भाई विजेंद्र शर्मा की ये वो पंक्तियाँ है जिसकी वजह से मेरी आज की ये कविता बनी .....
शर्मसार तो कर गया ,जाते जाते साल
आने वाले साल में ,कैसा होगा हाल ||
(इस उम्मीद के साथ की आने वाले साल में ऐसा दिसम्बर ना आए )
विजेंद्र शर्मा
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
दाल महंगी हो गई और
सपने अधूरे रहे गए
कुछ लोग रोटी को मोहताज
रहने को मजबूर हो गए
हुकूमत के ही सब रंग ही बस
क्यों,गाढ़े और गाढ़े हो जाते हैं
बाकि क्यों सब कुछ धूमिल सा रह जाता है ?
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
अस्मत के लुटेरे हर गुनाह के बाद
बन कर चूहे, छिप जाते हैं
अपने अपने बिलों में
हर ज़ुर्म के बाद ,
सरकारी पनाह में वो
हमारी दी गई ज़मी पे ही ''हीरो''
क्यों हो जाते हैं ?
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
क्यों अब कोई कानून लागू नहीं
क्यों अराजकता का राज है ?
हर नेता अपने ही दल के साथ
चलाता अब सरकार है
फिर भी मेरा देश भारत
''महान है ''
जहाँ सुरक्षित नहीं है किसी घर की बेटी
वहाँ आज भी ''भारत माता की जय ''
के लगते नारे हैं
फिर भी हम चुमते अपनी माट्टी को है
भरते है अपनी सांसों में इसकी
खुशबू को
तो फिर भी कैसे तानाशाही के
रंग गाढ़े हो गए ?
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
जाने को है ये साल
और आने को है अब नया साल
क्या नए साल में भी इतिहास खुद को
दोहराएगा ?
या
कोई नया सवेरा
झरने सा गीत गाता आएगा ?
होगी एक नयी शुरुआत
या फिर से ये ही कुर्सी दौड़ के प्रत्याशी
अपनी ही आपाधापी में
यूँ ही दोहराव कर
सबके जीवन को जलाएंगे ?
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
अब हर दिल अजीज़ बस एक ही
सवाल पूछे
कब एक नयी सुबह
हर घर आँगन को चूमेगी ?
कब अल्हड़ जवानी
निर्भय होकर विचरण करने निकलेगी ?
कब दर्द और नासूर का रिश्ता
कोहरे की चादर से बाहर आएगा ?
कब हर घर के रिश्ते
फिर से उसी रंग में
लौट आएँगे, जो खो गए है
देखा देखी के दौर में ?
कब सत्ता की सरकार
गठबंधन से मुक्ति पाएगी और
एक नयी सुबह फिर से
हम सब के बीच लौट आएगी ||
अंजु (अनु)
नए साल (२०१३ )में बहुत कुछ बदलाव के साथ अच्छा होगा इस उम्मीद के साथ,हम सब नए साल का स्वागत करते हैं |
शर्मसार तो कर गया ,जाते जाते साल
आने वाले साल में ,कैसा होगा हाल ||
(इस उम्मीद के साथ की आने वाले साल में ऐसा दिसम्बर ना आए )
विजेंद्र शर्मा
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
दाल महंगी हो गई और
सपने अधूरे रहे गए
कुछ लोग रोटी को मोहताज
रहने को मजबूर हो गए
हुकूमत के ही सब रंग ही बस
क्यों,गाढ़े और गाढ़े हो जाते हैं
बाकि क्यों सब कुछ धूमिल सा रह जाता है ?
कानून की छतरी तले
अस्मत के लुटेरे हर गुनाह के बाद
बन कर चूहे, छिप जाते हैं
अपने अपने बिलों में
हर ज़ुर्म के बाद ,
सरकारी पनाह में वो
हमारी दी गई ज़मी पे ही ''हीरो''
क्यों हो जाते हैं ?
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
क्यों अब कोई कानून लागू नहीं
क्यों अराजकता का राज है ?
हर नेता अपने ही दल के साथ
चलाता अब सरकार है
फिर भी मेरा देश भारत
''महान है ''
जहाँ सुरक्षित नहीं है किसी घर की बेटी
वहाँ आज भी ''भारत माता की जय ''
के लगते नारे हैं
फिर भी हम चुमते अपनी माट्टी को है
भरते है अपनी सांसों में इसकी
खुशबू को
तो फिर भी कैसे तानाशाही के
रंग गाढ़े हो गए ?
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
जाने को है ये साल
और आने को है अब नया साल
क्या नए साल में भी इतिहास खुद को
दोहराएगा ?
या
कोई नया सवेरा
झरने सा गीत गाता आएगा ?
होगी एक नयी शुरुआत
या फिर से ये ही कुर्सी दौड़ के प्रत्याशी
अपनी ही आपाधापी में
यूँ ही दोहराव कर
सबके जीवन को जलाएंगे ?
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
अब हर दिल अजीज़ बस एक ही
सवाल पूछे
कब एक नयी सुबह
हर घर आँगन को चूमेगी ?
कब अल्हड़ जवानी
निर्भय होकर विचरण करने निकलेगी ?
कब दर्द और नासूर का रिश्ता
कोहरे की चादर से बाहर आएगा ?
कब हर घर के रिश्ते
फिर से उसी रंग में
लौट आएँगे, जो खो गए है
देखा देखी के दौर में ?
कब सत्ता की सरकार
गठबंधन से मुक्ति पाएगी और
एक नयी सुबह फिर से
हम सब के बीच लौट आएगी ||
अंजु (अनु)
नए साल (२०१३ )में बहुत कुछ बदलाव के साथ अच्छा होगा इस उम्मीद के साथ,हम सब नए साल का स्वागत करते हैं |
41 comments:
उम्मीद पर दुनिया कायम है.....सबकुछ बदल जाएगा ऐसा नहीं है...पर सरकार पर दवाब है इसलिए नियम तो कुछ बदलेंगे..पर बदलना होगा हमें...अपने आसपास के परिवेश को बदलना होगा..सरकार तभी कुछ कर सकती है जब समाज खुद कुछ करे...फिलहाल तो समाज सोया सोया सा ही ..हालांकि कुछ बुदबुदा रहा जरुर है..देखिए नए साल में क्या बेहतर होता है..आखिर बेहतर की उम्मीद ही अंधेरे में रोशनी कि किरण का काम करेगी।
उम्मीदों जगाए रखिए,
एक लाइन याद आ रही है..
सबलोग जानते हैं कि घर मेरा जला है,
इक बात याद रखना,इसमें भी कुछ भला है.
सुख जाते जाते बोला,दुख से ये बात कहना,
वो भी नहीं रहेगा,कुछ ऐसा सिलसिला है।
नया वर्ष मंगलमय हो !
सच है एक नई और सुखद सुबह की हम सभी को इंतजार है..
उम्मीदों की किरण जरुर निकलेगी .
Bheetar sanvednaaye phoot padee our qalam ke zarIye baahar nikal gayi.....waah waah...
रोशनी की उम्मीद जगाए रखिए,chahe tu mane n mane kal subah hogi zoorur फिर भी मेरा देश भारत
''महान है ''
जहाँ सुरक्षित नहीं है किसी घर की बेटी
वहाँ आज भी ''भारत माता की जय ''
के लगते नारे हैं
फिर भी हम चुमते अपनी माट्टी को है
भरते है अपनी सांसों में इसकी
खुशबू को
तो फिर भी कैसे तानाशाही के
रंग गाढ़े हो गए ?
वाकई यह साल शर्मसार कर गया ...
हमारी एकता ही समय के चक्र को घुमाएगी ... और जो कदम हमने बढाए हैं,उसे कायम रखें तो वह सुबह ज़रूर आएगी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (31-112-2012) के चर्चा मंच-1110 (साल की अन्तिम चर्चा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इन छतरियों वालों को शटडाउन करना बनता है
आशा यही है कि नव वर्ष को वह सब न भुगतना पडे जो जाने वाले वर्ष को शर्मसार कर गया. नव वर्ष की शुभकामनायें!
गठबंधन की सरकार से मुक्ति मिलना मुश्किल है,,,,
चिरनिद्रा में सोकर खुद,आज बन गई कहानी,
जाते-जाते जगा गई,बेकार नही जायगी कुर्बानी,,,,
recent post : नववर्ष की बधाई
शास्त्री जी आपका आभार ......हम भी हर वक्त आपकी चर्चा मंच से होकर गुज़रते है,आपके द्वारा किया गया कार्य हमेशा से मेरी पहली पसंद रहा है |
उम्मीद करे कि आने वाला साल समवेदना की रौशनी लेकर आये
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
अस्मत के लुटेरे हर गुनाह के बाद
बन कर चूहे, छिप जाते हैं
अपने अपने बिलों में
हर ज़ुर्म के बाद ,
सरकारी पनाह में वो
हमारी दी गई ज़मी पे ही ''हीरो''
क्यों हो जाते हैं ?
सार्थक चिंता ...उम्मीद थके नहीं बस यही प्रार्थना है
सरकार की पनाह में..
---और सरकार आपकी ही है...आपकी ही बनाई हुई ..या आपके ही भाइयों की बनाई हुई ..आपके ही भाइयों द्वारा चलाई हुई ....
...
अनु जी आदाब,
आपने बेहतरीन कविता रची है जिसका धरातल सिर्फ़ और सिर्फ़ संवेदना है ....
आपने जो मेरा दोहा ऊपर कोट किया है वो दरअसल यूँ है ...
शर्मसार तो कर गया , जाते जाते साल !
आने वाले साल में , कैसा होगा हाल !!
इसमें “ये” नहीं आयेगा ...ये आने से मिसरा बहर से खारिज हो जाता है ....
वन्दे
विजेंद्र ...
aane wala naya saal sabke liye shubh ho ..aur kuch badlaaw ho yahi dua hai ...
एक नयी सुबह फिर से
हम सब के बीच लौट आएगी ||
जहां ...
आने वाले हर लम्हे से कहना ही होगा
हर पल को शुभ कर देना तुम इतना
जिससे मजबूत हों इमारे इरादे
साहस देना हर एक मन को जिससे
प्रखर हो सके टूटा हुआ विश्वास
ओज देना इतना वाणी को सुनाई दे जाये
वो श्रवण बाधित को
दिखाई दे जाये साहस तुम्हारा
दृष्टिहीनों को !!!!!!
भाई विजेंद्र जी ...गलती को ठीक कर दिया गया है
आभार आपका
bas umeed hi rakh sakte hai ...Naya saal nayi Roshni lekar aaye
वो सुबह ज़रूर आएगी ....
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
अब हर दिल अजीज़ बस एक ही
सवाल पूछे
कब एक नयी सुबह
हर घर आँगन को चूमेगी ?
कब अल्हड़ जवानी
निर्भय होकर विचरण करने निकलेगी ?
कब दर्द और नासूर का रिश्ता
कोहरे की चादर से बाहर आएगा ?
कब हर घर के रिश्ते
फिर से उसी रंग में
लौट आएँगे, जो खो गए है
देखा देखी के दौर में ?
कब सत्ता की सरकार
गठबंधन से मुक्ति पाएगी और
एक नयी सुबह फिर से
हम सब के बीच लौट आएगी ||
आपकी बातों से पूर्णतः सहमत नव वर्ष मंगलमय हो सब निर्भीक हो अपनी मर्यादा .....
नै उम्मीदों का आव्हान करती सुबह ज़रूर आएगी
नव-वर्ष की शुभ कामनाओं सहित
वो सुबह जरूर होगी |
post your greeting with your comments
नये साल पर कुछ बेहतरीन ग्रीटिंग आपके लिए
कब दर्द और नासूर का रिश्ता
कोहरे की चादर से बाहर आएगा
vo din ab aane shayad es ummeed me ki varsh 2013 le aaye pr aane ke bad hi happy new year hoga ....
कसक और कचोट जगाती बहुत ही सशक्त प्रस्तुति ! काश ऐसा साल दोबारा ना आये ! नया वर्ष सबके लिए सुखद एवं मंगलमय हो ! आप भी नव वर्ष की अशेष बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं स्वीकार करें !
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए,
मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
ज्यों कहीं फिसल गए।
कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
कुछ आकुल,विकल गए।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए।।
शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
इस उम्मीद और आशा के साथ कि
ऐसा होवे नए साल में,
मिले न काला कहीं दाल में,
जंगलराज ख़त्म हो जाए,
गद्हे न घूमें शेर खाल में।
दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
ऐसा होवे नए साल में।
Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.
May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!
har bure karya ko सरकार की पनाह में और कानून की छतरी तले nahi kaha ja sakta...
HAPPY NEW YEAR :)
उम्मीद तो है ही पर अब उम्मीद के साथ साथ कुछ करना भी है ।
सशक्त रचना |नव वर्ष पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
आशा
आशा ही रख सकते हैं की २०१३ शुभ हो ...
प्रभावी रचना है
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
जाने को है ये साल
और आने को है अब नया साल
क्या नए साल में भी इतिहास खुद को
दोहराएगा ?
बहुत सुन्दर सटीक।
बहुत सुन्दर सटीक।
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
जाने को है ये साल
और आने को है अब नया साल
क्या नए साल में भी इतिहास खुद को
दोहराएगा ?
us nayee subah ka intajar hai..nav varsh ki shubhkamnayen.
bas ane wala har pal sukun se bhra ho....
ख़ुशी हो या ग़म , जो बीत गया उसे भूलकर आओ एक नई सुबह का स्वागत करें।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
I wish wo 1 nayi subah jaldhi aaye...
Thanks for your valuable visit there...
Noopur
http://apparitionofmine.blogspot.in/
नये साल से उम्मीदें ही की जा सकती हैं, पर लगता है समय अपनी चाल से ही चलता रहेगा, शायद ही कुछ फ़र्क पडे.शुभकामनाएं.
रामराम.
सरकार की पनाह में और
कानून की छतरी तले
क्यों अब कोई कानून लागू नहीं
क्यों अराजकता का राज है ?
हर नेता अपने ही दल के साथ
चलाता अब सरकार है
फिर भी मेरा देश भारत
''महान है ''
जहाँ सुरक्षित नहीं है किसी घर की बेटी
वहाँ आज भी ''भारत माता की जय ''
के लगते नारे हैं
विचारोत्तजक बात उठाई है आपने...और ....
ये दर्द सभी का है,
ये फर्ज सभी का है,
जो बोझ चढ़ा सर पर
वो कर्ज सभी का है।
nice poem
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