क्षितिजा
तुम कहते हो
निकलता हुआ चाँद
मुझे ही ताकता है
पर हर सांझ वो
मुझे बहुत रुलाता है
जब तुम से बिछड़ कर
जाने का वक़्त करीब
आता है ..
तुम से बिछड़ने से पहले
मैं खुद में विस्तार पाती हूँ
कनपटियों पर बजती हैं
खड़-खड़ उसाँस तुम्हारी
और
तुम्हारी ही हँसी के
चाँदी जैसे कण
बिखरने लगते है
मेरे चारो ओर
यह खंड-खंड टूटता हुआ सूरज
और फटता हुआ मेरा मासूम ह्रदय
किसी तरह भी
रोक नहीं पाता
क्यों..
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी किरण
दे जाने को एक नई
सांझ जीवन की
उठती हुई ...क्षितिजा को ||
अनु
39 comments:
बहुत सुन्दर अंजू जी....
प्यारी सी रचना...
अनु
bahut hi bhavpoorn abhivyakti hai....
एक प्यारी सी सुन्दर रचना...
बहुत भावपूर्ण और सुंदर अभिव्यक्ति! बधाई!
बहुत सुंदर रचना
क्या बात है
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी किरण
दे जाने को एक नई
सांझ जीवन की
उठती हुई ...क्षितिजा को ||
बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं भाव ....
bhetreen
सुन्दर भावों से सजी
बहुत ही सुन्दर , बेहतरीन रचना...
:-)
सुन्दर भावों से सजी
बहुत ही सुन्दर , बेहतरीन रचना...
:-)
क्षितिजा पा लेती हर दिन की आखिरी किरण से एक नई सांझ जीवन की... बहुत सुन्दर रचना
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी किरण
दे जाने को एक नई
सांझ जीवन की
उठती हुई ...क्षितिजा को ||
बहुत सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,
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बेहतर रचना ...!
तुम्हारी ही हँसी के
चाँदी जैसे कण
बिखरने लगते है
मेरे चारो ओर
यह खंड-खंड टूटता हुआ सूरज
और फटता हुआ मेरा मासूम ह्रदय
मिलन और विरह के कतरे बहुत हो गए ...
तुम कहते हो
निकलता हुआ चाँद
मुझे ही ताकता है
पर हर सांझ वो
मुझे बहुत रुलाता है
जब तुम से बिछड़ कर
जाने का वक़्त करीब
आता है .."
बहुत सुन्दर अंजू...
'क्षितिजा' शीर्षक बहुत पसंद आया. कविता भी उतनी ही सुन्दर.
bhavpurn panktiyon ke liye badhai di
तुम्हारी ही हँसी के
चाँदी जैसे कण
बिखरने लगते है
मेरे चारो ओर
यह खंड-खंड टूटता हुआ सूरज
और फटता हुआ मेरा मासूम ह्रदय
बहुत मासूम सी कविता...सुंदर भाव !
भावमय करते शब्दों का संगम ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
वाकई...क्षितिजा उठती हुई..सुन्दर रचना.. अंजू जी.
बहुत सुन्दर भाव संयोजन
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी किरण
दे जाने को एक नई
सांझ जीवन की
....बहुत भावपूर्ण कोमल अहसास...सुन्दर रचना ...
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है हर दिन की आखिरी किरण दे जाने को एक नई सांझ जीवन की उठती हुई ...क्षितिजा को ||
..........सुंदर भाव बेहतरीन रचना
ये जीवन भी तो ऐसे ही चलता रहता है ...
गहरे भाव लिए रचना ...
अत्यंत सशक्त भाव लिये एक सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी किरण
दे जाने को एक नई
सांझ जीवन की
उठती हुई ...क्षितिजा को ||
ह्रदय की संवेदना को जगाती यह भावपूर्ण कविता...अच्छी लगी...बधाई
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी किरण
सुन्दर भाव सुन्दर बिम्ब
सुन्दर सृजन , बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .
कनपटियों पर बजती हैं
खड़-खड़ उसाँस तुम्हारी
-क्या बात है!!
आपकी प्रकृति 'प्रकृति' के बेहद करीब है |
सुंदर रचना , बधाई अनु !
अनुपम भावमय प्रस्तुति.
दिलकश चित्र.
बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
natural living is being disturbed theses days... beautiful expression Anu jee..
खुबसूरत रचना....
सादर बधाई.
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी किरण
जुदाई बड़ी बेरहम होती है .
पर हर सांझ वो
मुझे बहुत रुलाता है
जब तुम से बिछड़ कर
जाने का वक़्त करीब
आता है ..
सुंदर ...
मिलन की ख़ुशी और विरह की पीड़ा सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है आपने ....
email se mila comment
प्रिय अनु जी
सादर नमन
आपकी हर पोस्ट सदैव अच्छी लगती हैं परंतु अक्सर प्रतिक्रिया रह जाती है! आपको इस पुनीत कार्य हेतु साधुवाद! आप स्वस्थ और सानंद रहें तथा यह यात्रा यूँ ही अनवरत चलती रहे, यही कामना है!अपना स्नेह और लेखन में गतिशीलता बनाए रखें!
हार्दिक धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
ब्लॉग: http://sarikamukesh.blogspot.in/
रिय अनु जी
सादर नमन
............
बंधी मुट्ठियों से फिसलती है
हर दिन की आखिरी किरण
दे जाने को एक नई
सांझ जीवन की
उठती हुई ...क्षितिजा को ||
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ, आभार! लेखन में यूँ ही गतिशीलता बनाए रखें!
हार्दिक धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
ब्लॉग: http://sarikamukesh.blogspot.in/
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