आज दिन में आमिर खान ,रानी मुखर्जी और करींना कपूर खान अभिनीत तलाश फिल्म देखी ,फिल्म अच्छी थी ,धीमी गति से चलती हुई सी इसने बोर नहीं होने दिया .पर सोचने को बहुत कुछ दिया ,ये हिंदी सिनेमा वाले ,अपने दर्शको की नब्ज़ को बहुत अच्छे से जानते है ,यहाँ कुछ नया करने की होड़ हर वक्त लगी रहती है | आज कल टीवी और सिमेमा दोनों ही तरफ़ मृत्यु के बाद के जीवन को दिखा कर दर्शकों में उत्सुकता पैदा करना चाह रहे है ,इस फिल्म में भी आमीर खान के बेटे की मृत्यु के बाद भी उसके वजूद को आत्मा से बात करने वाली एक औरत के माध्यम से दिखाया गया है जो कि रानी मुखर्जी ( उस मरे हुए बेटे की माँ और आमीर की पत्नी के रूप में )बात करते दिखाया गया है और वही साथ के साथ करीना कपूर खान को भी एक आत्मा के रूप में दिखाया गया है जो कि इस फिल्म के अंत में पता चलता है बस ये ही सस्पंस है इस फिल्म का ........पर असली मुद्दा ये है कि ...क्या सच में मृत्यु के बाद आत्मा होती है ? क्या कोई ऐसा जीवन है जो मृत्यु के बाद शुरू होता है एक अनंत यात्रा के रूप में ? क्या हम मरे हुए लोगों से संपर्क कर सकते है ,उनसे बाते कर सकते हैं ?ऐसे बहुत से प्रश्न मेरे दिल और दिमाग को झंझोर रहे हैं क्यों कि ...अपने पापा की मौत के बाद मैंने भी अपने पापा को बहुत शिद्दत से याद किया है उन्हें मिस किया है (और शायद मेरे जैसे कितने ही दोस्त बंधु होंगे जो ठीक मेरे जैसा सोचते होंगे )...तो फिर क्यों नहीं पापा ने आज तक , किसी के माध्यम से मुझ से संपर्क किया ? क्यों नहीं वो मुझ से बात करने आए ?पापा के जाने के बाद मेरी माँ भी तो कितनी अकेली थी अगर आत्मा का कोई वजूद है तो वो क्यों नहीं हम लोगों की खोज खबर लेने आए ?
है कोई उत्तर इस बात का ???????
सच कुछ भी हो ...वो मैं नहीं जानती ....पर अपनी एक सोच आप लोगों के साथ साँझा कर सकती हूँ .....
आंखे .....
रोने लगी जब ,ये आंखे
जो रों रों कर ,मैं भूल चुकी थी
सुख दुःख की
परिभाषा को
और भूल चुकी थी सब कुछ
केवल इतना याद रखने को
बनते देखा ,मिटते देखा
अपनी ही अभिलाषा को
दिल मे उठा दर्द है
निज धुँधले अरमानों का
नहीं आज तक सुन पाई हूँ
उर के अस्फुट गानों का
ख़ुशी की तलाश में देखने
चली थी मैं
निर्जीवों के इस समूह में
जीवित कौन निराला है
पर गमो को साथ लिये
आज हलाहल छलक रहा
पीड़ित मन की आँखों से
लौटी हूँ मैं खाली हाथों से
देख उनकी
मौन-निस्पंद पड़ी काया , मृत्यु की बाहों में ||
अंजु ( अनु )
38 comments:
आत्मा के अस्तित्व को नाकारा नहीं जा सकता है लेकिन जो अति प्रिय होते हैं , हमें बहुत याद आते हैं लेकिन जो इसा जीवन के अंत में सांसारिक मोह से मुक्त होकर संसार त्याग देते हैं वे फिर कभी अपने होने का अहसास नहीं करते हैं। वे आत्माएं शेष्ठ होती हैं।
रेखा दी ...इस मन की उलझनों का क्या करें ...मन बड़ा ही चंचल है ...बहुत कुछ सोचता है
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
क्या सच में मृत्यु के बाद आत्मा होती है,,विचारणीय विषय पर उम्दा आलेख,,,
recent post: बात न करो,
.क्या सच में मृत्यु के बाद आत्मा होती है,,,विचारणीय विषय पर उत्कृष्ट आलेख,,
recent post: बात न करो,
Kyaa kahne......waah waah..waah ...
Kyaa kahne......waah waah..waah ...
Kyaa kahne......waah waah..waah ...
क्यों न आत्मा के आस्तित्व को अहसासों पर छोड़ दें..जिसे अहसास हुआ है उसके लिए है जिसको नहीं हुआ उसके लिए नहीं..क्योंकि अगर बहस या कोई एक निष्कर्ष पर जाया जाए तो इसका कोई अंत नहीं है...
गहरी आत्माभिव्यक्ति , पीड़ा छलक रही है . बहुत सुन्दर .
आत्मा के अस्तित्व की खोज एक भूल भुलैया है जिसमे घिरे तो निकलना मुश्किल ! दरअसल मन प्रियजन के हमेशा के लिए खो जाने को मानना ही नहीं चाहता . पिता को अचानक खो देने पर कुछ ऐसी ही अनुभूतियों को जिया मैंने भी !
फिर भी कई अन्तिन्द्रिय अनुभव उत्सुकता को जन्म देते हैं !
यह एक ज्वलंत विषय है ....क्या आत्मा होती है ? क्या मरने के बाद कोई जीवन है ?इसका जवाब मुझे भी कभी नहीं मिला ...जब 10 साल की उम्र में माँ से बिछुड़ी तो महसूस होता था की माँ तू आजा ..पर नहीं ! न वो आई और न मुझे कभी स्वप्न में दिखी ..हाँ , कई बाते जो साथ गुजारी थी वो जरुर दिखाई दी पर कभी माँ ने मिलने के लिए कोई गुहार नहीं लगाईं ( जैसा ..फिल्म में दिखाया गया ) फिर पापा गुजरे , बड़ा भाई गुजरा ,छोटा भाई गुजरा पर कभी यह संभव नहीं हुआ ...रियल लाइफ और रील लाइफ में यही अंतर होता है ... फिल्म वैसे काफी अच्छी बनी है ...और करीना का सस्पेंस भी ...
यह एक ज्वलंत विषय है ....क्या आत्मा होती है ? क्या मरने के बाद कोई जीवन है ?इसका जवाब मुझे भी कभी नहीं मिला ...जब 10 साल की उम्र में माँ से बिछुड़ी तो महसूस होता था की माँ तू आजा ..पर नहीं ! न वो आई और न मुझे कभी स्वप्न में दिखी ..हाँ , कई बाते जो साथ गुजारी थी वो जरुर दिखाई दी पर कभी माँ ने मिलने के लिए कोई गुहार नहीं लगाईं ( जैसा ..फिल्म में दिखाया गया ) फिर पापा गुजरे , बड़ा भाई गुजरा ,छोटा भाई गुजरा पर कभी यह संभव नहीं हुआ ...रियल लाइफ और रील लाइफ में यही अंतर होता है ... फिल्म वैसे काफी अच्छी बनी है ...और करीना का सस्पेंस भी ...
bahut sundar .badhiya abhiwykti ..uljhne wakai nahi sujhti ..
bahut sundar abhiwykti ...kai uljhne wakai nahi suljhti ..behtreen rachna
movie maine bhi dekhi, achchi lagi.. no doubt Aamir is the best:)
ye aankye kya nahi kah jati:)
बहुत सुंदर, आपका नजरिया सच के बहुत करीब है..
सहमत
साकेत जी आप सही कह रहे है
Bohot hi khoobsurti se likha h aapne...anju di...
ऐसे पलों को हमने भी जिया है, ऐसे ही कई सवाल उठते हैं मन में लेकिन आज तक उनका समाधान नहीं मिला, जो चले गए हमे छोड़कर वो कभी वापस नहीं आते हाँ उन्हें अपनी यादों, आदतों, अपनों और सपनो में जीवित पाती हूँ ... भावपूर्ण रचना
इस रहस्य की गुत्थी आजतक कोई सुलझा नहीं सका है।फ़िल्में तो दर्शकों की नब्ज़ टटोलकर बनाई जाती हैं ताकि बॉक्स ऑफिस पर हिट हों।
अरे जी आपने तो सारा सस्पेंस ही खोल दिया :)खैर कोई बात नहीं रही बात आत्मा में विशवास रखने या ना रखने की बात तो इस बात पर आज तक कोई भी पूर्ण विश्वास के साथ कुछ कह नहीं पाया यह कुछ वैसी ही बात है जैसे मानो तो भगवान ना मानो त पत्थर लेकिन फिर भी मैं इतना ज़रूर कहूँगी कि आत्मा होती तो ज़रूर होगी मगर उससे संपर्क क्यूँ नहीं होता या क्यूँ नहीं हो पाता यह कहना मुश्किल है। कम से कम मैं आत्मा के होने में विश्वास ज़रूर रखती हूँ मगर भूत प्रत के रूप में नहीं क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है कि सकरात्मक ऊर्जा के रूप मेन यदि ईश्वर है तो नकरात्म ऊर्जा के रूप में भूत प्रेत या बुरी आत्मायें भी ज़रूर होती होगी....
निर्जीवों के इस समूह में
जीवित कौन निराला है
पर गमो को साथ लिये
आज हलाहल छलक रहा
पीड़ित मन की आँखों से
लौटी हूँ मैं खाली हाथों से
देख उनकी
मौन-निस्पंद पड़ी काया , मृत्यु की बाहों में ||
मैं सोचता ही रह गया आपने पूरी कथा लिख दी . होता है हम उसे जान नहीं पाते लेकिन परा कुछ तो है .मेरी भी अपनी दंतेवाडा बस्तर की याद १९७९ श्री मति ध्रुवे बहन जी मृत्यु से सम्बंधित है . तब मैं वहां शिक्षक के पद पर पदस्थ था .
रमाकांत सिंह जी ...आपने मेरी कविता को पढ़ा और उसका मर्म समझा उसके लिए आभार
आशीष जी ..मन की पीढा शब्दों के रूप में ढल जाती है
गहन एवं मार्मिक अभिव्यक्ति ! यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब जानना सब चाहते हैं लेकिन कोई किसीको अपने अहसास एवं अनुभवों से कन्विंस नहीं करा सकता क्योंकि हर व्यक्ति के अनुभव नितांत निजी होते हैं ! और सामने वाला तब तक नहीं मानेगा जब तक उसे भी वही अनुभव ना हो !
एक फिल्म आई थी गुमनाम...हॉस्टल के कुछ लडके फिल्म देख कर आये...और पूरे हॉस्टल में घूम घूम के चिल्लाते फिरे दाढ़ी वाले शर्मा जी कातिल हैं...फिर उसके बाद जो भी फिल्म देखने गया...उसके लिए उस थ्रिलर फिल्म में सस्पेंस नहीं बचा...
सुंदर अभिव्यक्ति....
कुछ ऐसे ही भाव मेरे मान में तब उभरे थे जब मैं एक दिन अपने ही किसी परिचित के शव को शमशान भूमि में राख कणों में परिवर्तित होते हुए देखा। ये घटना दो बार घट चुकी है। आश्चर्य इस बात का है कि इस बारे में इतना सजीव चित्रण किया भी तो एक महिला ने। जिन्हें शायद ही शमशान में जाने दिया जाता हो। अमूमन पुरुषों के लिए स्त्री का सौन्दर्य प्रभाव का कारण बनता है लेकिन आज किसी स्त्री के अंतरनिहित भावों ने मुझे झकझोर दिया। भावनाओं की मार्मिक व वास्तविक अभिव्यक्ति अगर ऐसे ही निरन्तर चलती रही तो मैं आपका नियमित प्रशंसक बन जाऊंगा। समीर की तरफ से अनु जी को इस मार्मिक सत्य का भाव पूर्ण चित्रण करने हेतू शुभकामनाएं।
बहुत मार्मिक अहसास..मृत्यु के बाद क्या होता है यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका सटीक जवाब शायद ही कोई दे सके...रचना के भाव दिल को छू गए..
आत्माएं होती है या नहीं,,इसका शायद ही कोई जवाब हो..
बहुत ही मार्मिक रचना है..
जो चला गया वो कब लौट कर आया है।
और हां,
आमीर ख़ान से ऐसी बकवास की उम्मीद न थी।
मैंने तो खुद को ठगा सा महसूस किया।
anju ji aapki papa vali kvita ve dravit kar diya . talaash nahi dekhi isliye kuchh khas nahi kaha nahi ja sakta. jane kyon log parlok v adrishy ki bat karte hain jabki duviya v samaaj ko dekhane ki jyada zaroorat hai
मार्मिक ... सब मन की बाते हैं ... कई बार इंसान कुछ सोचना नहीं चाहता बस भोगता है अपना ओना दुःख ...
अति मार्मिक..
जाने है वो कौन नगरिया ? आये जाये खत ना खबरिया ?
ऐसे अनुत्तरित प्रश्न अनुत्तरित ही रहेंगे. रचना का मर्म अनुपम..
बहुत मार्मिक रचना. बहुत खूबसूरती से भावों को बुने हैं.
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