए क्यों न कह पाया कोई इश्क-ऐ-इबादत लाफ़ानी क्यूँ नाम दिए.

Jeevan Pushp said...

बहुत सार्थक प्रस्तुति !
आभार !

सदा said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

vandana gupta said...

्वजूद की दीवारों मे बंटा अस्तित्व अलगाव पर हीखत्म होता है।

Pallavi saxena said...

इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||
यथार्थ का आईना है आज आपकी यह पोस्ट...

केवल राम said...

ये प्रेम ...
एक अजीब सी आग में जल रहा था
जिसमें ,शीतलता और जलन
एक साथ थी ,
पर मुझ पर ,
ये आग बन कर बरसी तो ....
मेरी खुद की पहचान
बदरी बन ,बरस गई
मुझ पर ही ||


बेहतर अभिव्यक्ति ...! भावनाओं को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ...!

kalp verma said...

bahut sunder likha hai aapne lekin "जिसमें प्यार कहीं खो गया" ye last line shayad me kuch samajh nahi paya..????

Kailash Sharma said...

और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||

....बहुत सटीक और सुंदर अभिव्यक्ति...

Naveen Mani Tripathi said...

यही सच है अंजू जी जब भी प्यार किसी स्वार्थ की पूर्ती के लिए किया जाता है तो अंजाम भी यही होता है ......शायद जिसे हम प्यार समझ रहे हैं वह दो जरूरत मंदों का समझौता ही है | एक नशा जिसे लोग प्यार समझ बैठने की भूल करते हैं | फिल हाल आपकी रचना बेहद प्रभावशाली है .....सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई |

प्रेम सरोवर said...

और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया |


इस कविता के माध्यम से आपने अपनी अभिव्यक्ति को नया आयाम दिया है जो किसी भी संवेदनशाल व्यक्ति को अधीर कर देने में सार्थक सिद्ध होगी । मेरे नए पोस्ट "जय प्रकाश नारायण" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Vandana Ramasingh said...

बहुत सही कहा आपने बंटकर तो प्यार का वजूद खो ही जाता है

Vandana Ramasingh said...

बहुत सही कहा आपने बंटकर तो प्यार का वजूद खो ही जाता है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया |

वाह ..सटीक ..सत्य को कहती अच्छी प्रस्तुति

डॉ. मोनिका शर्मा said...

वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||

सटीक स्पष्ट अभिव्यक्ति .....

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत सुन्दर .. प्यार का यह अनालिसिस बहुत गहरा लगा... सुन्दर रचना..

Maheshwari kaneri said...

बहुत गहरी अभिव्यक्ति -...

उपेन्द्र नाथ said...

bahut hi gahre jajbat ke sath aapne prar ko parkha hai. sunder abhivayakti.

Santosh Kumar said...

और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||

बहुत सुन्दर और भावुक रचना..आभार.

rashmi ravija said...

बहुत ही खुबसूरत रचना......

महेन्‍द्र वर्मा said...

वाह,
कविता के भाव अनूठे हैं।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

mard aur aurat jabtak ek dusre ke purak tab tak prem, jis din alag alag astitva...bas gujarti zindagi aur ban jaate sirf ek purush aur stree.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति

MY NEW POST ...कामयाबी...

vidya said...

जाने कैसे आपकी ये रचना पढ़ नहीं पायी..
बहुत सुन्दर..सटीक और सच्ची बात...

सादर.

Naveen Mani Tripathi said...

और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया

wah kya khoob likha hai ....badhai anju ji .

amit kumar srivastava said...

'प्यार' को तो स्त्री पुरुष को एकाकार करना चाहिए..

Udan Tashtari said...

सुन्दर भाव!

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

dinesh aggarwal said...

सुन्दर भाव.....खूबसूरत अभिव्यक्ति....
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)

विवेक दुबे"निश्चल" said...

सुन्दर .......
शुभेच्छाओं के साथ.......