विजय कुमार सप्पत्ती जी के ब्लॉग पर .......मर्द और औरत ... कविता पढ़ने के बाद ....कुछ विचार उभरे ..जो शब्दों के रूप में आपके सामने लेकर आई हूँ ...
ख्याब ,प्यार और अलगाव
अपने ख्यालो में मैं
मुद्दत से तुम से ही
मोहब्बत करती थी
रातो को जागती
और कभी सोती थी
खुद ही रोती थी ,
और आहें भी भरती थी ,
पर तुमसे कहते हुए
डरती थी ||
ना थी फूलो की तमन्ना
ना थी कभी किसी
गुलदस्ते की हसरत थी
मुझे तो खुद की
मोहब्बत से ,प्यार था
क्या कहूँ ,खुद को
एक भभकती मैं खुद में ही
एक आग थी |
ये प्रेम ...
एक अजीब सी आग में जल रहा था
जिसमें ,शीतलता और जलन
एक साथ थी ,
पर मुझ पर ,
ये आग बन कर बरसी तो ....
मेरी खुद की पहचान
बदरी बन ,बरस गई
मुझ पर ही ||
इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||
अनु
43 comments:
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||bilkul shi bat ,bahut achchi prastuti.
बहुत सही ... मर्द और औरत में बांटने से प्यार तो खो ही जाता है...
बहुत सुंदर कविता.
खूबसूरत अंदाज़े बयाँ ....
बहुत ही खुबसूरत रचना...........बेहतरीन अंदाज़........
pyaar agar vaakai
pyaar hai to
bant nahee saktaa
gahraayee se sochiye
बहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति
NEW POST.... बोतल का दूध...
हर कोई इस दुनिया जहाँ में किसी ना किसी वजह से त्रस्त है...फिर भी अपने सपनों को पूरा करने में पूरी तरह से व्यस्त है...
कुछ भी कहें...आपका अन्दाज़ ए बयाँ निराला एवं मस्त है... :-)
अंजुजी, बहुत अच्छी और सच्ची लगी यह कविता. यह पंक्तियाँ -
मुझे तो खुद की
मोहब्बत से ,प्यार था
तो प्यार का स्वभाव दर्शाती है- मोहब्बत में हम खुदसे प्यार करने लगते है, किसी की चाहत में खुदको डुबोकर एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश हम करने लगते है. मोहब्बत इंसान की फितरत है मगर जहाँ मर्द और औरत होने का भाव समाज रेखांकित करता है, वही प्यार, दर्द और याद बन जाता है.
मेरी खुद की पहचान
बदरी बन ,बरस गई
मुझ पर ही ||
subdar bhaav..:)
palchhin-aditya.blogspot.in
बेहतरीन अंदाज ..न जाने कब प्यार के बीच ये औरत और मर्द का रूप आ जाता है.
Anu ji...
Baant nahi sakta hai koi...
Bhav kisi se pyaar agar...
Do jan bhale hain dikhte sabko..
Ek jaan hoti hai andar...
Vijay ji ke blog par bhi yahi likha tha ki...khud ko mard aur unko aurat manenge to yah bhav sarvatga rahega.. Prem main samarpan ka bhav hota hai...aur samarpan main aham nahi hota... Priytam ko sarvasva samarpan ke bhav hi sarvopari hai...yahan bhale do shareer dikhte hain par aatma ek hoti hai... Ve aurat mard se aham main kabhi nahi bant sakte..
Sundar bhav...
Saadar..
Deepak..
beautiful
गहरी अभिव्यक्ति -
इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
वह था क्या ? जो मैं समझ न पाया था वही अब बन गया तेरे मेरे बीच की एक दीवार वह कोई कहता जिसे अदब कोई कहता जिसे रीत दुनिया की कुछ ने जिस्मानी नाम दिए क्यों न कह पाया कोई इश्क-ऐ-इबादत लाफ़ानी क्यूँ नाम दिए.
बहुत सार्थक प्रस्तुति !
आभार !
बेहतरीन प्रस्तुति ।
्वजूद की दीवारों मे बंटा अस्तित्व अलगाव पर हीखत्म होता है।
इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||
यथार्थ का आईना है आज आपकी यह पोस्ट...
ये प्रेम ...
एक अजीब सी आग में जल रहा था
जिसमें ,शीतलता और जलन
एक साथ थी ,
पर मुझ पर ,
ये आग बन कर बरसी तो ....
मेरी खुद की पहचान
बदरी बन ,बरस गई
मुझ पर ही ||
बेहतर अभिव्यक्ति ...! भावनाओं को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ...!
bahut sunder likha hai aapne lekin "जिसमें प्यार कहीं खो गया" ye last line shayad me kuch samajh nahi paya..????
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||
....बहुत सटीक और सुंदर अभिव्यक्ति...
यही सच है अंजू जी जब भी प्यार किसी स्वार्थ की पूर्ती के लिए किया जाता है तो अंजाम भी यही होता है ......शायद जिसे हम प्यार समझ रहे हैं वह दो जरूरत मंदों का समझौता ही है | एक नशा जिसे लोग प्यार समझ बैठने की भूल करते हैं | फिल हाल आपकी रचना बेहद प्रभावशाली है .....सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई |
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया |
इस कविता के माध्यम से आपने अपनी अभिव्यक्ति को नया आयाम दिया है जो किसी भी संवेदनशाल व्यक्ति को अधीर कर देने में सार्थक सिद्ध होगी । मेरे नए पोस्ट "जय प्रकाश नारायण" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
बहुत सही कहा आपने बंटकर तो प्यार का वजूद खो ही जाता है
बहुत सही कहा आपने बंटकर तो प्यार का वजूद खो ही जाता है
इस प्यार ने कब हमको
मर्द और औरत में ,
बाँट दिया ...
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया |
वाह ..सटीक ..सत्य को कहती अच्छी प्रस्तुति
वजूद की दीवारे
कब ...दोनों के बीच
आ गई ...
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||
सटीक स्पष्ट अभिव्यक्ति .....
बहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.
बहुत सुन्दर .. प्यार का यह अनालिसिस बहुत गहरा लगा... सुन्दर रचना..
बहुत गहरी अभिव्यक्ति -...
bahut hi gahre jajbat ke sath aapne prar ko parkha hai. sunder abhivayakti.
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया ||
बहुत सुन्दर और भावुक रचना..आभार.
बहुत ही खुबसूरत रचना......
वाह,
कविता के भाव अनूठे हैं।
mard aur aurat jabtak ek dusre ke purak tab tak prem, jis din alag alag astitva...bas gujarti zindagi aur ban jaate sirf ek purush aur stree.
बहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति
MY NEW POST ...कामयाबी...
जाने कैसे आपकी ये रचना पढ़ नहीं पायी..
बहुत सुन्दर..सटीक और सच्ची बात...
सादर.
और प्यार ने विलीन हो कर
टुकड़े कर दिए ,हम दोनों के
मर्द और औरत के रूप में ,
जिसमें प्यार कहीं खो गया
wah kya khoob likha hai ....badhai anju ji .
'प्यार' को तो स्त्री पुरुष को एकाकार करना चाहिए..
सुन्दर भाव!
बेहतरीन!!
सुन्दर भाव.....खूबसूरत अभिव्यक्ति....
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
सुन्दर .......
शुभेच्छाओं के साथ.......
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