Saturday, December 17, 2011

तवायफ़...................

नारी मन की पीढ़ा को कभी चलते हुए कहीं पढ़ा था ...उस वक़्त ये कविता बहुत अच्छी लगी थी ...इस लिए इसे संजो के रख लिया था ...आज फिर यूँ ही चलते चलते इस पर नज़र पड़ी....इस कविता के लेखक या लेखिका का नाम नहीं जानती ...फिर भी आप सबके साथ इसको साँझा कर रही हूँ ...........




तवायफ़...................

कुछ सवाल उठ रहे है मन में
किस को बुलाऊं इस सूनेपन में
सितारे भी तो नज़र
नहीं आते इस गगन में
लेकिन इस ख़ामोशी में भी
कोलाहहल सा हो रह है मन में.......
चुल्हे कम दिल
अक्सर जलते है यहाँ.कुछ सवाल उठ रहे है मन में
किस को बुलाऊं इस सूनेपन में
सितारे भी तो नज़र
नहीं आते इस गगन में
लेकिन इस ख़ामोशी में भी
कोलाहहल सा हो रह है मन
इठला कर चमक रही है बिजली
जैसे आग लगने वाली हो तन मन में..........
शराब के नशे में गिरते है
गिर कर कम ही संभलते है यहाँ
इस महखाने ने मुझे इतना बुरा बना दिया
मेरा नाम भी लेने से भी
लोग डरते है यहाँ………
किसी ने बजारू
किसी ने बिकाऊं कहा मुझे
कैसे गुजारुंगी अब मैं ये जिन्दगी
हर दिन सजना ,हर दिन संवरना
मगर किस के लिए
दिन में न चैन और रात भर जगना
मगर किस के लिए

खूब बजती है शेहनाई रात भर
सुबह उठती है अर्थी अरमा मरते है यहाँ………
अब मै भी जी जी कर
मरने लगी हूँ ||

30 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मार्मिक ...यहाँ पढवाने के लिए आभार

रश्मि प्रभा... said...

tawaif ke dard ko shabd diye hain ... bahut hi marmik

विभूति" said...

यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मन को छूने वाली सुंदर प्रस्तुति,अंजू जी इस मार्मिक रचना के लिए
बधाई..आभार
मेरी नई पोस्ट के लिए -काव्यान्जलि- मे click करे

Kailash Sharma said...

बहुत मर्मस्पर्शी...पढवाने के लिये आभार.

कुमार संतोष said...

बहुत सुंदर.. और बहुत आभार इतनी अच्छी कविता पढवाने के लिए !

मेरी नई रचना "तुम्हे भी याद सताती होगी"

मदन शर्मा said...

आपने बहुत ही सुन्दर गीत रचा है !
बधाई हो!!!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जी जी कर मरना ...... हृदयस्पर्शी
हकीकत का मार्मिक चित्रण किया आपने

poonam said...

bahut marmik

SANDEEP PANWAR said...

बढिया

vandana gupta said...

हकीकत का मार्मिक चित्रण्।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 19-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

यथार्थ और सम्वेदनशील .

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

good one

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना। देश दुनिया की असल तस्वीरों को सलीके से शब्दों में बांधना और उसका प्रस्तुतिकरण कोई आप से सीखे।
वाकई मन को छू गई आपकी ये रचना.. बहुत बहुत शुभकामनाएं

Nirantar said...

jee jee kar marnaa
likhaa insaan kee kismat mein
ab ro kar maro yaa hans kar maro
faislaa khud kar lo

virendra sharma said...

मार्मिक पीड़ा छलकाती रीतापन बिखराती रचना .

सदा said...

शब्‍द-शब्‍द गहन भाव समेटे बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Maheshwari kaneri said...

मार्मिक चित्रण..बहुत सुन्दर...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

मर्मस्पर्शी रचना....
शेयरिंग हेतु सादर आभार...

Mamta Bajpai said...

भाव पूर्ण रचना

Kunwar Kusumesh said...

पीड़ा दायक स्थिति का सटीक चित्रण.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

हकीकत तो बयाँ करती रचना ..मार्मिक ...

मेरे भाव said...

bhavpoorn kavita

Rakesh Kumar said...

आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी.
मार्मिक और हृदयस्पर्शी.

मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत आभार.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही मार्मिक ... एक सच्चाई को लिखा है ...

अशोक सलूजा said...

एक सच्चाई ...दिखाता आइना ...!!!
बधाई स्वीकारें!

मेरा मन पंछी सा said...

bahut marmik or sanvedanshil rachana

udaya veer singh said...

यार्थार्थ को दर्शाती मर्मस्पर्शी रचना....मार्मिक, अभिवयक्ति.....बहुत बहुत आभार.