आप सबसे सप्रेम निवेदन .......ये कविता किसी व्यक्ति विशेष को सोच कर नहीं लिखी गई ......ये एक सोच है ...जो दिल से कलम में उतर गई ....ये एक सरल कविता है...कविता जैसे ही इसे पढ़ा जाए .......आभार
क्या करे अब ......अजीब सी दुविधा
अजब गजब सी ये दुनिया देखी
अजब गजब के है मेरे समेत लोग यहाँ
अपनी कविता के वास्ते
मांगे हर कोई भीख ....
लो जी ...कविता ना हुई
हो गई आज़ादी देश की
जो सुभाष चन्द्र जी का नारा है
'' तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आज़ादी दूंगा ''
आज उसी तर्ज़ पर चल रहे
इस सारे ब्लोगर जगत के
नर और नारी..
तू मुझे दे
मै तुझे दूँ ...टिपण्णी
तभी तो होगा
बराबर का हिसाब किताब |
इस से अछूती नहीं अपनी
भी हस्ती ..
अपनी ही दर्द भारी कविता पर
''पर्यावरण को बचाना है ''
की .. ..टिप्पणी ने ..
एक बार चौका दिया
उस दिन लगा कि ये तो मायाजाल है
बेकार का फांसी का फन्दा है
जो इस में एक बार फंसा
वो फंसता ही चला गया
एक और नया टंटा निकल कर
सामने आया है ...
होंगी जितनी भी टिप्पणी
उसे ही विजय ताज पहनाया
जायेगा ....
देखो जी ..फिर से
फेसबुक ...और जी-मेल पर
मेरे समेत
सबकी भीख की
अर्जी लगी हुई है ...
किसको भीख दे और किसको नहीं
सभी ही की तो
लम्बी कतार है यहाँ
जिसको देंगे वो अपना हो जायेगा
जिसको नहीं देंगे
वो दुश्मन बन जायेगा
फिर कभी मुड़ कर मेरे
''ब्लॉग ''पर नहीं आएगा
उसको हम फूटी आँख
नहीं सुहायेंगे ...
अब बोलो हम
किस किस से दुश्मनी
करके इस ब्लॉग और ब्लोगर की दुनिया से
कहाँ जाएंगे
अनु
48 comments:
हा हा हा हा , बिलकुल सही कविता / व्यंग , सबकी मनोभावना यही होती है आजकल ...
सादर
कमल
सही आत्मचिंतन है कविता के माध्यम से। :)
bahanji ye aapki soch hi nahi .aaj ki jwalant sacchai bhi hai...bahoot khoob....
:D:) bahut badi mohjaal hai ye duniya...
sabhi aam bloggers me "akhbar me naam" ke character ki tarah bahut saare comments ya kisi bhi patrika ya media me jaise bhi (by hook or crook)sthan pana khushi deta hai.......
par ye mere najar me jayaj hi lagta hai...:)
waise rachna badi pyari hai...aur khubsurat ..
jo bhi padhega yahi kahega, mere liye hai:D
maa bilkul sahi kah raheen hein aap...aajkal ke log aise hi ho gaye hein...poori matlab ki duniya hai ye maa...jo aaj apke sath dikh raha hai uske peeche bhi koi na koi matlab hi chhupa hai...
हा हा हा …………
है टिप्पणी यहाँ की रीत सदा
मै टिप्पणी सदा करता हूँ
ब्लोगजगत का रहने वाला हूँ
ब्लोगिंग की बात बताता हूँ…………
कैसा रहा अनु जी ……………इस 99 के चक्कर मे मत पडिये बस लिखती रहिये हमारी तरह्………और मस्त रहिये ।
बहुत खूब सुंदर रचना.बधाई....
अनु जी ,
ये आप की सोच नही ,आज की सच्चाई है
तू मेरी पीठ खुजा ,मैं तेरी पीठ खुजाऊं
इसी में हम सब की भलाई है ...:-) :-)
खुश रहिये !
शुभकामनाएँ !
Bilkul sahi kaha hai accha vyang blog jagat par ab jo sach hai wo to sach hi rahega chahen kitna hai muh mod len.
Ab comments karna bhi jaruri hai warna pata kaise chalega ki hamne aapki kavita padhi hai.
ashok sir...... aapne to hamare muh ki baaten chhin li:))))
मैंने आप सब के साथ बस एक सोच को साँझा किया है .......मै किसी पर कोई व्यंग नहीं कर रही ...अपितु मुझे ख़ुशी है कि हम ब्लॉग के माध्यम से एक दूसरे के साथ एक अटूट बंधन में जुड़े है......आभार आप सबका
क्या व्यंग है...सबके चेहरे से नकाब नोच लिया है आपने...बधाई
नीरज
भाई जमाना है तू मेरी पीठ खुजला मैं तेरी पीठ खुज्लाऊंगा तो कोई कैसे करे तारीफ बिन तारीफ के .............
टिप्पणियो का सुन्दर संसार ..जो एक टिप्पणी देगा उसे भी एक ही मिलेगा..
हाहाहहाहाह क्या बात है। आखिर आप को भी सच बोलने के लिए मजबूर होना पड़ गया।
मुझे याद है मैने काफी पहले एक लेख लिखा था
तुम मुझे पंत कहो मैं तुम्हें निराला..
http://aadhasachonline.blogspot.com/2011/09/blog-post.html
इस लेख के बाद तमाम लोगों ने फोन कर मुझे समझाया कि आप अभी नए हैं, बिना मतलब यहां पंगा मत लीजिए। ये यहां की बहुत पुरानी रीति है।
बहरहाल अब बात कमेंट तक सीमित नहीं रह गई। अब क्षेत्रवाद और जातिवाद भी हावी हो रहा है।
वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
magar haqikat hai.............
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
आखिर सच्चाई तो यही है .
शानदार व्यंग्य.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 04 -12 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज .जोर का झटका धीरे से लगा
kya baat hai ,bahut khub
यह भी एक लेनदेन भर है..... आपने इसे बढ़िया शब्दों में ढाल दिया ....
आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
इतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
यह तो संसार की रीत है ... ब्लॉग जगत इससे अलग कैसे रह सकता है ? आपके घर आपसे मिलने कोई एक बार आएगा ..दो बार आएगा ..हो सकता है तीन बार भी आजाये ..लेकिन यदि आप उसके घर नहीं जायेंगे तो वो भी आना बंद कर देगा .. यही बात ब्लॉग जगत पर भी लागू होती है ..
अच्छी प्रस्तुति
सटीक !
मेरे मन की बात कह दी आपने तो !
behd khub kavita hai....
bahut khub likha hai....... bilkul sach
अंजू बात तो बिल्कुल सही है, और हो भी क्यों नहीं? संगीता जी की बात से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ. आप किसी के घर एक बार जायेंगे दो बार जायेंगे लेकिन अगर वह नहीं आएगा तो फिर धीरे धीरे जन छोड़ देंगे बगैर से समझे कि उसकी क्या मजबूरी हो सकती है. तो फिर यहाँ भी वही बात है.
---Rekha Srivastava
हा हा हा... बहुत खूब...
आदरणीय अंजू जी आज तो कलम का मूड बदला हुआ है....
देखिये आसपास कहीं ‘युवराज’ की आत्मा भटक तो नहीं रही...:))
बहरहाल... अच्छा कटाक्ष करती रचना बन पडी है...
सादर बधाई...
संगीता दीदी......मैं आपकी बात से सहमत हूँ .....मै खुद ब्लॉग ब्लॉग जा कर सबको पढ़ती हूँ ..........ये बस मेरी एक सोच थी ...उस से ज्यादा और कुछ नहीं ......
संजय जी कभी कभी जायका बदलान अच्छा रहता है .....
आभार आप सबका ....मेरी इस छोटी सी शरारत को पढने के लिए ...मेरा साथ देने के लिए .........दिल से आप सबका आभार
वाह ! बहुत सटीक व्यंग...
क्या बात है आज दूसरी जगह टिप्पणी पुराण पढ़ रहा हूँ ।
ऐसा भी होता है ...सटीक व्यंग्य ।
सटीक, सुंदर
वाह! बहुत सुन्दर व्यंग्यात्मक प्रस्तुति.संगीता जी की हलचल ने आपकी इस पोस्ट पर पहुँचा दिया है जी.
आप टिप्पणी को भीख न कहकर प्रसाद कहें तो ज्यादा अच्छा है.
मांगने वाले का स्तर फिर भिखारी से उठ कर भक्त का बन जायेगा जी.प्रसाद मांगने वालों और बिना मागने वालों सुपात्रों को भी दिया जाता है.
प्रसाद वही होता है जिससे प्रसन्नता मिले.
आप बताईये अनु जी आपको मेरी टिपण्णी से प्रसन्नता मिली की नही.
यदि हाँ तो
चली आईयेगा न मेरे ब्लॉग पर सुन्दर सुवचनों के प्रसाद से अनुग्रहित करने.
अशोक अरोरा
..आप ने सही कहा अनु.....आज ब्लोग की दुनिया ऐसे ही चल रही...है...आप की इस रचना मेँ कटाक्ष के साथ साथ चुभन भी है.जो मह्सूस की जा सकती है...मैँ यहाँ.. श्री महेन्द्र श्रीवास्तव जी से एकदम सहमत हूँ....यहाँ सब के अपने गुट् हैँ...अगर आप को अपने आप को स्थापित करना हैँ..तो और भी..बहुत कुछ् दावँ पर लगाना पडता है....मुझे खुशी है कि ये आवाज़ एक नारी ने अपनी रचना के माध्यम उठायी है...बधाई की पात्र हैँ आप अनु....
राकेश जी ........राम राम ........
आप पहले भी मेरे ब्लॉग पर आते रहे है ...और टिप्पणी रूपी प्रसाद मुझे आपने दिया है .........मै टिप्पणी के खिलाफ नहीं हूँ ...पर कुछ दिन पहले ...कविता और उसकी टिप्पणी के लिए जो होड़ लगी थी ...वो देख कर अच्छा नहीं लगा ...ये मेरी कविता उसी वक़्त की देना है ....कहते है ना जहाँ तक कोई नहीं गया ...वहां तक लेखक की सोच चली जाती है ....बस ये कविता उस वक़्त जो विचार दिमाग में आये उसी की देना है ......इस से मै किसी को दुखी नहीं करना चाह रही थी .....उम्मीद है की मै आपको अपने मन की बात समझाने में कामयाब रही हूँ .......आभार
इतना करारा व्यंग्य , पढकर तो पसीने छुट गये,
आपने रचना के माध्यम से बिलकुल सच बात हम सबके सामने रख दी है इक नए कलेवर के साथ जिस बेबाकी से अपने अपनी बात को रखा है हम तो कायल हो गये है आपकी हाजिरजवाबी के
...............हो सकता है कुछ लोगो को आपकी ये अद्भुत रचना पसंद न आये .....कोई बात नहीं .इक कहावत है "जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूर्ति देखी तिन तैसी "
अंत में आपकी इस जोरदार व्यंग्य के लिए आपको बार बार नमन @@@@
Blog jagat ka saty kyon likh diya a apne .... Jabardast vyang hai ... Mazaa aaya padh ke ....
bahut achchi rachna Anu ji...
♥
हा हाऽऽह… हा हा… !
तुम मुझे टिप्पणी दो …
मैं भी तुम्हें टिप्पणी ही दूंगा …
:)))))
आदरणीया अनु ( अंजु चौधरी ) जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत हद तक सही भी है आपकी बात , लेकिन पूरी तरह नहीं । बहुत सारे ऐसे उदार ब्लॉगर हैं , जिनके यहां मैं बहुत कम पहुंच पाता हूं … लेकिन उनका स्नेह मुझे बराबर मिलता रहता है ।
वहीं कई ऐसे भी हैं , जिनके यहां मैं कई बार गया … लेकिन अपने यहां उनके स्वागत का अवसर नहीं मिला ।
यह आदान-प्रदान दबाव पर आधारित तो है नहीं ।
हां , जिनकी खुन्नस और कुंठा का एहसास हो गया … वहां जाना अवश्य छोड़ भी देते हैं :)
…और हां , आपके यहां दी गई मेरी यह टिप्पणी भीख नहीं , स्वेच्छा है, स्नेह है , आनंद है !
क्योंकि रफ़ी साहब को गाते सुनते आए हैं बचपन से -
बड़े प्यार से मिलना सबसे …
… आपने भी तो सुना ही होगा
और यह भी तो - प्यार बांटते चलो …
# पता नहीं , बद्ले में आप मेरे यहां आएंगी अथवा नहीं ,
लेकिन इतना तय है कि हमारे यहां आने वाले को आने का मलाल कभी नहीं हो सकता :))))
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
खूबसूरत अहसास को सजाये एक सुन्दर रचना :)
absolutely right
अंजू जी,...
ये तो दुनिया की रीत है,ब्योहार है
अगर ब्योहार रखना है तो आना जाना पड़ेगा,..
और यही सिलसिला आज भी बरकरार है ...अच्छी पोस्ट..
मनोभावों की ज़बरदस्त अभिव्यक्ति.
टिप्पणी सदा ही कीजिये,ना करिये तकरार
आपस में चलता रहे इसी तरह व्योहार
इसी तरह व्योहार,सदभावना बनी रहेगी
हमेशा इसी तरह मित्रता कायमं रहेगी
बहुत सुंदर पोस्ट ,...
मेरे पोस्ट आइये...आज चली कुछ ऐसी बातें,बातों पर हो जाएँ बातें
नयनों में जब होतीं बातें, क्या समझोगे ऎसी बातें
हर भाषा में होतीं बातें, कुछ सच्ची कुछ झूठी बातें
हार की बातें जीत की बातें, गीत और संगीत की बातें
ज्ञान और विज्ञान की बातें, हर मौसम पर करते बातें
आपका इंतजार है ...धन्यबाद
:) जो आपने लिखा है वही मैंने भी लिखा है बस कहने का अंदाज़ ए ब्यान कुछ और हैं इस रचना को पढ़कर मैं कहे बिना नहीं रह सकती कि समय मिले आपको तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर इसलिए नहीं कि टिप्पणी चाहिए बल्कि इसलिए कि हमारा विषय एक है :)http://mhare-anubhav.blogspot.com/
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