(फेसबुक से लिया गया चित्र)
कब और कैसे,
एक लम्बा सा मौन
पसर चुका है हम दोनों के बीच
ये मौन बहुत शोर करता है
और कर देता है बेचैन इस मन को
तुम्हारी सोच की संकरी गली से
गुज़रने के बाद
मैं देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
पसर चुका है हम दोनों के बीच
ये मौन बहुत शोर करता है
और कर देता है बेचैन इस मन को
तुम्हारी सोच की संकरी गली से
गुज़रने के बाद
मैं देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,ये मौन कहाँ से आता है ?
कब और कैसे,
कभी ना खत्म होने वाला
तेरे और मेरे बीच
बातों और विवादों का ऐसा मकड जाल
जो अब टकराव की सीमा तक
आ कर थम गया है,
और मैं ये भी जानती हूँ
जिस दिन ये टकराव हुआ
उस दिन हम दोनों की दिशाएँ
बदल जाएँगी
तुम दूर चले जाओगे और बसा लोगे
अपनी एक नयी दुनिया
क्यों कि मैं जानती हूँ कि
खुद के जीवन में
तेरे और मेरे बीच
बातों और विवादों का ऐसा मकड जाल
जो अब टकराव की सीमा तक
आ कर थम गया है,
और मैं ये भी जानती हूँ
जिस दिन ये टकराव हुआ
उस दिन हम दोनों की दिशाएँ
बदल जाएँगी
तुम दूर चले जाओगे और बसा लोगे
अपनी एक नयी दुनिया
क्यों कि मैं जानती हूँ कि
खुद के जीवन में
पथराए आँचल से,
पर्वतों के शिखर तक मौन उड़ते है
जिस से इस जीवन में
उग आती हैं वीरानियाँ इतनी
जिसे जितना काटो, वो ओर
फैलने लगती है,नागफणी सी
क्योंकि
उग आती हैं वीरानियाँ इतनी
जिसे जितना काटो, वो ओर
फैलने लगती है,नागफणी सी
क्योंकि
ये जिंदगी की धूप भी
अजीब होती है, नहीं चाहिए तभी
करीब होती है और
रात की चांदनी में जब भी
सोना चाहो
वो तब ओर भी कोसो दूर
महसूस होती है
अजीब होती है, नहीं चाहिए तभी
करीब होती है और
रात की चांदनी में जब भी
सोना चाहो
वो तब ओर भी कोसो दूर
महसूस होती है
इस लिए तो,
कब और कैसे,
मैं,खुद को धकेल कर अलग करती हूँ,
और देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?
65 comments:
jo मौन samje vo hi sachcha sathi hota hai annu.. bahut achchi kavita...
यक्ष प्रश्न
पाबला जी ..इस यक्ष प्रश्न का कोई उत्तर है क्या ?
:)
शुक्रिया अम्मा (नीता )
मन के अँधेरे से तुम भी निकलो तो शायद यह सन्नाटा खत्म हो ....पर, उधेड़बुन सी ज़िन्दगी चुप सी हो जाती है - जाने कब !
इस जाने कब का कोई उत्तर नहीं है ....रश्मि दीदी :)
परिस्थियां जब बिपरीत हो जाती है,सामने अंधकार सा छा जाता है
तब मेरे ख्याल से मौन रहने की स्थिति बन जाती है,,,
recent post : बस्तर-बाला,,,
सुन्दर सटीक-
प्रभावी प्रस्तुति |
बधाई आदरेया ||
किसी कवि की रचना देखूं !
दर्द उभरता , दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
क्लेश हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दूं ,टिप्पणियों में, रोते गीत !
निज रचनाएं ,दर्पण मन का, दर्द समझते मेरे गीत !
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?
....काश इसका उत्तर मिल जाता तो मौन इतना भयावह न होता...अंतस को छू गए रचना के भाव...
मौन रहन भी तब तक ही सार्थक होना चाहिये जब तक पानी सर से ऊपर न हो जाये...अन्यथा विपरीत परिस्थियों में ज़िंदगी मौन ही हो जाती है।
bahut sundar kavita anu ....
ये मौन मन को विचलित करता है | सोचने समझने की शक्ति को खत्म कर देता है | ये खालीपन पैदा क्यूँ होता है, मेरे ख्याल से शायद जिसे आप बहुत ज्यादा चाहते हैं वो अनायास आपसे दूर चला जाता है या आपके साथ कुछ ऐसा घटित होता है, जो आपकी सोच से परे होता है | आपके मन को व्यथित कर जाता है तब ऐसा लगता है कि ये जहाँ रूक सा गया है | मन में व्याप्त इस वियोग हावी होने पर सब कुछ बेमानी लगता है, तब ये मौन पैदा होता है | कुछ भी कहने का मन नहीं करता | कुछ ऐसा ही होता है मौन...........
moun mukhar ho kar bahut trasdayee ho jata hai...sundar rachna..
मन को विह्वल कर गयी आपकी रचना ! बहुत खूबसूरत एवं मार्मिक !
यह मौन की स्थिति शायद सब के जिंदगी में आती है , परन्तु मौन किसीका उत्तर नहीं है, शांति पूर्ण संवाद से शायद समाधान मिल जाये
New post : शहीद की मज़ार से
New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
बहुत सुंदर ..... मौन की गहराई कौन जान पाया ....
मौन हमारे बीच उपजी असहजता का नाम है। सुन्दर कविता
बहुत सुंदर रचना
सच तो यही है कि ऐसी रचनाएं कभी कभी
ही पढ़ने को मिलती हैं।
बहुत बढिया
किसी के पास नहीं इस प्रश्न का उत्तर...
सब मौन हैं...
बहुत अच्छी रचना अंजू जी.
सस्नेह
अनु
well written, anu ji. somehow i discovered a strange sense of loneliness in all your writings which doesn't match with your personality. wish to see some optimistic writings from you.
हमारी इच्छा के विपरीत परिस्थितियां ही मौन ले आती है।।
बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण रचना।।।
मैं,खुद को धकेल कर अलग करती हूँ,
और देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?
यही तो वह प्रश्न है जो आज तक अधर में लटका है ...उत्तर किसी के पास नहीं ......
मैं,खुद को धकेल कर अलग करती हूँ,
और देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?
यही तो वह प्रश्न है जो आज तक अधर में लटका है ...उत्तर किसी के पास नहीं ......
बहुत ही भावुक रचना ....
post
Gift- Every Second of My life.
अब क्या बोलूँ? अब मैं भी मौन हूँ...
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 23/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
अंजू इसे मैंने कल भी पढ़ा था और आज भी , कई बार पढ़ा , बहुत दिनों के बाद तुमने इतनी शशक्त कविता लिखी . एक एक शब्द जैसे कुछ और कह रहा हो .. मैं चाहूँगा की तुम और इसी तरह से लिखो . बधाई जी .
मौन अंतर्मंथन का अवसार प्रदान करता है और सही निर्णय पर पहुँचाने में मददगार भी.
सुंदर भावप्रवण प्रस्तुति.
यशोदा जी आभार ..नयी-पुरानी हलचल का
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
jindagi ki hakikat......aabhar
ये मौन अंधेरे के उस तन्हा पंछी की तरह होता है जो दिशा के ज्ञान बिना बस पंख फैलाता है ... मर्म को छूती है आपने रचना ... उमदा प्रस्तुति ...
aap ki rchnaye ati sundar
bhut sundar
sundar
khubsurat maun :)
गहन भाव छपे हैं इस कविता में |
आशा
वाह!
आपकी यह पोस्ट कल दिनांक 21-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
वाह!
आपकी यह पोस्ट कल दिनांक 21-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
aabhar aapka
हो गयी है पीर पर्वत अब पिघलनी चाहिए की तर्ज पर अब बर्फ पिघल जानी चाहिए
मौन मेरा प्रिय विषय है ..... जितना मौन मुखरित होता है उतने शब्द नहीं होते ....
BAHUT BAHUT SUNDAR
मौन बाहर से जितना शांत अन्दर से उतना ही उथल - पुथल भरा एक तीव्र शोर है... गंभीर रचना... शुभकामनायें
बहुत ही गंभीर भावपूर्ण रचना अंजू जी
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?
हम बो जाते हैं रिश्तों के बीच अपना अहम् और यही बिना बोये रक्त बीज सा फिर उग आता है .तब कहाँ नींद और चैन बस बैचैनी ...आपने बहुत ही सुन्दर ढंग से मनोभावों को प्रस्तुत किया अद्भुत अनोखा
सार्थक रचना!
मैं देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,ये मौन कहाँ से आता है ?
सुन्दर!!! बधाई स्वीकारें।
सुन्दर!!! बधाई स्वीकारें।
बहुत सुन्दर .सार्थक रचना.
मौन का अस्तित्व जीवन में सिर प्रश्नों को जन्म देता रहता है !
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
bahut sundar prastuti ke liye aabhar anu ji
अनुजी ये ऐसा मौन होता है जिसके अंदर काफी कोलाहल होता है.....जो मुखर होने नहीं देता पर अंदर ही अंदर इतना शोर का ऐसा विस्फोट होता है जो कई बार सबकुछ तहस-नहस कर देता है...इंसान को पत्थर बना देता है। बाहर से मौन पर अंदर से भीषण शोर...ये ऐसा ही मौन है।
जब भीतर का शोर बंद हो जाये तभी सच्चा मौन फलित होता है ।
इस गंभीर प्रश्न का उत्तर किसी के पास है क्या ... शायद ही हो .. मन को झाझोरने वाली कविता .. बधाई
मन में मौन को उतरते हुए महसूस किया. कहाँ मिलेगा इसका जवाब; ताकि मौन से मुक्ति हो...
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?
शुभकामनाएँ.
very beautiful .
मौन की गहन परिभाषा...
बहुत सुंदर .शुभकामनायें
बहतरीन कोशिश बधाइयाँ
शुभकामनाये
पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (17) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Post a Comment