क्या पाया क्या खोया है ....
कभी सोचा था कि
वक़्त को कसके मुट्ठी
में बांधूंगी !
ये जानते हुए भी -
ना वक़्त रुकता है
न रात रूकती है
ना रुके ये सुबह
न दिन न शाम .........
फिर भी यादे है कि
सफ़ेद हँस सी चली आती है
खोजती है बसेरा ..वो मन की
तेज़ी -ए-रफ़्तार में .....
वक़्त हाथो से
खिसकता रहा
जो कल थे बच्चे
आज वो जवाँ हो गए
अकेले रास्तो में चल रहा
सूरज भी थक गया ....
रोशनी भी मन की
संकरी गलियों
में भटक गई
बताने लायक बात
गले में अटक गई ....
कैसी रात सन्नाटे
भरी आ गई
हाथ अपने पसारे ही
दिखते नहीं...
सोचते सोचते सर
फट गया ..
कैसे सुलझाये उलझे
संबंधो के धागे
सुलझते सुलझते कहीं ये
अलग अलग ना हो जाए .
कैसे मन का द्वेष मिटेगा
अपनों से ..
कहीं उनके मन का
प्रेम ही
ना मर जाए ...
ये तो कैसा खेल समय
के सकुनी का
जिसके पासो की
चाल समझ ना आती .....
कहना है जो बात
वो कही ना जाती ...
ऐसा भवर उठा मन मे
की सागर
भी बेहाल हुआ
कैसी राते काली है
ये मेरे जीवन की
जिनमे पता नहीं
क्या पाया क्या खोया है .....?
(अनु )
कभी सोचा था कि
वक़्त को कसके मुट्ठी
में बांधूंगी !
ये जानते हुए भी -
ना वक़्त रुकता है
न रात रूकती है
ना रुके ये सुबह
न दिन न शाम .........
फिर भी यादे है कि
सफ़ेद हँस सी चली आती है
खोजती है बसेरा ..वो मन की
तेज़ी -ए-रफ़्तार में .....
वक़्त हाथो से
खिसकता रहा
जो कल थे बच्चे
आज वो जवाँ हो गए
अकेले रास्तो में चल रहा
सूरज भी थक गया ....
रोशनी भी मन की
संकरी गलियों
में भटक गई
बताने लायक बात
गले में अटक गई ....
कैसी रात सन्नाटे
भरी आ गई
हाथ अपने पसारे ही
दिखते नहीं...
सोचते सोचते सर
फट गया ..
कैसे सुलझाये उलझे
संबंधो के धागे
सुलझते सुलझते कहीं ये
अलग अलग ना हो जाए .
कैसे मन का द्वेष मिटेगा
अपनों से ..
कहीं उनके मन का
प्रेम ही
ना मर जाए ...
ये तो कैसा खेल समय
के सकुनी का
जिसके पासो की
चाल समझ ना आती .....
कहना है जो बात
वो कही ना जाती ...
ऐसा भवर उठा मन मे
की सागर
भी बेहाल हुआ
कैसी राते काली है
ये मेरे जीवन की
जिनमे पता नहीं
क्या पाया क्या खोया है .....?
(अनु )
37 comments:
जीवन इन्ही खोने और पाने का नाम है.. सुन्दर कविता..
मुट्ठी में रेत बांधो , तो जितनी कस कर बांधो - उतनी जल्दी फिसलती है | मुट्ठी खोल दो - तो अनंत तक हथेली पर धरी रहेगी वही रेत ...
सुन्दर कविता ...
मन की उलझनों को सुलझाने की जुगत में लगी सुन्दर कविता
khona pana jindagi ka naam hai...
umra bit ti hai, kuchh na kuchh judta rahta hai....naya:) to kuchh khote bhi hain..!
kash ham waqt ko bandh paate!!
waise har panktiyan lajabab!
"कभी सोचा था कि
वक़्त को कसके मुट्ठी
में बांधूंगी !"
हर कोई यही सोचता है,मगर ऐसा कहाँ होता है.जीवन पहाड़ से उतरती नदी सा है,सागर में समा के ही दम लेता है.इमानदार भवों की अभिव्यक्ति.
कई बार जानते बूझते भी ऐसा कुछ कर जाने को दिल कर जाता है....उम्दा रचना.
सुन्दर कविता..
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं-
ये जानते हुए भी -
ना वक़्त रुकता है
न रात रूकती है
ना रुके ये सुबह
न दिन न शाम .........
फिर भी यादे है कि
सफ़ेद हँस सी चली आती है
खोजती है बसेरा ..वो मन की
तेज़ी -ए-रफ़्तार में .....
कैसे सुलझाये उलझे
संबंधो के धागे
सुलझते सुलझते कहीं ये
अलग अलग ना हो जाए .
कैसे मन का द्वेष मिटेगा
उलझन में डूबी कश्मकश ...अच्छी प्रस्तुति
यही कशमकश एक दिन मंज़िल भी दिखाती है।
क्या खोया क्या पाया ??
चैन खोया दर्द पाया
फिर भी मन न अघाया--
कलम चूमी गम गाया
फिर भी मन भरमाया ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
कैसे सुलझाये उलझे
संबंधो के धागे
सुलझते सुलझते कहीं ये
अलग अलग ना हो जाए
bahut hee khoobsoorat soch ke saath likhi hui aapki ye rachna!
बहुत सुंदर कविता....
कैसे सुलझाये उलझे
संबंधो के धागे
सुलझते सुलझते कहीं ये
अलग अलग ना हो जाए .
वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...
kis ne roke panv smy ke kaun chla soorj ke aage
har gya iswr bhi is se smy rha hai sb se aage
yh ek schchai hai jise aap ne phchana hai
bdhai
वक्त को कसकर पकड़ने के बजाय पकड़ना था उसका हाथ
और चलना था साथ साथ.....
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
इस बहुत खूबसूरत भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
नीरज
बहुत सुंदर मार्मिक रचना……॥बधाई।
Bahut hi gahri baten chupi hui hain is rachna me......... Achi lagi apki ye rachna.
Jai hind jai bharatBahut hi gahri baten chupi hui hain is rachna me......... Achi lagi apki ye rachna.
Jai hind jai bharat
बढिया रचना।
बधाई
सभी तो यही चाहते है कि वक्त को रोक लें। पर ये संभव तो नही है। खुबसुरत रचना। आभार।
बेहतरीन।
सादर
Ashok Arora
anju ..phichhale dino teji se ghate ghatanakram ko aap bahut achchhi abhivyakt kiya...hai...Samay ko kaun nahi rokana chahata..par ye ret kee tarah saath phisal jaataa hai...aur is me samay ka bhee kya dosh....chalana to iski niyati hai...samajhadaar wo hi hai jo samay ke saath khud bhee chal padae.....
Aap anju bahut sunder lakhati hain..God bless u..
क्या पाया क्या खोया है ......?
बदलते वख्त के साथ संबंधों का मार्मिक विश्लेषण ......सुन्दर एवं भावपूर्ण
badiya kavita, sadhuwaad
24 july ko Arya College, Panipat me sham ko 4-6 Dev Nirmohi ki kahaniyon ki Pustak par paricharcha sangoshthi hai.....samay or man ho to aaiyega......
सुन्दर और सारगर्भित कविता और कल्पना शक्ति के लिए आपको बधाई
सुन्दर कविता..
कैसे सुलझाये उलझे
संबंधो के धागे
सुलझते सुलझते कहीं ये
अलग अलग ना हो जाए .
कैसे मन का द्वेष मिटेगा
अपनों से ..
कहीं उनके मन का
प्रेम ही
ना मर जाए ...
अति सुन्दर , संबंधों के धागे को बहुत संभल कर रखना पड़ता है |
अनु जी आप की कविता तो बहुत ही अच्छी और जीवन का आइना दिखने वाला हे और सच कहू तो मुझे आप की कविता का इंतजार रहता हे
पर आप की कविताओ के लिये मेरे पास शब्द नहीं होते हे
आप मेरी ख़ामोशी को ही मेरे शब्द समझे
isi khone aur pane me to sari jidagi gujar di hamne ,
bhavpurn aur dharapravah rachna ke liye hardik badhayi
आदरणीया अंजू चौधरी जी हार्दिक अभिवादन सुन्दर रचना प्यार से सुलझाएं सब सुलझ जाता है प्यार भर जाता है चिराग जल जाता है रातें काली नहीं फिर चाँद खिल जाता है
कैसे सुलझाये उलझे
संबंधो के धागे
सुलझते सुलझते कहीं ये
अलग अलग ना हो जाए .
धन्यवाद -शुभ कामनाएं
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
क्या खोया क्या पाया ??
चैन खोया दर्द पाया
फिर भी मन न अघाया--
कलम चूमी गम गाया
फिर भी मन भरमाया ||
.......अति सुन्दर , संबंधों के धागे को बहुत संभल कर रखना पड़ता है |
वाह एक सुंदर रचना.
kya khoya kya payaa...ek ati sunder rachanaa hai..aur ANU ji aap is ke liye...badhaee ki paatra hain....aese hi likhat rahe..ye hi meri shubhkamanaaye hai.......
बताने लायक बात
गले में अटक गई ....
bahut hi saralta se keh di barson ki gale mein atki baat
abhar
Naaz
http;//sukh-riya.blogspot.com/
kya khoya kya payaa...ek ati sunder rachanaa hai..aur ANU ji aap is ke liye...badhaee ki paatra hain....aese hi likhat rahe..ye hi meri shubhkamanaaye hai.......
http;//sukh-riya.blogspost.com/
क्या पाया क्या खोया है...अंजू जी आपके द्वारा रची एक .अति सुन्दर ...रचना है जो ....व्यक्त करती है ... उस समय धारा को जो बहती जाती है.. उस समय के साथ कभी उलझते और कभी सुलझते संबंधो की व्यथा को.....ऐसे लिखती रहें ..और ..हमें ....मौका देती रहें .....ऐसे ही कुछ कहने का.....
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