वजह हो तुम .......
मन बेचैन है मेरा ...
याद् बन गये हो,
क्यूंकि साथ नहीं हो तुम .......... हृदय में उतर जाते हो ,
मेरी स्पंदन हो तुम .....
मेरे होने की वजह ,
मीठा बंधन हो तुम ......
आँखों में बसते सपने हो तुम
आती हुई हवायो ने
कर दिया बेताब दरिया कि तरह
कली सी मुस्कान सजती रहे
तुम्हारे होंठो पे ,
जब ढूंढती हूँ कण - कण में ,
सब में व्याप्त हो तुम ,
कैसे भूलूँ तुम्हे पल भर को भी ,
मुझमे शुरू , मुझमे समाप्त हो तुम ..
(......कृति ...अंजु..अनु ..)
3 comments:
Kese bhulu pal bhar ko bhi tumhe mujh hi se suru mujh hi se samapat ho tum. Bahut khub kya baat he adbhut
''कर दिया है बेताब दरिया की तरह'' ये शब्द काफी बेचैन कर गए जैसे की कोई दरिया अपनी सीमायें भूलकर बहना चाहता हूँ,,,
"जब ढूंढती हूँ कण कण मे, सबमे व्याप्त हो तुम" वास्तव मे "प्रेम" को देवता के रूप मे देखा जाय तो सचमुच कण कण मे व्याप्त है वो। क्या कहें शब्द चयन नायाब है। मन मे भाव उमड़ने से स्वमेव शब्द मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं। सुन्दर रचना।
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