मन क्यों अशांत सा है
संतुष्टि का भान क्यों नहीं है
जल रहा दीया
फिर पतंगा ही परेशान सा क्यों है
भागा था वो अँधेरे से डर कर
पर क्या मिला रोशनी में आ कर उसे
क्यों आँखे सूज रही है
रोते रोते आज
क्यों हो रही है
किरणे मैली सी आज
क्यों शब्दों में है अपमान की भाषा
विचारो कि शुद्दता कहाँ खो सी गई है
आज तो सब वाकया ही बदल गया
क्यों आज अपनी ही बेटियां
एक बाप के लिए बोझ हो गई
क्यों एक मकान घर मे बदल गया
क्यों सारे शहर का मिजाज़ बदल गया
सुना था घर के चिराग से घर जल गया
पर यहाँ तो बड़ो की खुदगर्जी का साया
हम बेटियों पर भी पड़ गया
मेरे मालिक........
तुझ से है इति सी बिनती मेरी
मुझे इंसान बना रहने दो
बनी रहे मेरे दिल में ममता की मूरत
तेरे जहाँ को प्यार कर सकूं
बस इतनी रहमत करना ।
कृति अंजु..(.अनु )
7 comments:
अत्यंत सुन्दर रचना ,,एक खूबसूरत अंत के साथ ....शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है ...शायद सफ़र कुछ आसान हो ,,,!!!! इस रचना के लिए बधाई आपको
Rajendra jee ne sach kaha.........!!bahut khubsurat rachna........:)
mere malik
meri bhi vinti sun lo
mujhe bhi ek insaaan hi bane rahne do....:)
आमीन!
bahut sundar rachna ....
very nice blog
Pawan:www.gaurtalab.blogspot.com
anu ji
bilkul sahi farmaya aapne
bilkul satik
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
आज से हम भी आपके साथ है
aap sab ka aabhar ki aapko meri rachna pasand aayi
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