Saturday, April 23, 2011
खामोशी
रात की गहन खामोशी में
नींद आँखों से कोसो दूर
अचानक यादो का एक रेला
इन आँखों में चलचित्र
सा घुमा ......
वो आतंकी मौहोल
वो पिता कि गोलियों से
उधड़ा शरीर ..
मौत के तीन दिन बाद
भी रिसते घाव
मेरे मन को विचलित
कर गया
आँखों से ना बही
अश्रु की धारा
पर ये
मन कढोर हो गया ...
एक हादसे से छीन गया
मेरा सारा बचपन
स्कूल बंद ..दुकाने बंद
घर में कैद हो गया बचपन
माँ के ना थमने वाले आंसू
छोटे भाई को बस एक बार बचा
लेने की तम्मना
अहम हो गई ....
रिश्तेदारों का यूँ
मुह मोड़ लेना
मेरे विश्वास की
धज्जियां उडा गया....
सुना है कि ...
मोर नाचते हुए भी रोता है
हँस मरते हुए भी गाता है
ये ही इस जिन्दगी का
फलसफा है
दुखो वाली रात नींद
नहीं आती
फिर भी ..
मैंने करवट बदली ...
रात अभी भी गहन थी
और ना जाने कितनी लम्बी
मेरी ये यादो की किताब है
हर रात एक नई याद लेके
आती है
हर याद से एक
कहानी बन जाती है
.((अनु..)))
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19 comments:
jane kitne aansu sukh jate hain , jane kitne rishte ajnabi ho jate hain ... zindagi yun hi yaadon ko ikatthi karti hai
मर्मस्पर्शी /सुन्दर रचना .
bahut sundar anu
बहुत दर्द है आपकी रचना में।
बढ़िया प्रस्तुति ....शुभकामनायें !
अनु मेम !
सादर प्रणाम !
गहरी अभिव्यक्ति!
रात एक ऐसा फल सफा है जो हर सिरहाने सर रखते ही भूली बिसरी याद उकेरने लग जाता है जब कि कोई मन के बिलकुक करेब होतो उनकी तस्वीर सामने से हटाता ही नहीं है बैरन रात .!
साधुवाद !
सादर
अनु,
आतंक उतना आतंकित नहीं करता जितना अपनों की उपेक्षा.आदमी समय के साथ अनहोनी की चोट से तो उबर जाता है,मगर अपनों के दिए घावों पर मरहम नहीं लगा पाता है.यह रचना अंतर्मन को भीतर तक झकझोर जाती है.इसने अनायास ही 26/11 की याद दिला दी.
bahuto ne aisa dard anubhav kiya...sach me ye atankwaad ka saya kaise apno ko nigal jata hai, aur ham bas unhe yaadon me hi sahej kar jinda rah pate hain....!
ek kathor dard ko ukerti rachna..!
BEBE DEAR,
Samay ke sath anju sach me har bita lamha ek kahani ke alawa kuch bhi nahin rahta sukhad ho to huns lete hain dukhad hai to aankhen nam kar khamoshi me jee lete hain, yahi jeevan hai -- -- --
बढ़िया प्रस्तुति ....शुभकामनायें !
आपकी कविता वटवृक्ष में पढी, आपका ब्लॉग देखा, बहुत अच्छा लगा , दिल्ली हिन्दी भवन में ब्लॉगर्स सम्मेलन में भी आपकी चर्चा सुनी । बधाई स्वीकारें......
बहुत दर्द है आपकी रचना में।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
अनु जी,
मेरे ब्लॉग पर आने और कमेन्ट देने के लिए शुक्रिया.आपकी इस मार्मिक कविता पर मेरी टिप्पणी पहले ही मौजूद है.आप अच्छा लिखती हैं.आपको पढता रहूँगा.आप भी मेरे ब्लॉग पर आती रहिएगा.पुनः आभार.
great!!!!!!!
yaade hi kahaaniya banti hain....
har roj ek purani yaad nai bankar aati hai, nai kahaani banaati hai........
आप सभी दोस्तों का शुक्रिया ...
मार्मिक अभिव्यक्ति है, यादें अक्सर हमें सताती हैं, लेकिन वक़्त हर घाव को भरता है, यही शायद जीवन का दस्तूर है, बहुत शुभकामना आपको!
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