Sunday, January 8, 2012
द्वंद
भावनाओं के समंदर में ,
भावों की एक नदी बहती हैं
जो इंसान को देती हैं ...
अपने ही डर से डरने की वजह
एक सिकुडन,एक असुरक्षा का भाव
जो एक रेखा खींचती है
अपने ही मन के भीतर |
कितने पधारे ,कितने विराजे
कितने आये ,कितने गए
किस किस ने अपना स्थान बनाया ,
जाने कितने वर्षों से
इन इंतज़ार की घड़ियों में
पल पल हम अपने मन का
मंथन करते रहे
सोचते रहे ,एक ऐसा क्षण
जहाँ अपनी ही खुशियों का
हो कोई एक पल का स्मरण ?
खुद के विचारों के डाकू
डाका डालते हैं ,खुद के अस्तित्व पर
जो जीने नहीं देते ,
अहम के बादल कोहरा बन कर
दिल और दिमाग पर छाये रहते हैं
और झुकने नहीं देते ,
अपनों के आगे ..
विचारों का ना मिलना और
विचारों के द्वंद की तोड़-मोड
चलती रहती हैं
भीतर ही भीतर ,
जो अकेला कर के रख देती है
अपनों के बीच ,
उम्र के किसी भी पड़ाव पर ||
अनु
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38 comments:
bahut badhiya ..
APANA AHAM AUR DUSRON KI APEKCHAON KO JISS DIN HUM BHOOL JAYEGE SWATANTRA ROOP SE APNE LIYE HI JIYENGE BINA KISI LAG-LAPET KE AUR WO HO NAHIN PATA GHAR PARIWAR AUR SAMZIKTA KI DUHAYEE WALE CHADAM BANDHANO KI WAZAH SE............ BAHUT SUNDER, PINZRE ME KAID MANN KI CHAT-PATAHAT KA SUNDAR WARNAN............
he mere mann meri peer ko aisa karde dikhe na wo aur kisi aur ko bhi na peer pahunchaye
aham ke badal kohra ban ke dil aur dimag par chaye rahete hai, aur jukne nahi dete hai apno ke aaage..
kitnaa sahi kaha hai annu...
bahut sunder prastuti..........
manko chu gayi aapki ye anupam prastuti
वाह ...बहुत ही बढि़या।
द्वंद्व का सुंदर चित्रण
बेहतरीन।
सादर
सुन्दर प्रस्तुतीकरण ||
जीवन के द्वन्द को बहुत अच्छे ढंग से पेश किया है. बधाई .
सच्ची अभिव्यक्ति .
बहुत उम्दा लिखा है आपने!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना
आशा
मनोभावों की दुनिया वास्तव में ही एक बहुत क्लिष्ट संसार है
बहुत ही भावपूर्ण कविता... गहरे एहसास के साथ सुंदर प्रस्तुति.
वाह...लाजवाब ख्यालों का द्वन्द है!
इसी उलझन में मैं हर रोज जीता हूँ की जिंदगी कभी सुकून तो कभी बेसुकून क्यों होती है....!
खुद के विचारों के डाकू
डाका डालते हैं..... वाह!
एकदम नया विचार.... बहुत अच्छी रचना...
सादर बधाई...
बहुत सुन्दर भाव और एक खुबसूरत रचना
बधाई
बहुत अच्छी लगी आपकी यह भावपूर्ण प्रस्तुति.
विचारों के डाकू भी होते हैं,
और सन्त भी.
विचारों के सन्त मिलने से जीवन धन्य हो जाता है जी.
बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !
कितने आये कितने गए...
sach...
सही है हर पल विचारों का द्वन्द चलता रहता है
जीवन में ..सही गलत को तराजू में तौल कर ही मष्तिष्क में उतारना इन द्वंदों से छुटकारा दिला सकता है ..
ऐसा मई सोचती हूँ
पधारें - kalamdaan.blogspot.com
सबके मन में ऐसा द्वन्द्व चलता है .. अच्छी प्रस्तुति
बहुत खूबसूरत रचना है अनु दी
आपकी रचनाएँ हमेशा कुछ अलग ही सोचने को विवश करती हैं..... सुंदर रचना
सुन्दर अभिव्यक्ति।
सुंदर प्रस्तुति....
बहुत बढ़िया भावाव्यक्ति...
bahut sundar prastuti !
बहुत ही बढ़िया रचना |
मेरे भी ब्लॉग में पधारें |
मेरी कविता
इस तरह के द्वन्द्व से बाहर निकल कर सही मार्ग प्रसस्त करने वाला ही अंततोगत्वा मंजिल पर पहुंचता है।
प्रिय अनु जी मन के भीतर चलते द्वन्द को सटीक उकेरा आप ने ..
विचारों का ना मिलना और .....विचारों के द्वन्द की तोड़ मोड़ ...
इस द्वन्द से निकल के ही कुछ राह मिल पाती हैं ..सुन्दर मूल भाव
जय श्री राधे ..नव वर्ष आप सपरिवार और सभी मित्र मण्डली के लिए मंगलमय हो
कृपया कुछ शब्दों को हिंदी बनाते समय ठीक कर लिया करें
जैसे ...भावनाओं ....भावों ...सिकुड़न.....तोड़ मोड़
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
मन के भीतर उपजे द्वन्द की भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
सही में.. यह द्वंद्व तो हर एक इंसान की ज़िन्दगी का हिस्सा है जो उसके दुःख और सुख का मापदंड तय करती है..
और इससे बचा भी नहीं जा सकता बस लड़ सकते हैं.. सच्चे पहलू को उन्केरा है आपने इस पोस्ट में.. अच्छा लगा...
प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें...
भाव पूर्ण ... मन के द्वन्द को बाखूबी लिख दिया है आपने ...
very nice.
realy great mam......
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
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