कुछ सपनों को तोड़ती-मोड़ती हूँ
कुछ अपने-आप से ही बाते करती हूँ
जिंदगी को बना के महबूब अपना
महबूबा बन,रोज़ उस से
मुलाकात करती हूँ |
सूरज का आना और फिर छिप जाना
अपने मन की नैतिकता से
रोज़ इस खेल का दीदार
करती हूँ
विश्वास के आदर के साथ
बनाई हर तस्वीर का
भीतर की टूटन के साथ
कुछ नए होने का
हर बार इंतज़ार करती हूँ
जिंदगी के रंगों
और आर्ट ऑफ लिविंग की
सोच से
खुद को ढाल लेने का
बार-बार प्रयास करती हूँ |
कुदरत के ब्रुश से अपने ही
सपनों में रंग भरती हूँ
देखती हूँ उन छोटी छोटी
चिड़ियों को, जो
अपनी इच्छा से चहकती
फुदकती हैं
और उनमें मैं अपना अक्स
देखने की कोशिश करती हूँ
पर हर बार की तरह
मेरे पंख क़तर दिए जाते हैं |
अपने ही मसीहाओं पर आश्रित हो
ताकती हूँ खुद की सीमाओं के अंदर
अपने ही जीवन के प्रति,मुझे में ही
सच्ची श्रद्धा नहीं है
तभी तो ज़ज्बात ज़ब्त हो जाते है
और मेरा तटस्थ होना भी तो किसी को
गवारा नहीं
खुद से कोई निर्णय लूँ
उस से पहले ही हिटलरी फरमान की
चिट्ठियाँ थमा दी जाती हैं |
ना कुछ कहने को छोड़ा जाता है
ना कुछ करने को
फरियादी होने पे भी
खटखटाते दरवाज़े नहीं खुलते
माँगने पे इन्साफ नहीं
मिलता
हाँ !ये ही हाल लगभग सभी का है
आज़ाद होने पर भी
बेड़ियों के ताले जड़ दिए जाते हैं
हर रोज़ एक घटना घटती है
साधारण सी ही घटती है, पर
अपने आप में गहरे अर्थ,
ढेर सारा विमर्श और
ढेर सारी करुपता लिए हुए
और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच, कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
करुणा,करुणा और करुणा
क्या अब इसके अतिरिक्त भी
मेरा कोई जीवन होगा ?
अंजु(अनु)
43 comments:
सच्ची श्रद्धा जब खुद के लिए पूर्णता लेती है तो व्यक्तित्व की आंच अलौकिक होती है
खुद से कोई निर्णय लूँ
उस से पहले ही हिटलरी फरमान की
चिट्ठियाँ थमा दी जाती हैं |.........SAHI ABHIWYAKTI
iske atirikt nahi, balki aapke jeewan mein hogi sirf...khushi khushi aur khushi
ham itne majbut hai ki jo bhi dard milta hai use akele hi sah lete hain
और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच, कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
यह सोच ही आगे ले जायेगी..जिंदगी राह दिखाएगी..
ना कुछ कहने को छोड़ा जाता है
ना कुछ करने को
फरियादी होने पे भी
खटखटाते दरवाज़े नहीं खुलते
माँगने पे इन्साफ नहीं
मिलता
badhiya...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
करुणा,करुणा और करुणा
yahi sach he...shashwat kabita...
बेहतरीन शब्द, आज के हालात पर
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति....
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
मार्मिक अभिव्यक्ति...
पर अब खुद से सवाल करना बंद....
अब तो सवालो का करारा जवाब देने का वक्त है..
वरना करुणा,करुणा और करुणा यही शेष रह जायेगा....
कोई संभावना दिखती तो नहीं है..
मेरे इस जीवन में असीम संभावनाए हैं और हर सुबह एक नया दिन लेकर आती है ।
करुणा नहीं अब आवाज़ बुलन्द करने का वक्त आ गया है।
होता है कभी-कभी ज़िंदगी में ऐसा भी, शायद इसी का नाम ज़िंदगी है। भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
वाकई ऐसी स्तिथि से अक्सर दो चार होना पड़ता है ...खीज भी होती है ....लेकिन फिर हमेशा की तरह
और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच, कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
....शायद समाज की कंडीशनिंग जब तक नहीं होगी ......यह स्तिथि बनी रहेगी ....सोचने पर मजबूर करती रचना
कल की तरह आज भी सूरज ऊगेगा ....होगी प्रदक्षिणा नभ के पथ पर प्रभामयी ....
करुणा,करुणा और करुणा
क्या अब इसके अतिरिक्त भी
मेरा कोई जीवन होगा ?,,,,,बहुत उत्कृष्ट मार्मिक प्रस्तुति,,,,
recent post : समाधान समस्याओं का,
अन्तर्द्वन्द्व
ताज़ा हालत भी कुछ ऐसे ही हैं...संभावनाएं दम तोड़ रही हैं... मार्मिक अभिव्यक्ति
बहुत गहरे भाव लिए हुए है आपकी यह कृति. सुन्दर कृति.
और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच, कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
करुणा,करुणा और करुणा
क्या अब इसके अतिरिक्त भी
मेरा कोई जीवन होगा ?
संभावनाओं को नई दिशा देती रचना जिसमें भावी नए संसार का स्वरुप
महिलाओं का सारा जीवन इसी मनोभावना और कुंठा में ग्रस्त रहता है. इस तरह डरे सहमे कब तक. आपने अपने विचार बहुत वेबाकी से रखे है इसके लिये बधाई.
कुदरत के ब्रुश से अपने ही
सपनों में रंग भरती हूँ
देखती हूँ उन छोटी छोटी
चिड़ियों को, जो
अपनी इच्छा से चहकती
फुदकती हैं ...
पंछी भेड़ नहीं जानते ... संयम से रहते हैं ...
बहुत ही संवेदनशील भावों से बुनी रचना ...
अब कोई करुणा , दया नहीं ... जिजीविषा चाहिए ...
सोच सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है
irada majboot ho to pura aasmaaa hai:)
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .
नारी व्यथा की बहुत सशक्त अभिव्यक्ति..
achchhi rachna ..bahut khub
nice
Bahut umda....
और उनमें मैं अपना अक्स
देखने की कोशिश करती हूँ
पर हर बार की तरह
मेरे पंख क़तर दिए जाते हैं |
http://ehsaasmere.blogspot.in/
bahut umda Rachna...
http://ehsaasmere.blogspot.in/
nari ki vedna ko bhut khoobsurti se vyakt kiya hai.
मन की कशमकश को बखूबी उकेरा है
मन की कशमकश को बखूबी उकेरा है
मन की कशमकश को बखूबी उकेरा है
अत्यंत संवेदनशील और गहन भाव अभिव्यक्त करती रचना.
रामराम
मार्मिक भाव....भरोसा रखिये...बेहतर होगा भविष्य....हिम्मत से आगे बढ़ना होगा...
उम्दा रचना.
बहुत मार्मिक रचना....
कुदरत के ब्रुश से अपने ही
सपनों में रंग भरती हूँ
देखती हूँ उन छोटी छोटी
चिड़ियों को, जो
अपनी इच्छा से चहकती
फुदकती हैं
और उनमें मैं अपना अक्स
देखने की कोशिश करती हूँ
पर हर बार की तरह
मेरे पंख क़तर दिए जाते हैं |
बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति!!
क्या नारी के हिस्से में सिर्फ करुणा है ..व्यथा है ...पीड़ा है
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