उसकी आखिरी रात में
साँसों का चलना
और
साँसों का रुकना
इसी के बीच
रुक-रुक के चलती जिंदगी
पर वो
जिंदगी की आखिरी रात
सो कर नहीं बिताना चाहती
वो भूल जाना चाहती है
कि
वो एक औरत है
एक स्त्री, एक माँ है
एक बेटी और एक बहन है
किसी के घर की
वो खुद के लिए एक संसार
रचना चाहती है
उसके आँसू, उसकी हँसी
और उसके दर्द की परछाई
जिस में छिपी है उसकी जिंदगी की सच्चाई
जिस से वो
बाहर निकलना चाहती है
जो फर्ज़ और दायित्व के नाम पर
उसकी पीठ पर लाद दी गयी है
वो पत्थर तोड़ती,
किसी के घर के धोती बर्तन
या मजदूरी की कीमत पर
अस्मत पर वार सहती
जिसको हर किसी ने कम समझा
कम ही आँका
फिर भी वो अपनी
पथरीली और काँटों की
राहों को त्याग
खुद के लिए
मखमली राह का
निर्माण करना चाहती है
अपनी आखिरी रात
अपने ही अंदर आँसुओं को ओढ़ कर
नहीं सो जाना चाहती
एक आत्मविश्वास सी परिपूर्ण
नए समाज का निर्माण कर
वो तो नवजात शिशु सी किलकारी के साथ
विदा लेना चाहती है
उसे अपने
विस्तार के लिए
किसी समुंदर की जरूरत नहीं
उसकी उन्मुक्त उड़ान ही
उसकी उपस्थिति है इस जाहन में
है अब
उसका खुद का आकाश,
खुद का विस्तार
खुद की जिंदगी की
आखिरी सांस
उसकी आखिरी रात में |
अंजु चौधरी (अनु)
5 comments:
बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना.....
bahut badhiya
आखिरी रात ऐसी ही हो
एक आत्मविश्वास सी परिपूर्ण
नए समाज का निर्माण कर
वो तो नवजात शिशु सी किलकारी के साथ
विदा लेना चाहती है
बहुत बेहतरीन !!
बेहतरीन
अंजू जी बहुत सुंदर लिखा है ...
सहज अनुभूति की सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
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