क्षितिजा ...मेरी बाल्यावस्था
कस्तूरी ... लेखन का यौवन रूप रंग लिए
अरुणिमा ...एक परिपक्व सोच ...
बहुत दुःख होता है जब एक पढ़ा लिखा इंसान ...किसी भी भाषा पर कोई टिप्पणी करता है और उसके लेखन पर उँगलियाँ उठायी जाती हैं .बहुत दिनों से इस बारे में लिखने के लिए सोच रही थी ,बहुत से लोगों को देखा और पढ़ा कि जिसका मन आता है वो लेखन के कार्य या लेखन से जुड़े संपादन को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक कुछ भी कह देता है पर अभी यहाँ पहले मैं बात करुँगी ....भाषा की .हर भाषा का अपना सम्मान है ये बात हम सबको समझनी होगी ....हिन्दुस्तान एक ऐसा मुल्क है जहाँ हर कुछ km के बाद भाषा बदल जाती है इसका मतलब ये नहीं कि आपको जिस भाषा में महारत हासिल है उसके अतिरिक्त आप दूसरों की भाषा को अपने भद्दे शब्दों से नवाज़ देंगे .....अपनी भाषा को महान और दूसरे हो हीन समझने वालो से मेरा बस एक ही प्रश्न है ...कि क्या आप अपनी सभ्य भाषा सीख कर पैदा हुए थे और कैसे पढ़े लिखे इंसान है आप लोग ...जो दूसरों की भाषा को ,उनकी बातों को और उनके द्वारा किए गए कार्यों की सरहना नहीं कर सकते ...आप का बड़प्पन तब होता जब आप अपने से कमतर को अपने साथ लेकर चलते ...उन्हें अपनी भाषा और अपने जितना ही सम्मान देते ...चलिए सम्मान ना सही ...पर अपने शब्दों से उन्हें और उनके आत्मविश्वास को खंडित ना करते ...ये कैसी पढ़ाई है ...ये कैसा भाषा का फर्क है जो हम इंसानों को ही बांटने पर तुली है | मुझे यहाँ कहने पर ज़रा भी अफ़सोस नहीं है कि ...हमारे यहाँ के पढ़े लिखे तबके से अच्छे बाहर के मुल्क के अनपढ़ लोग है ...जो भाषा ना समझ आने पर भी ईशारो से आपको बात समझा देते है और आपकी बात समझ लेते हैं | यहाँ एक बात उदारहण दे कर जरुर कहूँगी ...कि कुछ साल पहले मैं और मेरे पति ..सिंगापुर ...स्टार क्रूज (ship)पर घूमने गए थे ..वहाँ हर काम कार्ड से होता था ...कमरे से लेकर ...खाना पीना और शौपिंग भी ,अगर कार्ड नहीं तो आप वापिस बिना कार्ड के उस शिप से सिंगापुर शहर भी नहीं जा सकते थे ...और वो ही कीमती कार्ड मेरे पति से कहीं खो गया ...हम दोनों के अलावा वहाँ के अन्य लोग भी परेशां हो गए ....सबने मिल कर कार्ड ढूंढा पर वो नहीं मिला ...तो किसी की सलाह पर हमने फिर से कार्ड बनवाने की कोशिश की ...अब इस में अड़चन ये थी कि ...सिंगापुर ...स्टार क्रूज शिप पर काम करने वाले वर्करों को इंग्लिश नहीं आती थी और हमको वहाँ की भाषा थाई समझ नहीं आ रही थी | टूटी फूटी हिंदी और ईशारो से हमने उन्हें अपनी बात समझा दी ...मज़े की बात तो देखिए ...वो हिंदी ...भले ही टूटी-फूटी ही सही , समझ गए ...जब कि मैं उस वक्त लगातार उन्हें इंग्लिश में बात समझाने की बहुत कोशिश कर रही थी ...वही ...मेरे पति जिनका इंग्लिश को लेकर ज्ञान ...बहुत कम है ...उन्होंने उस वर्कर को अपने इशारों और टूटी-फूटी हिंदी में इतने अच्छे से बात समझा दी कि मुझे उस वक्त अपने पति पे गर्व महसूस हो रहा था ...और उन्हें इंग्लिश ना आने का मलाल उस वक्त रत्तीभर भी नहीं था ....उस वक्त ये बात हमने बहुत हल्के से ली थी ....पर आज जब भी इस बात को याद करती हूँ तो मन में सोचती हूँ कि ...उफ़ पढ़े लिखे अनपढ़ अगर ये हिंदी ना होती तो ...तुम इंग्लिश बोलने वालो को आज कौन पहचानता ? इंग्लिश इंग्लिश कहने वाले ये क्यों भूल जाते है कि इंग्लिश को हिन्दुस्तान ई ज़मीन पर हिंदी ने ही जन्म दिया है तो हिंदी माँ हुई इस इंग्लिश की ,और आज बेटा ही अपनी माँ को बुरा कहता है ,गालियाँ देता है ...कैसा वक्त आ गया है कि सच में बहुत अफ़सोस होता है कि जब अपने ही देश में हिंदी और क्षेत्रीय भाषा को हीनभावना से देखा जाता है ...हम ये क्यों भूल जाते है कि जब भी हम अपने देश के किसी भी पाँच सितारा होटल में जाते हैं तो वहाँ दरबान से लेकर स्वागत करने वाले हमको नमस्ते करते है ...और हिंदी में ही कहते और पूछते है कि ''स्वागत है आपका ...हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं ?''......बाकि इंग्लिश बाद में आती है .....इसके बाद मुझे नहीं लगता की हम हिंदी को निम्न स्तरीय भाषा का स्तर दे || संस्कृत ,उर्दू ,पंजाबी, कश्मीरी ,गुजरती ,उड़िया ,असमिया ,भोजपुरी आदि ...हर क्षेत्र की अपनी भाषा से ही पहचान है ....फिर सिर्फ हिंदी को ही निशाना क्यों बनाया जाता है .....क्या ये सच में इतनी खराब है कि हम सब इस से बचते है ....फिर क्यों एक बच्चा सबके पहले माँ...बुआ .तातातातातात ..दादी या दादू ...क्यों बोलता है ...वो mom(मोम)...आंटी या अंकल क्यों नहीं बोलता ???????और सबसे बडी बात ...हिंदी को निम्न बताने वाले हमेशा गालीगलौच हिंदी में या अपनी क्षेत्रीय भाषा में क्यों देते है ? इंग्लिश में गाली देना बर्जित है क्या ...या इंग्लिश में गाली ,गाली नहीं लगती ?
जल उठे नयन में स्वप्न
जीवन मेरा निष्कंप
लौं से मिल गई लौं
चमक उठी बिजलियां
पथ के रथ चक्रों से
लपटों को ओढ़
निशा भी अब है मुस्काई ||
अंजु (अनु)
कस्तूरी ... लेखन का यौवन रूप रंग लिए
बहुत दुःख होता है जब एक पढ़ा लिखा इंसान ...किसी भी भाषा पर कोई टिप्पणी करता है और उसके लेखन पर उँगलियाँ उठायी जाती हैं .बहुत दिनों से इस बारे में लिखने के लिए सोच रही थी ,बहुत से लोगों को देखा और पढ़ा कि जिसका मन आता है वो लेखन के कार्य या लेखन से जुड़े संपादन को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक कुछ भी कह देता है पर अभी यहाँ पहले मैं बात करुँगी ....भाषा की .हर भाषा का अपना सम्मान है ये बात हम सबको समझनी होगी ....हिन्दुस्तान एक ऐसा मुल्क है जहाँ हर कुछ km के बाद भाषा बदल जाती है इसका मतलब ये नहीं कि आपको जिस भाषा में महारत हासिल है उसके अतिरिक्त आप दूसरों की भाषा को अपने भद्दे शब्दों से नवाज़ देंगे .....अपनी भाषा को महान और दूसरे हो हीन समझने वालो से मेरा बस एक ही प्रश्न है ...कि क्या आप अपनी सभ्य भाषा सीख कर पैदा हुए थे और कैसे पढ़े लिखे इंसान है आप लोग ...जो दूसरों की भाषा को ,उनकी बातों को और उनके द्वारा किए गए कार्यों की सरहना नहीं कर सकते ...आप का बड़प्पन तब होता जब आप अपने से कमतर को अपने साथ लेकर चलते ...उन्हें अपनी भाषा और अपने जितना ही सम्मान देते ...चलिए सम्मान ना सही ...पर अपने शब्दों से उन्हें और उनके आत्मविश्वास को खंडित ना करते ...ये कैसी पढ़ाई है ...ये कैसा भाषा का फर्क है जो हम इंसानों को ही बांटने पर तुली है | मुझे यहाँ कहने पर ज़रा भी अफ़सोस नहीं है कि ...हमारे यहाँ के पढ़े लिखे तबके से अच्छे बाहर के मुल्क के अनपढ़ लोग है ...जो भाषा ना समझ आने पर भी ईशारो से आपको बात समझा देते है और आपकी बात समझ लेते हैं | यहाँ एक बात उदारहण दे कर जरुर कहूँगी ...कि कुछ साल पहले मैं और मेरे पति ..सिंगापुर ...स्टार क्रूज (ship)पर घूमने गए थे ..वहाँ हर काम कार्ड से होता था ...कमरे से लेकर ...खाना पीना और शौपिंग भी ,अगर कार्ड नहीं तो आप वापिस बिना कार्ड के उस शिप से सिंगापुर शहर भी नहीं जा सकते थे ...और वो ही कीमती कार्ड मेरे पति से कहीं खो गया ...हम दोनों के अलावा वहाँ के अन्य लोग भी परेशां हो गए ....सबने मिल कर कार्ड ढूंढा पर वो नहीं मिला ...तो किसी की सलाह पर हमने फिर से कार्ड बनवाने की कोशिश की ...अब इस में अड़चन ये थी कि ...सिंगापुर ...स्टार क्रूज शिप पर काम करने वाले वर्करों को इंग्लिश नहीं आती थी और हमको वहाँ की भाषा थाई समझ नहीं आ रही थी | टूटी फूटी हिंदी और ईशारो से हमने उन्हें अपनी बात समझा दी ...मज़े की बात तो देखिए ...वो हिंदी ...भले ही टूटी-फूटी ही सही , समझ गए ...जब कि मैं उस वक्त लगातार उन्हें इंग्लिश में बात समझाने की बहुत कोशिश कर रही थी ...वही ...मेरे पति जिनका इंग्लिश को लेकर ज्ञान ...बहुत कम है ...उन्होंने उस वर्कर को अपने इशारों और टूटी-फूटी हिंदी में इतने अच्छे से बात समझा दी कि मुझे उस वक्त अपने पति पे गर्व महसूस हो रहा था ...और उन्हें इंग्लिश ना आने का मलाल उस वक्त रत्तीभर भी नहीं था ....उस वक्त ये बात हमने बहुत हल्के से ली थी ....पर आज जब भी इस बात को याद करती हूँ तो मन में सोचती हूँ कि ...उफ़ पढ़े लिखे अनपढ़ अगर ये हिंदी ना होती तो ...तुम इंग्लिश बोलने वालो को आज कौन पहचानता ? इंग्लिश इंग्लिश कहने वाले ये क्यों भूल जाते है कि इंग्लिश को हिन्दुस्तान ई ज़मीन पर हिंदी ने ही जन्म दिया है तो हिंदी माँ हुई इस इंग्लिश की ,और आज बेटा ही अपनी माँ को बुरा कहता है ,गालियाँ देता है ...कैसा वक्त आ गया है कि सच में बहुत अफ़सोस होता है कि जब अपने ही देश में हिंदी और क्षेत्रीय भाषा को हीनभावना से देखा जाता है ...हम ये क्यों भूल जाते है कि जब भी हम अपने देश के किसी भी पाँच सितारा होटल में जाते हैं तो वहाँ दरबान से लेकर स्वागत करने वाले हमको नमस्ते करते है ...और हिंदी में ही कहते और पूछते है कि ''स्वागत है आपका ...हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं ?''......बाकि इंग्लिश बाद में आती है .....इसके बाद मुझे नहीं लगता की हम हिंदी को निम्न स्तरीय भाषा का स्तर दे || संस्कृत ,उर्दू ,पंजाबी, कश्मीरी ,गुजरती ,उड़िया ,असमिया ,भोजपुरी आदि ...हर क्षेत्र की अपनी भाषा से ही पहचान है ....फिर सिर्फ हिंदी को ही निशाना क्यों बनाया जाता है .....क्या ये सच में इतनी खराब है कि हम सब इस से बचते है ....फिर क्यों एक बच्चा सबके पहले माँ...बुआ .तातातातातात ..दादी या दादू ...क्यों बोलता है ...वो mom(मोम)...आंटी या अंकल क्यों नहीं बोलता ???????और सबसे बडी बात ...हिंदी को निम्न बताने वाले हमेशा गालीगलौच हिंदी में या अपनी क्षेत्रीय भाषा में क्यों देते है ? इंग्लिश में गाली देना बर्जित है क्या ...या इंग्लिश में गाली ,गाली नहीं लगती ?
जैसे चप्पल अब विरोध का
प्रतीक बन गई है. बुश, चिदंबरम और कई दूसरी नामी हस्तियों को चप्पल मारी
गई उसी तरह इंग्लिश जानने वाले और बोलने वालो ने हिंदी को गाली देने का बीड़ा
भी उठा लिया है ....फिर भी मैं ये ही कहूँगी कि ये हिंदी मेरी है.....गर्व
है मुझे की मैं हिंदी में लिखती हूँ......और हिंदी से ही मेरी पहचान है |
अब बात आती है लेखन की ...लेखन और संपादन को ना समझने वालो से मैं बस इतना ही कहूँगी कि लिखना यानी कि खुद को खुद में खो देना ,शब्दों से खेलना ,उन्हें सोचना और फिर मन के भाव बना कर एक कागज़ पर उतार देना ...मन के भाव और शब्द मिल कर एक कविता या एक कहानी को जन्म देते है और जन्म लेना वाला अपनी हर अवस्था से गुज़रता है ...पैदा होते ही कोई भी बच्चा भागने नहीं लगता ,उसे भागने के लिए एक साल तक का इंतज़ार करना होता है ...फिर हम ये कैसे सोच लेते है कि लिखने वाला लिखना शुरू करते ही सबका गुरु बनके हम सबके बीच आएगा ...अरे भाई ...उसे भी अपने आप को निखारने में वक्त तो लगेगा ना |
और हर लिखने वाले को मैं ये जरुर कहूँगी कि......लिखने वाला /
वाली ..कभी अपने विचारों को दबाएँ नहीं उसे निरंतर लिखते रहे ,लिखना मंजिल
नहीं ..कोई गंतव्य नहीं वो तो एक साधना है ,एक अनंत यात्रा जिस पर कदम दर कदम हमको आगे बढ़ना है |लिखना
बुद्धूपन जरुर है पर पाप नहीं ...पर लेखन और संपादन पर कटाक्ष करने वाले
इसे पाप घोषित करने में लगे हुए हैं ,जो शब्द गीत बनने की ताकत रखते हैं
,उन्हें गाली बना का पेश किया जा रहा है ...ठीक है हम ये बुद्धूपन में ही
खुश है ,कम से कम इस में एक आत्मा को खुशी देने का
गुर तो है ,इसमें किसी के लिए जीवनभर की खुशी तो छिपी है ,एक ताजगी का
अहसास है जो जीवन में आगे बढ़ने का हौंसला देता है | इस क्षेत्र में सबकी
अपनी अपनी ज़मी है जिस पर कभी कविता तो कभी लेख ...तो कभी कभी कहानी जन्म लेती है.....सबके रंग रूप अलग अलग है पर विचारों की प्रभुता वही है जो मेरे मन में ...जो आपके मन में है ..फर्क बस सोच का है |मेरी कहानी (कमला दास ),एक नौकरानी की डायरी (कृष्ण बलदेव वैद),द्रौपदी (प्रतिभा राय )नौकर की कमीज (विनोद कुमार शुक्ल )स्पाउस शादी का सच (शोभा डे ) ये कुछ नाम है जिन्होंने ये सोच कर नहीं लिखा था कि वो लिखते ही हिट हो जाएंगे ...बस उन्होंने अपने मन की बातों को लिख दिया और ना ही ये पैदा होते ही लिखने लगे थे ....वक्त के साथ साथ इनके लेखन ने गति पकड़ी और ये लोग स्थापित होते चले गए |इसी विश्वास के साथ कि ...''एक मुट्ठी आसमां मेरा भी ''....अपने लेखन को कायम रखे ||अब बात आती है लेखन की ...लेखन और संपादन को ना समझने वालो से मैं बस इतना ही कहूँगी कि लिखना यानी कि खुद को खुद में खो देना ,शब्दों से खेलना ,उन्हें सोचना और फिर मन के भाव बना कर एक कागज़ पर उतार देना ...मन के भाव और शब्द मिल कर एक कविता या एक कहानी को जन्म देते है और जन्म लेना वाला अपनी हर अवस्था से गुज़रता है ...पैदा होते ही कोई भी बच्चा भागने नहीं लगता ,उसे भागने के लिए एक साल तक का इंतज़ार करना होता है ...फिर हम ये कैसे सोच लेते है कि लिखने वाला लिखना शुरू करते ही सबका गुरु बनके हम सबके बीच आएगा ...अरे भाई ...उसे भी अपने आप को निखारने में वक्त तो लगेगा ना |
जल उठे नयन में स्वप्न
जीवन मेरा निष्कंप
लौं से मिल गई लौं
चमक उठी बिजलियां
पथ के रथ चक्रों से
लपटों को ओढ़
निशा भी अब है मुस्काई ||
अंजु (अनु)
62 comments:
सुन्दर प्रस्तुति!
बधाई हो!
भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ!
भारतेंदु ने कहा था "निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति का मूल " . हो सकता है वो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे . हो सकता है उनको आंग्ल भाषा का ज्ञान होता तो वो हिंदी की ऐसी तैसी करते :) . बाकि लिखना पढना तो मनुष्य की सभ्यता की परिभाषा का मुख्य कारक है . बाकि तो आलोचना स्वस्थ रहे उसके लिए आजतक कोई टेबलेट नहीं बनी , अतः स्व- स्फूर्त लेखनी को नए आयाम देती रहिये .
बिल्कुल सही कहा अंजू………हिंदी पर हमें गर्व होना चाहिये और जब तक हम सम्मान नहीं करेंगे दूसरे से कैसे उम्मीद कर सकते हैं और जहाँ तक लेखन का सम्बन्ध है तो उस का बहुत सटीक आकलन किया है …………बस लिखते रहो लिखते रह…… चलते रहो चलते रहो की तरह मंज़िल तक जरूर पहुँचोगे ।
बहुत खूब
हिंदी लेखन पर मुझे भी गर्व है
मन के भावों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम भाषा
भाषा कोई भी हो, नहीं दे सकते मान, कोई बात नहीं
किन्तु करें न अनादर यही है मेरी अभिलाषा
अंजू जी ने एकदम सही बात कही है ......
राष्ट्र की अस्मिता को बचाए रखने के लिए
इन्ही सब चीजों की जरूरत होती है
सर्वप्रथम भाषा, वेश-भूषा आदि आदि
रचना के लिए बधाई .......
बढ़िया | आपने दुरुस्त फ़रमाया | हिंदी हमारी अपनी भाषा है और हमें हिंदी पर गर्व है |
बहुत सीधी सी बात है भाषा एक माध्यम है अभिव्यक्ति का. और हर पढ़े लिखे इंसान को दुसरे इंसान की अभिव्यक्ति का सम्मान करना चाहिए, तभी उसे पढ़ा लिखा कहा जा सकता है.
बाकी हिंदी को या हिंदी लेखन को गालियाँ देने वाले मुझे तो कुंठित ही लगते हैं.आप लिखती रहिये.
मुझे भी गर्व है हिंदी लेखन पर.
अत्यंत विचारणीय तथ्य को अभिव्यक्ति दी है आपने...सुन्दर...बधाई!!
मेरा कमेन्ट ?? शायद स्पाम में हो.
बिल्कुल सच कहा है. हमें हिंदी पर गर्व है...
लगता है किसी इन्डियन अंग्रेज से पाला पड गया आपका, जो शायद शंशय में हो , की उसकी उत्पत्ति कहाँ की हैं ? :) .. बहुत बढ़िया लिखा है .अंजू दी .
बधाई और शुभकामनायें आपको !
तुम्हारा कमेन्ट कहीं नहीं गया यही है ...:)))
शुक्रिया कमल......वैसे बात तुमने सही कही है :)))
आशीष जी ...एक स्वस्थ आलोचना हमेशा ही लाभदायक होती है..आपकी बात से मैं सहमत हूँ
शुक्रिया
आपको दीप पर्व की हार्दिक बधाई और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ..
डॉ. कमल हेतावल इंदौर
आपको दीप पर्व की हार्दिक बधाई और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ..
डॉ. कमल हेतावल इंदौर
अगर हम किसी के कहने से विचलित होंगे तो कमी नहीं हमें विचलित करने वालों की। क्यूँ न हम अपनी सीमाओं को पहचानें और उस सीमा में काम करें। भाषा संवाद के लिये होती है और आपके क्रूज़ के उदाहरण से स्पष्ट है संवाद महत्वपूर्ण है भाषा नहीं।
मै हिंदी भाषी नहीं हूं...मराठी भाषी हूँ...हिंदी मैंने सिर्फ पांचवी कक्षा तक एक विषय के रूप में ही पढ़ी है...फिर भी मुझे हिंदी भाषा के लिए जो सम्मान और प्रेम है, वह मुझे ल्हिंदी लेखन के क्षेत्र में खिंच कर लाया है!...क्षमा चाहती हूँ, अपने बारे में कुछ ज्यादा ही लिखा मैंने!
...आपके विचारों के साथ मै सम्पूर्ण तया सहमत हूँ!...हिंदी भाषा पर हम सभी को गर्व होना चाहिए..क्यों कि हम भारतीय है!..हिंदी है!
बहुत बढिया। आप जैसे लोगों का हिंदी के प्रति समर्पण वाकई लोगों के लिए प्रेरणा है। मैं हैरान हूं, पर सिंगापुर मे अगर क्रूज का कोई कर्मचारी हिंदी समझता है तो हमें हिंदी पर तो गर्व है ही, अपने पर भी है कि मैं हिंदी भाषी हूं।
आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं
बात को रखने का बहुत खूबसूरत अंदाज़ , हाँ हमें गर्व है कि हम हिंदी भाषी हैं बहुत सुन्दर लेख |
वाह अंजु ही बहुत ही बढ़िया एवं सार्थक आलेख लिखा है आपने आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ और मेरा मानना तो यह है कि कोई भी भाषा अपने आप में इतनी महान होती है कि कोई भी इंसान उसका परिहास कर ही नहीं सकता और जो करते हैं वह खुद को मूर्ख साबित करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, इसलिए मुझे किसी भी भाषा से कोई शिकायत नहीं है मैं हर भाषा का दिल से सम्मान करती हूँ। खासकर हिन्दी का क्यूंकि यह मेरे हिंदुस्तान की, मेरी अपनी मातृभाषा है। इसलिए मुझे भी गर्व है कि मैं हिन्दी में लिखती हूँ। जय हिन्द...
,लिखना मंजिल नहीं ..कोई गंतव्य नहीं वो तो एक साधना है ,एक अनंत यात्रा जिस पर कदम दर कदम हमको आगे बढ़ना है ....
बस यही मन में लगन होनी चाहिए .... और जो अपनी भाषा का सम्मान नहीं कर पाये वो किसी का भी सम्मान नहीं कर सकता ... हमें गर्व है हिन्दी पर और हम हिन्दी में लिखते हैं ....
मुझे भी गर्व है हिंदी भाषा के अपने ज्ञान पर....और पता है अंजु, जबसे कवितायें लिखने लगी हूँ मेरे बच्चों का भी रुझान हुआ है हिंदी की ओर...
और भाषा कोई भी उसका अपमान करने का हक़ किसी को नहीं...
आपकी उपलब्धियां हमें भी गौरवान्वित करती हैं...
प्यार और शुभकामनाएँ...
अनु
1. भाषा के संबंध में आपकी चिंता जायज है, हम इसी तरह गाहे बगाहे हिन्दी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते रहेंगें और अंग्रेजी वाले हर संभव नीचा दिखाने का प्रयास करते रहेंगें. 2. संपादन का महत्व यदि नहीं होता, तो हिन्दी साहित्य के इतिहास में तार सप्तकों का जिक्र नहीं होता और उंगलियों के अग्र पंक्ति में जिन रचनाकारों का नाम स्वाभाविक तौर पर आता है वह शायद अंतिम पंक्ति पर होते. संपादक तो रचनाकार से सदैव एक कदम आगे रहता है, उसे विधागत इतिहास उसके क्रमिक विकास और वर्तमान में हो रहे हलचलों का पूर्ण ज्ञान होता है. वह स्वयं एक कटु आलोचक भी होता है इसलिये इस संबंध में किसी भी प्रतिक्रिया की परवाह किए बिना कार्य करें.
nice..............................................
कमाल की बातें अंजू .... सुगमता से ठोस विचार हैं .मुझे पूरा विश्वास है कि तुम बहुत आगे जाओगी .
शुक्रिया दी ...अगर लेखक अपनी बात नहीं रख पाएगा तो वो लिखेगा कैसे
आपकी बात से सहमत हूँ ...तभी वही लिखा जो मन को बहुत दिनों से कचोट रहा था ....
अंजू जी,
आपको फेसबुक पर पढ़ता था कभी कभी... मगर 'अपनों का साथ' मिला तो जैसे फूलों का पूरा गुलदस्ता ही मिल गया.... बहुत ही सुंदर ब्लॉग और आपकी लेखिनी... बारबार आने का मन रहेगा अब तो... कईंबार हम नाम से जानते है मगर ज्यादा पहचान नहीं होती... मगर आज आपकी कलम को आत्मसात कर लिया और खुशियाँ दुगनी होने लगी... आपको अनंत शुभकामनाएँ...
- पंकज त्रिवेदी (नव्या)
www.nawya.in
मैं भी सहमत हूँ आपकी बात से ... बहुत ही अच्छा नहीं बल्कि सशक्त है आपका लेखन ...
बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं
किसी को खारिज करना हीन मानसिकता का प्रतीक है, लेकिन स्वस्थ आलोचना हो तो उसको अपने लिए अमृत भी समझिए। अच्छा, बहुत अच्छा या सर्वोत्तम -- इसके मानक पता नहीं क्या हैं। हां, एक बात ज़रूर। यदि आप पाठकों की अदालत में हाज़िर हों तो आपको कटु लगने वाली समीक्षा के लिए भी तैयार रहना होगा। वैसे, स्वांतः सुखाय लिखने वालों पर ऐसी कसौटी का सामना नहीं करना पड़ता। यहां एक बात साफ कर दूं कि कड़ी प्रतिक्रियाएं पाठकों की तरफ से आएं तो उनका सम्मान करना चाहिए, लेकिन कोई मठाधीश केवल नीचा दिखाने के लिए यदि ऐसी टिप्पणी कर रहा है तो उसे धोबियापाट दांव दिखाकर मुंह भी तोड़ देना चाहिए। न, गाली-गलौज़ से नहीं, उससे भी अच्छा लिखकर :)
बहुत सुन्दर......हमें गर्व है हिन्दी पर और हम हिन्दी में लिखते हैं
हमें गर्व है हिन्दी पर और हम हिन्दी में लिखते हैं......शुभकामनाएँ
अपनी राष्ट्र भाषा को हीन मानना, उसका परिहास करना, उसमें लिखने वाले लेखकों का मजाक बनाना सामने वाले की रुग्ण मानसिकता के परिचायक हैं ! मुझे भी अपनी मातृ भाषा पर बहुत गर्व है और अपनी विदेश यात्राओं के दौरान अंग्रेज़ी का यथेष्ट ज्ञान होने के बावजूद ज़रूरत पड़ने पर मुझे अपनी बात अहिन्दी भाषियों को हिन्दी में समझाने में भी कभी कोई दिक्कत नहीं हुई ! सामयिक एवँ सार्थक विषय पर आपका यह आलेख बहुत अच्छा लगा !
लेखन स्वांतः सुखाय होता है, लेखक यह सोच कर नहीं लिखता की उसका लेखन जगत में क्रांति ला देगा या उसके लेखन से दुनिया उथल पुथल हो जाएगी. तुलसीदास जी ने भी स्वांतः सुखाय ही लिखा था, उन्होने कल्पना भी नहीं की होगी की रामचरित मानस घर घर की शोभा बनेगी। लिखते रहिए ... समय ही लेखन का महत्व समझेगा ओर उसे स्थान देगा ..... ढेर सारी शुभकामनाएं
इंग्लिश की अपनी अहमियत है. लेकिन जहाँ जहाँ एसियन लोग हैं , वहां हिंदी को समझने वाले ज्यादा मिलते हैं. यह हमने दुबई में महसूस किया था.
लेकिन अपनी भाषा पर सबको गर्व होना चाहिए. हिंदी में बात करना/लिखना /पढना हमें तो बड़ा अच्छा लगता है.
बड़े खुबसूरत विचार हैं आपके .मैं आपसे सहमत हूँ
शुक्ला जी ...सार्थक आलोचना का हम भी समर्थन करते है और कभी उसे पीछे भी नहीं हटे और ना ही हटेंगे :)))
पंकज जी ....स्वागत है आपका
अगर लेखक अपनी बात नहीं रख पाएगा तो वो लिखेगा कैसे..
ye bat tumhari muje bahut pasand aai.. aur tumme vo himmat hai ki tum juth ke samne lad sako.. har pal rasta tumhe aage le jayega annu..muje naz hai ki tumhari jindgi me tumne muje shamil kiya hai...shukriyaa yaar..
भाषा की महत्ता व विविधता क्षेत्रीय विविधता पर निर्भर है,अभिव्यक्ति में गुण दोष हो सकता है,किन्तु भाषा चाहे जो हो उसका उचित सम्मान आवश्यक है,पूर्णतः सहमत.
अच्छा लिखा है आपने ।
आज कहीं पढ़ रहा था.... किसी जायदा ही तथाकथित बुद्धिमान ने अपने ब्लॉग को शुशोभित कर रखा था - "जैसे आज छुट्टी है और मैं फ़ालतू हूँ कोई काम धाम है नहीं सुबह तीन घंटे जिम में बिताये ..शाम धनतेरस के उसमें शौपिंग में बीतेगी ... और रात किसी रेस्ट्राओं में ... इसी बीच नालायक, ऐम्लेस, निठल्लों की तरह फ़ालतू टाइम था तो सोचा ज़रा हिंदी ब्लॉग्गिंग कर ली जाए। "………….
"आगे उन्होने लिखा था ... लोकली छपने के बाद ऐसे लोग आत्महत्या भी नहीं करते शर्म से ... कि लोकल लेवल पर छपे हैं खुद का पेट काट कर किताब छपवाई है ... भई! ऐसे छपने से तो अच्छा है आदमी तीन बार सकेसेफुल्ली सुईसाइड कर ले .... या फिर चम्मच में सूखा पानी लेकर डूब मरे ... "
पर मुझे सबसे जायदा मजा तब आया जब उनही तथाकथित कवि को मैंने अपने पहले साझा कविता संग्रह मे पाया... फिर आगे चल कर उनको खुद से छपाई के लिए पैसे खर्च करने वाले संपादक के आने वाली पुस्तक के कवर पेज मे भी देखा... पता नहीं क्यों ऐसे लोग खुद को गाली दे कर खुश होते हैं...!! एक और बात आजकल वो अपने कुत्ते के लिए जायदा ही प्यार साबित करना चाहते हैं, तभी तो उन्हे कुत्ते मे अपनी भाषा दिखती है॥ हो सकता है कुछ दिन बाद वो भों भों .... कर के लिखने लगे...
अंजु जी अगर आप उनके पोस्ट को देख कर ये लिख रही हैं... तो फिर मुझे लगता है आप गलती कर रही हैं....
हिन्दी हमारी भाषा है, हमारी माँ है.... हम जो भी करेंगे ... वो उसके लिए प्यार ही होगा... !! तो आप जो कर रहे हो... करते रहो...... हम सब साथ हैं...
भाषा का महत्व तो है ही मगर भाव भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. भाव व्यक्त होने चाहिए...कोई भी भाषा इतनी कमजोर नहीं कि उसका मजाक उड़ाया जाए...वह मजाक खुद उस व्यक्ति का होता है...
बहुत अच्छा आलेख...
गर्व से कहो...हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है ....
बधाई !
आपको हिन्दी पर गर्व है और मुझे हिन्दी और आप दोनों पर गर्व है । दीपावली शुभ हो ।
अनु जी, हिंदी अपने देश में ही बेगानी हुई जा रही है
हमारे अपने देश में अंग्रेजी सयानी हुई जा रही है ।
हिंदी पर शर्म करने वाला कोई भारतीय ही रहा होगा , क्योंकि विश्व में सिर्फ भारत ही ऐसा देश नजर आता है जहाँ मातृभाषा में बात करना शर्मिंदगी का कारण हो सकता है .
आपको अपनी हिंदी पर गर्व है , हमको हमारी हिंदी और आप पर भी अभिमान है !
sahi bat hamen garv hona hi chahiye...
बहुत सुन्दर प्रविष्टि वाह!
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राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है
बहुत सुन्दर प्रविष्टि वाह!
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राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है
हमें हिन्दी पर गर्व होना ही चाहिए. अपने विचार का सम्प्रेषण निःसंदेह करते रहना चाहिए. शुभकामनाएँ.
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कै मूल...विश्व हिंदी सम्मेलनों में विदेशियों को हिंदी और देशियों को अंग्रेजी बोलते देख शर्म आ ही जाती है...
bahut hi sunadar aur bebak prastuti
हिंदी के प्रति समर्पण लोगों के लिए प्रेरणा है हमें हिन्दी पर गर्व होना ही चाहिए.,,,
अंजू अपनी भाषा के प्रति सम्मान और निष्ठां ही एक लिखने वाले का सबसे बड़ा गर्व होता है और होना भी चाहिए . हमारी मातृभाषा ही हमारी पहचान है लेकिन जब हममें ही ही कुछ अपनी इसा भाषा को ही गलियां देने लगते हैं और फिर इसको लिखने वालों को जाहिल और गवारों की भाषा बताने लगते हैं तो लगता है कि शायद वे इस धरती के नहीं बल्कि किसी और जमीन पर पैदा होकर यहाँ आये हैं । विश्व के पटल पर हिंदी के लिए काम करने वाले लोग विदेशों में बहुत सफलता पूर्वक अपनी भाषा को ऊंचाइयों तक पहुंचा रहे हैं। हमें उनपर गर्व है।
jordar prastuti.hindi par garv tha, hai aur rahega,
आपके सार्थक ब्लॉग पर आकर बहुत प्रसन्नता हुई,आपकी रचनाएँ पढ़ कर पुन: उपस्थित होना चाहता हूँ, आपके संग्रह कहाँ से प्राप्त किये जा सकते हैं ? जो अपनी माँ और भाषा पर गर्व न कर सके वह इंसान अधम होता है ,आपके उत्तम विचारों को नमन .
क्षितिजा और कस्तूरी आपको यहाँ मिल सकती है ....
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आभार
भाषा का महत्त्व किसी राष्ट्र, इंसान की उन्नति के लिए अत्यधिक है ...
अपनी भाषा पर सभी को गर्व होना चाहिए ... सारगर्भित आलेख ...
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