कहर ढहते देखे
इस तूफानी दौर में
सभी चोर हैं
इस तूफानी दौर में
लहरों से आगे तो निकल गए हैं
पर खाईयों को दिखा कर डरा रहें
इस तूफानी दौर में |
इस तूफानी दौर में,
मन में छिपा है,
पढ़ा-लिखा सभ्यता का चोर
आसमां को छूने की तमन्ना में
जो कुतर रहा अपने ही घर का कोना-कोना
बूढी हो चुकी व्यवस्था के आईने को
दरारों के हाशिये पर जब भी देखती हूँ,
बस उसे, नम आँखों से ही ताकती हूँ
पीड़ा का घूँट पीकर
नए सृजन का सोचती हूँ
फिर भी, चारों ओर शोषण का जाल ही दिखता है,
चेतना आधारहीन है,
सबलता का कुछ अता पता नहीं,
बलात्कार का है बोलबाला,
हर तरफ मुनाफे की खुली है मधुशाला,
सता के नशे में चूर,
शोषण की चोट से बिलकता हर आम इंसान हैं
ऊपर से महंगाई की दोहरी मार है |
इस तूफानी दौर में
है चोरों ओर अँधेरे का राज
गाँव,शहरों,गलियों और चौराहों से
बिलख-बिलख कर निकलती है
अब हर किसी की आवाज़
कि, सभी नेता चोर हैं
धृतराष्ट बन धृत पीने लगे हैं
और सभी के चाल-चरित्र,चेहरे आतंकियों के
समान ही सजने लगे हैं
धोखा,साजिश और करोडों का घपला
अब इस देश का हाल
''अंधेर नगरी का चौपट राजा''जैसा है
जिसने आज़ादी को भी
अँधेरे में डाला है
गेहूँ,चावल,दालों की भूखे आदमी के अन्न को भी
खा रहें हैं,सरकारी सफेदपोश चूहे
सरकारी गोदामो में सब-कुछ सड़ाकर फेंक रहें हैं
समुन्दर में देश के दक्षिणी भागो में,
क़र्ज़ में डूबता किसान ,
फांसी पर भी लटकते-मरते देखे हैं |
इस तूफानी दौर में,
आज भी,सीमा पर जवान मारे जाते
यतीम होते बच्चे
विधवा होती भारत की बिटियाँ
सूनी होती माओं की गोदें
बूढ़े बाप ढोते हैं लाशें जवान फौजी बेटों की
और नेता आराम से भाषण बांचते, सोते फिरते हैं |
ये कैसी आज़ादी,कैसा ये गणतंत्रत है
हर बार की तरह
इस बार भी २६ जनवरी को
देश के राष्ट्रपति,इंडिया गेट पे सलामी लेंगे
दो शब्द सहानुभूति के बोलेंगे
कि हम ने इस देश के लिए,
क्या-क्या किया या कर रहें हैं
वो रटारटाया,कागज से देख-देख
भाषण तो दे देंगे,पर
उनके इतने वादों और इरादों के बाद भी
घोर निराशा के जंगल में इन नेताओं के भेष में
भ्रष्ट लुटेरे डाकू दिखते हैं
ये सभी वोटो के भिखारी
इस देश पर आज भी भारी हैं
क्यों फिर भी हम,
इतने सालों बाद भी
अपनी आज़ादी और गणतंत्र को
इस तरह मना रहें हैं?
जबकि आज तक भी,
हमारे देश को इन लुटेरों ने घेर हुआ है
क्यों,हर बार मेरा मन, मुझे से ये पूछे
उफ़,ये कैसा है गणतंत्र और कैसी है ये जश्न-ए-आज़ादी ?
अंजु(अनु)
41 comments:
wah re jashn-e-ajaadi... !!
वर्तमान का सजीव चित्रण!
SATIK N SAMSAMYIK
समसामयिक पोस्ट लाजवाब
सरकार ही अकेली इस सब के लिए जिम्मेदार नहीं है क्यूंकि इन भ्रष्ट नेताओं को आखिर वोट भी तो हम हीं देते हैं। रही बात जश्न-ए-आज़ादी की तो वो तो एक सलाम है देश के शहीदों के नाम, वो तो जितने जोशीले तरीके से माना सकें उतना ही अच्छा,दामिनी कांड के बाद देश में जो गुस्सा नज़र आया वो प्रमाण है इस बात का की आज भी हमारे देश में लाख बुराईयों के बावजूद अब भी थोड़ी आमियता,सहानुबूती,बहादुरी नुमा प्राण अब भी बाकी है अब भी देर नहीं हुई है बस इस लौ को जालाए रखने की जरूरत है।
"सभी चोर हैं" --- में.... हम सब आप भी सम्मिलित हैं....हमें सोचना होगा ... हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा....
--- ये सचमुच का गणतंत्र है---- गणतंत्र का अर्थ गण...अर्थात विशिष्ट व्यक्तियों का देश ....जन सामान्य का ..जनतंत्र कहाँ रहा ....
डॉ श्याम गुप्त जी ...आपकी बातों से सहमत हूँ ..बदलाव अपने ही भीतर से होगा
सटीक , समसामयिक , सुंदर कविता
ह्म्म्म सही कहा।
आक्रोश भरी यह अभिव्यक्ति सटीक और सामयिक है ..इस चोरों के बस्ती में "सामाजी जागरूकता "के रूप एक आशा की किरण दिखाई पड़ी है.
New post कृष्ण तुम मोडर्न बन जाओ !
आज की सच्चाई का सटीक चित्रण,,,,
गणतंत्र दिबस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
हर मंज़िल पर घात लगाए जब अपनों को ही पाना है
प्रथम लड़ाई खुद से ही, इस सच को नहीं झुठलाना है।
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं ....
बहुत लाजवाब पोस्ट...
जो प्रश्न आपने उठाए हैं, वे वाकेई में चिंतनीय हैं।
इसी आजादी को सुधारने की जंग बाकी है। क्या करें जितना संभव है सिर कटाना और जान तो लड़ानी ही होगी....आखिर करोड़ों ने जान देकर ये थाती हमें सौंपी है।
vyavastha par chot karti achi kavita... phir bhi gantantra diwas kee shubhkamna
कैसा गणतंत्र और कैसी जश्न-ए-आज़ादी, आज हर तरफ अपनों से अपनों की जंग है... सटीक अभिव्यक्ति
हालात सच में विचारणीय हैं अनु जी...... सटीक चित्रण
हालात सच में विचारणीय हैं अनु जी...... सटीक चित्रण
सुंदर कविता...
जैसा भी यह गणतंत्र है , हमने ही बनाया है ....हम बदलेंगे , जमाना बदलेगा , श्याम जी से सहमत !
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति।
अच्छी प्रस्तुति |
आभार आदरेया ||
गणतंत्र और जश्न-ए-आज़ादी...ye habd bhi lagte ajnabi se...
sateek abhivyakti..
आज के गणतंत्र के हालात पर सटीक प्रश्न उठाती बहुत सार्थक प्रस्तुति...
यथार्थवादी रचना..गहरे आक्रोश से उपजी हुई..आभार!
गणतंत्र दिबस की सच्चाई का सटीक चित्रण........!!!!
इसके उत्तर भी हमको ही खोजने हैं .... बहुत सशक्त रचना
एकदम सही है आपका कथन ...जश्न-ए-आज़ादी शायद इसलिए मनाते हैं...की उन वीरों के प्रति कुछ कृतज्ञता प्रकट कर सकें जिन्होंने...इस आजादी को पाने के लिए न जाने कितने ज़ुल्म सहकर अपनी आहुति दी ....बस उस यज्ञ की आग को जिंदा रखना है ...इसलिए जश्ने आज़ादी मनाना है .
पीड़ा का घूँट पीकर भी सृजन होता है और पीड़ा से भर देता है .
व्यवस्था में आएगा परिवर्तन कैसे भला
आपका क्रोध तो कुछ पल का क्रोध है.
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ...
आज़ादी को आईना दिखा दिया आपने ...!!
...हम आज भी सिर्फ कहने को आजाद है!...गणतंत्र दिवस तो बस एक त्यौहार बन कर रह गया है!
अति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...
बूढी हो चुकी व्यवस्था के आईने को
दरारों के हाशिये पर जब भी देखती हूँ,
बहुत खूब!
सुन्दर रचना
सादर!
http://voice-brijesh.blogspot.com
अपनी आज़ादी और गणतंत्र को
इस तरह मना रहें हैं?
जबकि आज तक भी,
हमारे देश को इन लुटेरों ने घेर हुआ है
क्यों,हर बार मेरा मन, मुझे से ये पूछे
उफ़,ये कैसा है गणतंत्र और कैसी है ये जश्न-ए-आज़ादी ?
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति
कुछ बात है की हस्ती...इसी गुमान में मनाये जा रहे हैं ये गणतंत्र...हर क्षण गुलामी को गले लगाते हम...अंग्रेजों से आज़ादी का ही जश्न मना सकते हैं...
आज के हालात पर सटीक ,सार्थक प्रस्तुति...
http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
हर शब्द की अपनी पहचान बना दी क्या खूब लिखा है
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प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
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