ओ! कुर्सी के निर्माता
एक कुर्सी मुझे भी भिजवा दो
गर्दन और कंधे का
दर्द मिटा दो ||
एक कुर्सी मुझे भी भिजवा दो
गर्दन और कंधे का
दर्द मिटा दो ||
देखो ना...
इसी कुर्सी के लिए
नेताओं ने
देश के हिस्से
कर डाले
अपनों ने,अपने ही
मार डालें
उफ़! इस कुर्सी की
महिमा है निराली
जो है आम जनता की
उम्मीदों पर भारी ||
ओ-कुर्सी के निर्माता
ये कुर्सी-लोक है
घूम-फिर कर
सबको यहीं
है आना
इस कुर्सी के लिए
हर गठबंधन
बनाया और तोड़ा जाता
झूठे बयानों का छींका
किसी पर भी
फोड़ा जाता
सबका सपना है
ये कुर्सी
अब ओर क्या कहूँ
क्या क्या महिमा
कुर्सी की मैं बतलाऊं |
हर नेता की आस है
राजनीति की चाल है
ये कुर्सी
हत्याधारी, अत्याचारी और
बलत्कारी का बचाव है
ये कुर्सी
कुर्सी की गिरफ्त में
गिरफ्तार हर कोई
उफ़! ये कुर्सी
हाय! ये कुर्सी |
पर,मेरे लिए भी
वरदान है
ये कुर्सी,
काम करने के बाद
कुछ पल आराम के देती है
ये कुर्सी ||
बस
मेरा ये काम करवा दो
दुआ दूंगी
हर वक्त तुम्हें
इस अनचाहे
दर्द को मिटा दो
ओ-कुर्सी के निर्माता
एक कुर्सी...मुझ को भी
भिजवा दो !!!
अंजु(अनु)
34 comments:
war re kursi..
manbhavan kursi..
ek mere liye bhi pls...
superb :)))
:)))))).......मुकेश जी वैसे भी सरकारी कुर्सी पर हो आप
awesome....
सब दुखों के साये में है
क्या कविता सुनाये
सारा जहाँ उदासी के साये में
क्या कविता सुनाये
सदा रहते जो राजनीती के रंग में
केवल वही देश के सेवक है;
क्या कविता सुनाये,
बन्ने आये थे जो देश सेवक ,
वही आज कुर्सी की चाह में,
खुद ही लगे है ,
कुर्सी बचने में,
न जाने मध्यावधि कभी भी हो जाये
क्या कविता सुनाये.
-(नेह्दूत)
haay ri kursi ..badiya
विवेक जी ....मेरी इस कुर्सी का आधार ये नेहदूत ही है
भारत ...ये कुर्सी की सोच आपके यहाँ से ही आई है...आप जानते हैं :)))
बहुत सुन्दर व्यंग्यात्मक कविता के लिए बधाई... - पंकज त्रिवेदी
कुर्सी की महिमा निराली..
बहुत ही बढ़ियाँ रचना...
:-)
बहुत बढ़िया कुर्सी महिमा !
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पर,मेरे लिए भी
वरदान है
ये कुर्सी,
काम करने के बाद
कुछ पल आराम के देती है
ये कुर्सी ||
काश नेता भी इस कुर्सी से सिर्फ़ आप जैसा ही नेह रखते तो आज भारत की ये दुर्दशा ना होती, बहुत ही अर्थपूर्ण कविता.
रामराम.
बिलकुल सही कहा अंजू जी आपने, इस कुर्सी के लिए ही सब दीवाने है
इनके एक ही अरमान
चाहे देश बने श्मशान
मेरी कुर्सी सदा रहे आबाद
जाड़ा-गर्मी या हो बरसात
इन सब की एक ही मांग
हमे जीतावो अब की बार...
अन्जु चौधरी जी,
कुर्सी के उपर बहुत ही सुंदर रचना आपने लिखा है,बहुत बढ़िया.
अरे वाह यह तो गज़ब कि कुर्सी है भई...:))एक हमें भी भिजवा दीजिये क्या पता यहाँ लंदन में भी इसका जादू वैसे ही चल जाये जैसे वहाँ चलता रहता है ;)
ab ye kursi virasat me bete sambhal rahe hain aur kuch sambhalne ki taiyari kar rahe hai.....
अपने लिए तो बस आरामदायक ही है कुर्सी .... हाय हाय करने वाले तो नेता ही हैं कुर्सी के लिए । बढ़िया रचना
हाय रे हाय ये कुर्सी! .... बेहतरीन रचना |
behatareen rachna
behatareen rachna
हम सबके लिए भी दुआ की जाए कि एक-एक कुर्सी इधर भी..
किस्साये कुर्सी..बढ़िया..
सांसों की ज़रूरत है जैसे जिंदगी के लिए,
बस एक कुर्सी चाहिए राजनीति के लिए...
और उस कुर्सी के साथ एक टंच माल (आजकल इसकी बहुत चर्चा है ना) हो तो और अच्छा;-))...क्योंकि अक्ल का होना ना होना मायने नहीं रखता ना....;-))
Bahut khub
achchhi bakhiyaa udheri
mazaa aayaa
अच्छी रचना और सत्य वचन :)
बेचारी कुर्सी का नाम इतना बदनाम कर दिया है इन नेताओं ने ... की कुर्सी की बात हो और नेताओं का जिक्र आ जाता है ... सच है ये आम इंसान की जरूरत भी है ... अच्छा व्यंग है ...
सुंदर रचना.....
सारा झमेला इस कुर्सी का ही है... बहुत बढ़िया अर्थपूर्ण व्यंग
हाहाह, बढिया
किस्सा कुर्सी का ।
bahut mehngi hai kursi aajkal
अब देखिये न इस कुर्सी के लिए अमरीका के पास पहुँच गए मदद मांगने
बहुत खूब! कुर्सी की महिमा अपरम्पार है...
बहुत अच्छा व्यंग्य है ...
बहुत खूब...
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