कुछ ऐसे वचन जो हर किसी पर लागूं होते हैं अगर कोई उसे दिल से माने तो ...बस ऐसे ही पढ़ते पढ़ते कुछ वचन मेरे हाथ भी लेगे...तो सोचा कि चलो इसे अपने ब्लॉग पर सबके साथ साँझा करके हमेशा के लिए अपने पास सुरक्षित रख लिए जाए, ताकि जब मन करे इसे आसानी से पढ़ा जा सके ||
(1) माचिस की तीली का सिर होता है,पर दिमाग नहीं,इसलिए वह थोड़े से घर्षण से जल उठती है| हमारे पास सिर भी और दिमाग भी,फिर भी हम छोटी-सी बात पर उत्तेजित क्यों हो जाते हैं?
बात बहुत छोटी सी है पर इसके अपने बहुत गहरे अर्थ है ...अगर मैंने ये कहूँ की हर किसी को जीवन में बहुत बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है|मैंने अपनी इस लाइफ में बहुत से लोगों को देखा,परखा और समझा है |बहुत कम लोग मुझे अपने विचारों,व्यवहार और मर्यादा में स्थिरता और दृढ़ता लिए हुए दिखे | नहीं तो ज्यादतर लोग अपनी ही बात करके मुकर जाते हैं या अपने दिमाग का प्रयोग किए बिना ही झूठ पर झूठ बोलते हैं और उसी झूठ को अपनी जिंदगी का कभी ना खत्म होने वाला घुन बना कर जीते हैं और ये घुन उनकी पूरी जिंदगी को धीरे-धीरे जला कर राख कर देता है ..जिसका पता बहुत देर से लगता है तब पछताने के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं बचता |पर मैंने देखा है कि कुछ लोगों में कुछ भी गलत करने के बाद पछतावा तक नहीं होता ...ऐसे इंसान को क्या कहिएगा????
(2) किसी शांत और विनम्र व्यक्ति से अपनी तुलना करके देखिए,आपको लगेगा कि,आपका घमण्ड निश्चय ही त्यागने जैसा है |
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति इंतना सोच समझ कर अपनी जिंदगी को कोई दिशा देता होगा?
मैं ऐसा नहीं मानती...पर ऐसा भी नहीं है की मुझे भरोसा ही नहीं है| फिर भी बहुत लोगों से बातचीत के बाद कम से कम मैंने ये महसूस किया है कि एक ओर मैं और दूसरी ओर से बातचीत करने वाला व्यक्ति ( भाई,बहन ,दोस्त ,पति या बच्चे कोई भी समझ लों ) अपने आप को हमेशा ही सही साबित करने में प्रतीत से होते हैं (हो सकता है की मुझे लेकर भी उनकी भी ये ही सोच हो ) ऐसा क्यों होता है कि हम लोग अपनी गलती को सुधारने की बजाए उस गलती को और गलती करते हुए उसे अपने ही घमण्ड के तले, एक तारीक(अन्धेरा, धुंधला) के तले दबाते चले जाते हैं |
(3) जितने अच्छे से आप दूसरों से,दूसरों की स्त्रिओं से,दूसरों के माँ-बाप से,दूसरों के बच्चों से बात करतें हैं ,उतने ही अच्छे से यदि अपने घर में, अपनों से बात करने लगें तो घर में ही स्वर्ग उतर आए| (मुनि प्रज्ञासागर)
मुनि जी ने कितनी पते की बात कह दी है ...इस बात से मैं तो १००% सहमत हूँ |पर आज भी इस इंटरनेट की दुनिया में बहुत से लोग ऐसे मिल जाएँगे,जिनके खाने के दाँत ओर और दिखाने के दाँत ओर हैं |जो आज भी अपने ही रिश्तों का मज़ाक बनाते देर नहीं लगाते |
कुछ रिश्तों को, उम्र भर टिकाऊ रूप से हमें सँभालने के लिए वो ईश्वर देता है पर कुछ नादान और गन्दी सोच के व्यक्ति हर रिश्ते में से कुछ ना कुछ खोट निकाल कर, उसे बदनाम करते हुए अपने से दूर कर देते हैं |
बहुत बार देखने में आया है और बहुत से लोगों ने अपने मरते हुए रिश्तों से सीख देते हुए भी ये सिखाया है कि ''मरते हुए रिश्तों में भी सांसे होती है ...जिसकी वजह से वो अपने को, अपने प्यार और विश्वास को अपने भीतर जीवित रखते हैं | रिश्ते मरने का दर्द सिर्फ एक तरफ़ा होता है क्यों कि ...अगर दूसरी तरफ लेश मात्र भी दर्द या उसे सँभालने की सोच होती तो ...''कभी भी कोई रिश्ता टूटता ही नहीं '' |
आज बस इतना ही क्यों कि ....अपने ही कदमों के निशाँ पर जब हम अपनी उलटी लौटती हुई चाल से कदम मिलाने की कोशिश करेंगे ...तो वो कभी नहीं मिलेंगे ||
जब अपने ही कदमो के निशाँ नहीं मिलेंगे तो ...किसी एक की सोच किसी दूसरे से कैसे मिल जाएगी ?(सिर्फ मेरी सोच ..पर आधारित लेख पर लिखे गए मेरे विचार )
अंजु(अनु)
(1) माचिस की तीली का सिर होता है,पर दिमाग नहीं,इसलिए वह थोड़े से घर्षण से जल उठती है| हमारे पास सिर भी और दिमाग भी,फिर भी हम छोटी-सी बात पर उत्तेजित क्यों हो जाते हैं?
बात बहुत छोटी सी है पर इसके अपने बहुत गहरे अर्थ है ...अगर मैंने ये कहूँ की हर किसी को जीवन में बहुत बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है|मैंने अपनी इस लाइफ में बहुत से लोगों को देखा,परखा और समझा है |बहुत कम लोग मुझे अपने विचारों,व्यवहार और मर्यादा में स्थिरता और दृढ़ता लिए हुए दिखे | नहीं तो ज्यादतर लोग अपनी ही बात करके मुकर जाते हैं या अपने दिमाग का प्रयोग किए बिना ही झूठ पर झूठ बोलते हैं और उसी झूठ को अपनी जिंदगी का कभी ना खत्म होने वाला घुन बना कर जीते हैं और ये घुन उनकी पूरी जिंदगी को धीरे-धीरे जला कर राख कर देता है ..जिसका पता बहुत देर से लगता है तब पछताने के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं बचता |पर मैंने देखा है कि कुछ लोगों में कुछ भी गलत करने के बाद पछतावा तक नहीं होता ...ऐसे इंसान को क्या कहिएगा????
(2) किसी शांत और विनम्र व्यक्ति से अपनी तुलना करके देखिए,आपको लगेगा कि,आपका घमण्ड निश्चय ही त्यागने जैसा है |
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति इंतना सोच समझ कर अपनी जिंदगी को कोई दिशा देता होगा?
मैं ऐसा नहीं मानती...पर ऐसा भी नहीं है की मुझे भरोसा ही नहीं है| फिर भी बहुत लोगों से बातचीत के बाद कम से कम मैंने ये महसूस किया है कि एक ओर मैं और दूसरी ओर से बातचीत करने वाला व्यक्ति ( भाई,बहन ,दोस्त ,पति या बच्चे कोई भी समझ लों ) अपने आप को हमेशा ही सही साबित करने में प्रतीत से होते हैं (हो सकता है की मुझे लेकर भी उनकी भी ये ही सोच हो ) ऐसा क्यों होता है कि हम लोग अपनी गलती को सुधारने की बजाए उस गलती को और गलती करते हुए उसे अपने ही घमण्ड के तले, एक तारीक(अन्धेरा, धुंधला) के तले दबाते चले जाते हैं |
(3) जितने अच्छे से आप दूसरों से,दूसरों की स्त्रिओं से,दूसरों के माँ-बाप से,दूसरों के बच्चों से बात करतें हैं ,उतने ही अच्छे से यदि अपने घर में, अपनों से बात करने लगें तो घर में ही स्वर्ग उतर आए| (मुनि प्रज्ञासागर)
मुनि जी ने कितनी पते की बात कह दी है ...इस बात से मैं तो १००% सहमत हूँ |पर आज भी इस इंटरनेट की दुनिया में बहुत से लोग ऐसे मिल जाएँगे,जिनके खाने के दाँत ओर और दिखाने के दाँत ओर हैं |जो आज भी अपने ही रिश्तों का मज़ाक बनाते देर नहीं लगाते |
कुछ रिश्तों को, उम्र भर टिकाऊ रूप से हमें सँभालने के लिए वो ईश्वर देता है पर कुछ नादान और गन्दी सोच के व्यक्ति हर रिश्ते में से कुछ ना कुछ खोट निकाल कर, उसे बदनाम करते हुए अपने से दूर कर देते हैं |
बहुत बार देखने में आया है और बहुत से लोगों ने अपने मरते हुए रिश्तों से सीख देते हुए भी ये सिखाया है कि ''मरते हुए रिश्तों में भी सांसे होती है ...जिसकी वजह से वो अपने को, अपने प्यार और विश्वास को अपने भीतर जीवित रखते हैं | रिश्ते मरने का दर्द सिर्फ एक तरफ़ा होता है क्यों कि ...अगर दूसरी तरफ लेश मात्र भी दर्द या उसे सँभालने की सोच होती तो ...''कभी भी कोई रिश्ता टूटता ही नहीं '' |
आज बस इतना ही क्यों कि ....अपने ही कदमों के निशाँ पर जब हम अपनी उलटी लौटती हुई चाल से कदम मिलाने की कोशिश करेंगे ...तो वो कभी नहीं मिलेंगे ||
जब अपने ही कदमो के निशाँ नहीं मिलेंगे तो ...किसी एक की सोच किसी दूसरे से कैसे मिल जाएगी ?(सिर्फ मेरी सोच ..पर आधारित लेख पर लिखे गए मेरे विचार )
अंजु(अनु)
79 comments:
ज्ञानपूर्ण बाते !
sahi baat ..bahut sundar
आभार अरुण ...कभी कभी ज्ञान की बाते जरुरी हो जाती हैं
शुक्रिया रंजू दी
इत्ती भारी भारी बाते , पढ़ के ज्ञान मिला . साधुवाद आप
मेरी सोच मेरा चिंतन,विचार. के अंतर्गत बहुत गहरी सोच को व्याख्यायित किया है पढ कर अच्छा लगा,बधाई.
सोचने पर मजबूर करते हुए आपके ये विचार ।
सुन्दर।
सभी बातें विचारणीय हैं ... सोचने वाली हैं .. जीवन को सुखी बनाने वाली हैं ...
ये सच है की आस पास बिखरी चीज़ों को गौर करने पे ही कितना कुछ सीखने को मिल जाता है इन्सान को ... सार्थक पोस्ट है ...
आभार आपका
bahut hi prabhavi hai aapki bate aur yatharth bhi hai, mai aapse poori tarah sahmat hu anjuji
शुक्रिया जी
बातें तो बहुत अच्छी और बहुत ही ही सच्ची लिखी हैं आपने मगर यदि इतना ही समझ ले इंसान तो फिर वो इंसान ही कहाँ रह जाएगा भगवान न बन जाएगा :)विचारणीय आलेख
पल्लवी ...बाते पढ़ने के बात अगर एक व्यक्ति भी सिर्फ १% जीवन में अमल कर ले तो वो कम से कम इंसान बना रह जाएगा
आपके विचार अच्छे लगे...
हर सच्ची सोच दिल की गहराइयों को ही निकलती है , जो कह कर आप अपने अंतर्मन के द्वंद को और भार हल्का कर लेते हैं. अनुकरणीय सुंदर प्रयास.
उपदेश सुनना शायद किसी को अच्छा नहीं लगे मगर आपने इतनी सुन्दर तरह बात कही कि आत्मसात करने को जी चाहता है...
बेहद सार्थक पोस्ट..
सस्नेह
अनु
अनु...लेखक का काम अपने मन की बातों को लिख देना होता है...पाठक उसका अनुसरण करते हैं या नहीं ...ये उनकी सोच पर निर्भर करता है
इस लेख को दिल से पढ़ने के लिए आभार
बहुत सारगर्भित चिंतन...
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
bahut badiya .....
जितने अच्छे से आप दूसरों से,दूसरों की स्त्रिओं से,दूसरों के माँ-बाप से,दूसरों के बच्चों से बात करतें हैं ,उतने ही अच्छे से यदि अपने घर में, अपनों से बात करने लगें तो घर में ही स्वर्ग उतर आए|
kyaa baat hai .....!!
आपकी यह रचना कल मंगलवार (16-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण : नारी विशेष पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
विचारणीय ..............
बहुत ही बढ़ियाँ...
गहन भाव लिए विचारणीय आलेख...
:-)
शुक्रिया अरुण
आलेख का अभिप्राय और बात कहने का अदभुत अंदाज है. वाकई इसे वर्तमान गीता का दर्जा दिया जा सकता है. अत्यंत विचारणीय ही नही अपनाने योग्य बातें, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
sochne layak batein kahi hain apne....wo bhi samjhne layak tarikay say....shukriya aise lekh kay liye
आभार ताऊ जी
शुक्रिया रेवा
kitni sahi bate..99% logo ko ye sari bato ki jankari hai par..koi ye raste pe chalne par taiyaar nahi..bahut achchi bate likhi hai annu
गहरी सोच,सुंदर चिंतन और खुबसूरत सन्देश!
शुभकामनायें!
kya khoobsurat vishay hain....
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कर का मनका डाल कर ... मन का मनका फेर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बड़ी अच्छी अच्छी बातें लिखी हैं जी आपने
शुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन
हर बात सच है, हर बात में दम हैं।
बहुत सुंदर बोध देतीं बातें...जीवन को सुंदर बनाने के सूत्र...
बहुत ही सशक्त पोस्ट....
सार्थक अभिव्यक्ति ....
हार्दिक शुभकामनायें ..........
wah kya bat hai .......gahan chintan kiya hai apne apki post bahut hi lajabab lagi aur vichar manthan ke liye vivash kiya hai .....aabhar Anju ji
संजो कर रखने लायक ज्ञान...आभार अंजू
बहुत ज्ञानपूर्ण अनुकरणीय बातें कही हा अनु जी !
latest post सुख -दुःख
sundar yatharth. magar ham hamesha vivek ko jagrat nahi rakh pate aur ahankar vash vyavahar karane lagate hai.
सुखमय जीवन के लिए ज्ञानवर्धक बाते,,,
RECENT POST : अभी भी आशा है,
सुन्दर साफ़ सुथरी बात बेलाग
बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
सादर...!
जीवन में उतार जा सके तो इससे बेहतर क्या ...
बस दिल है कि मानता नहीं :)
सारा चक्कर देह अभिमान का है .जब हम अपने को मात्र शरीर मानते हैं तब अहंकार ,काम क्रोध ,लोभ ,लालच ,मद सभी हमें घेर लेते हैं .अपने को आत्मा समझे तो इन तमाम बातों से मुक्ति मिले क्योंकि आत्मा का स्वरूप ही शांत ,निरभिमान ,प्रेमपूर्ण ,ज्ञान पूर्ण आंनंद पूर्ण है .ॐ शान्ति
जबकि आत्मा की शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करेंगे तो माचिस की तीली ही बनेंगे .जबकि आत्मा राजा है ये मन ये बुद्धि ,ये चित्त उसकी प्रजा हैं .कोई आत्म स्वरूप में रहे तो समझे दिखे शांत शीतल निर्मल पावन ......ॐ शान्ति
सूक्तियां तो अनुपम होती ही हैं पर ....
सार्थक चिंतन .....
बहुत सारगर्भित चिंतन...सार्थक पोस्ट..
बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण
बहुत ज्ञानपूर्ण
बहुत सुंदर, शुभकामनाये
यहाँ भी पधारे
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
:)
अच्छी और सच्ची बातें ..........विचारणीय आलेख
रिश्ते मरने का दर्द सिर्फ एक तरफ़ा होता है क्यों कि ...अगर दूसरी तरफ लेश मात्र भी दर्द या उसे सँभालने की सोच होती तो ...''कभी भी कोई रिश्ता टूटता ही नहीं '' .....sarthak or sarahniiy lekh
मनन योग्य बातें जिन्हें हम समझ कर जीवन में अपना सकें तो सचमुच जीवन आनंदमय हो. सटीक और सार्थक विशेलेषण. शुभकामनाएँ.
बहुत खूब लिखा आपने |
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
एक-एक वाक्य जीवन में गहराई तक उतरने वाले हैं...सुंदर प्रस्तुति।।।
बहुत अच्छा चिंतन है ....मैं भी सहमत हूँ कुछ -कुछ ....
बिल्कुलसही बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!
बिल्कुलसही बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!
sahi, satik aur sundar abhivykti
पहली बार आपका लिखा पढ़ा, बहुत खुब.
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मार्मिक..आनंद दायक उत्कृष्ट विचारों से युक्त प्रस्तुतिकरण के लिए आपका बहुत-बहुत आभार..गुरु पर्व पर बहुत-बहुत शुभकामना सा ..
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क्या बात है.. बहुत-बहुत शुभकामना सा ..
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आदरणीया अनु जी, सुन्दर और सार गर्भित बातें आपने सहज भाव से समझाई ,
इतनी उपयोगी बातों को लिखने के लिए आपको काफी मेहनत करनी पडी होगी , ब्लॉग लिखने की सार्थकता इसी में है कि हम अच्छी बातों को सरल ढ़ंग से सभी को समझा सकें ,
मुझे लगता है हम सभी को कम से कम एक बार यह सब अपनाने की कोशिश करने से ही लेखन को सही प्रोत्साहन मिलेगा !
आगे भी ऐसी जानकारियां मिलती रहेंगी इस आशा के साथ आपको धन्यवाद!
आदरणीया श्रीमती अंजू जी,
सादर प्रणाम ,
बहुत ही सकारात्मक लेखन |
जानवर , .....आदमी ,...... फरिश्ता ,..... खुदा,
''आदमी'' की है ; ................. सैकड़ों किस्में।
कुछ सकारात्मक आडियो टेप्स और लेखो के लिए आप सादर आमंत्रित हैं -
http://drakyadav.blogspot.com/
vvvvvvv nc anu g
nc
सटीक और सार्थक विशेलेषण .........
like :)
अच्छे विचार ..
आपके इस आलेख का जिक्र दैनिक भास्कर मे २१ जुलाई को हुआ था जिसकी इमेज मैने आपके ब्लाग पर दिये गये इमेल anjuchaoudhary40@yahoo.com पर भेजा था, शायद मिल गया होगा?
रामराम
taau@taau.in
बहुत सुन्दर ....बहुत बढियां
आपने सूचित किया ....आभार ताऊ जी
सुंदर रचना... :)
आपके ये विचार बहुत सुन्दर ....बहुत बढियां हैं -
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