जानती हूँ कि मैं कोई नई बात नहीं लिख रही हूँ ....पर आज जब हल्ला बोल प्रोग्राम देखा तो एक सोच मन में उठी और उसी सोच को बस शब्द देने का प्रयास किया है
टीवी पर आने वाले कार्यक्रम, खासकर सास-बहु टाइप प्रोग्राम से अब ऊब चुकी हूँ | इन बेकार के प्रोग्राम का असल जिंदगी से कोई लेना-देना नहीं है, एक भेड़चाल की तरह सब कुछ सालों चलते रहते हैं | ऐसा एक कार्यक्रम एक चैनल पर जैसे ही हिट होता है उसी टाइप के सीरियल हर चैनल पर शुरू हो जाते हैं |अब झेलों इन्हीं कार्यक्रमों और न्यूज़ चैनल्स का तो ओर भी हाल बुरा है| एक ही न्यूज़ को बार-बार दिखा कर इतना बोर कर देते हैं कि फिर से न्यूज़ देखने की हिम्मत ही नहीं बचती |
जैसे जैसे मैंने आज कल के युवाओं की पसंद के प्रोग्राम देखने शुरू किए हैं वैसे वैसे मैं जान पा रही हूँ की आज कल अपने ही समाज में युवा होती लड़कियों के लिए जीना कितना मुश्किल हो गया है |मेरी अपनी कोई बेटी नहीं है....शायद इसी वजह से मैंने बहुत सी बातों से अंजान रही |
बेटों की माँ होना और एक युवा होती बेटी की माँ होने में बहुत फर्क है ये बात अब मैं बहुत अच्छे से समझ गयी हूँ |पर आजकल की लड़कियाँ भी घर बैठना,घर के कामों में खुद का इन्टरेस्ट बना के रखना पसंद नहीं करती | उनकी भी ये ही इच्छा रहती है कि वो भी किसी ना किसी फील्ड में महारथ हासिल करें |
बेटों की माँ होना और एक युवा होती बेटी की माँ होने में बहुत फर्क है ये बात अब मैं बहुत अच्छे से समझ गयी हूँ |पर आजकल की लड़कियाँ भी घर बैठना,घर के कामों में खुद का इन्टरेस्ट बना के रखना पसंद नहीं करती | उनकी भी ये ही इच्छा रहती है कि वो भी किसी ना किसी फील्ड में महारथ हासिल करें |
मैं इसे गलत नहीं मानती पर जिस तरह से लड़कियाँ को बहका कर गलत रास्तों पर आगे बढ़ाया जा रहा है वो हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए ठीक नहीं है |तभी तो झूठे सपने और वादों की बातों में ऑफिस में काम करने वाली लड़की अपने बॉस के हाथों छल ली जाती है....कोचिंग क्लास लेने वाली लड़की को उसका ही टीचर, अच्छे रेंक आने का लालच दे कर, कहीं का नहीं रहने देता |
अपने सपनों को सच करना क्या कोई गुनाह है? अपने लिए कुछ अच्छा सोचना क्या इतनी बड़ी गलती है कि लड़की होने के नाते उसकी कीमत उसे अदा करनी ही है ???
गंभीर प्रश्न तो बहुत है,मुद्दे हर कोई उठा देता है पर उसका हल कोई भी नहीं सुझाता |
आज अभी एक प्रोग्राम में देखा कि स्विमिंग सीखने वाली कॉलेज की लड़की को उसका कोच हर
तरीके से तंग करता हैं और उसकी आँखों में जीतने का सपना इतना सजा देता है कि ताकि वो उस लड़की को अपने साथ सेक्सुयली ईनवॉल्व कर ले पर लड़की को उसके इरादे का पता चल जाता है |इसी के चलते वो कॉलेज के प्रिन्सिपल और सबके सामने उसके सच को अपनी समझदारी से,सभी सुबूतों के साथ ...उसके इरादो का सब के सामने खुलासा कर देती है |
पर हर लड़की ऐसा नहीं कर सकती....सब में इतनी हिम्मत नहीं होती कि वो अपने साथ हो रहे गलत व्यवहार को, हो रहे अन्याय का खुल कर सामना कर सके क्योंकि हमारा समाज कभी आदमी में कोई बुराई नहीं देखता बल्कि उसके हर बुराई लड़की में ही नज़र आती है|तब मन ओर भी दुखता है जब अपने ही अपनें बच्चों की बात को नहीं समझते, वो भी बस दुनिया की कही बातों में आ कर अपने बच्चों का मूल्यांकन उनकी बातों से करने लगते हैं |
बहुत से लोगों के मुँह से हर टीवी के कार्यकर्मों की बुराई ही सुनी है यहाँ तक बहुत बार मैंने भी ऐसा ही कुछ कहा और लिखा भी है |पर आज मैं इस बात से सहमत हूँ कि जिस तरह आजकल वी टीवी (V॰TV) और बिंदास टीवी (bindas tv)पर दिखाये जा रहे प्रोग्राम हल्ला बोल (halla bol) हीरोस(heroes), सोनी टीवी (sony tv) पर दस्तक(dastak) और लाइफ ओके (life ok) पर सावधान इंडिया(savdhan india) कुछ ऐसे कार्यक्रम हैं जिन्हें देख कर कम से कम हर युवा लड़की या कोई भी कामकाजी महिला अपने आपको को सेक्सुयल हेरस्मेंट होने से बचा सकती हैं |
एक माँ होने के नाते में इतना जरूर जानती हूँ की आजकल बच्चे बहुत समझदार और प्रेक्टिकल हैं |
अंजु चौधरी (अनु)
9 comments:
गंभीर मुद्दे पर चोट करती......... सच्चाई !!
सोचना होगा !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (27-04-2014) को मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595) में अद्यतन लिंक पर भी है!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही आकलन !
इसमें कोई दो राय नही कि आजकल बच्चे ज्यादा समझदार हो गए हैं पर फिर भी माँ बाप का फर्ज बनता है कि उसे हर बुराई, समाज कि विकृतियों के प्रति सजग करें ... वो भी इस तरह कि वो आम्त्विश्वासी बने न कि डरपोक ...
सही कहा..कुछेक प्रोग्राम निश्चित ही काफी सतर्क रखने का काम करते हैं।।।
बहुत सही कहा ,,समस्या ही नही बल्कि समाधान पर भी प्रोग्राम बनना चाहिए..
atiutam-***
Gambhir vishay ko gambhirta se likhne ke liye dhanywad
ji bahut achhe mudde ko uthayaya hai . parenting bete ke parents ke liye bhi kam chunautipoorn nahi hai... badhiya lekh...
हालात बहुत गंभीर है ऐसे में बच्चों को प्रैक्टिकल होकर खुद ही सही गलत का चुनाव करना होगा..हर समय माता-पिता का उनके साथ होना भी संभव नहीं ..पर पेरेंट्स की भी जिम्मेदारी बनती है की वे अपने बच्चो को सही गलत सिखाये और उनकी बातों को सुने समझे...और टी.वी में भी बोरिंग सीरियल देखने के बजाय ऐसे सीरियल हमें सिख भी देते है ,आइडिया और हिम्मत भी.. बहुत ही अच्छे लेख के साथ आपने अपनी बातों को प्रकट किया है..
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