ये प्यार है या है एक भूल .......
मैं तुम तक आती हूँ और तुम कोहरा बन ,
मैं तुम तक आती हूँ और तुम कोहरा बन ,
खुली आँखों से भी
नहीं दिखते
सूरज की पहली किरण
आने पर भी |
पर धीरे धीरेआ जाती हैं ..कि
मैं भी उबरने लगती हूँ
उस कोहरे के सच से
ना जाने कहाँ से
मुझे में ये सहनशक्तिमैं समझने लगती हूँ तुम्हारे ही
सच को .....पर अब समझ आया है कि
तेरा ये इंतज़ार सिर्फ मेरा था
जो अब फ़िज़ूल हैकितना भी याद करूँ ,पर ये प्यार है या है एक भूल .......
मैं उन लम्हो को लिए घूमती रही
जो मेरे थे, तुम्हारे थे, और हमारे थेमैं सीने से लगा के रखती रही ,
उन लम्हों को जोतुम को भी जान से ज़्यादा कभी प्यारे थे|मैं ,मेरे हिस्से की सज़ा
पर अब हर बात को समझने लगी हूँ
कि ...
पहली ही पा चुकी हूँतुम मुझे छोड़ के मुझ से बहुत
दूर जा चुके होमुझ से दूर जाना तुम्हारे लिए
कितना आसान थाये अब मैं जान चुकीं हूँ |
आज के बाद मेरी महक तुम्हारे
बदन से नही आएगीअभी जिस्म दूर हुए हैं रफ़्ता रफ़्तातुम्हारी रूह भी मुझे भूल जाएगीअब के जब जुदाई आएगीतो मुकम्मल आएगी
क्यूँ किवो बाते भी तेरी थी ,बन गई जब मैं तेरी तो ,
वो मुझे झुठलाना तेरा था
वो अपना बना कर
अपनापन जतलाना भी तेरा थावो ठुकराना भी तेरा था
मैं अपनी वफ़ा का क्या इन्साफ मांगती
वो वादा भी तेरा था और
वादे को तोड़ कर चले जाना भी
तेरा था ..
मैं अपने दिल का इन्साफ
कहाँ मांगती तुझ से ,
मुझे छोड़ के चले जाने का
हर फैंसला भी तेरा था ?????
अनु
35 comments:
मार्मिक पंक्तियाँ .....!
आखिरी प्रश्नचिन्हों में शायद अनसुलझे सवाल हैं ..
अच्छी प्रस्तुति
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
kalamdaan.blogspot.com
pyaar kabhee kabhee man ko lubhaataa hai
kabhee yaad ban aankhon se ashq bahaataa hai
honslaa himmat mat chhodo waqt ke saath
insaan sab bhool jaataa hai
dil ke dard ko khoob bayaan kiyaa hai
अहसास और महसूस... का सुंदर संगम !
इन्साफ के लिए ..
शुभकामनाएँ!
कोहरे के सच से उबरना आसान तो नहीं ...
aaj ke bad meri mahek tumhare badan se nahi aayegi..abhi jisam dur huve hai rafta rafta tumhari ruh bhi muje bhul jayegi,...mai apne dil ka insaf kaha mangti hu tujse ? muje chor ke chale jane ka faisla bhi to tera tha..
wahhhhhhhhhhh bahut khub...
खूब-सूरत प्रस्तुति |
बहुत-बहुत बधाई ||
aaj ke bad meri mahek tumhare badan se nahi aayegi..abhi jisam dur huve hai rafta rafta tumhari ruh bhi muje bhul jayegi,...mai apne dil ka insaf kaha mangti hu tujse ? muje chor ke chale jane ka faisla bhi to tera tha..
wahhhhhhhhhhh bahut khub...
अंतिम चार पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगी,...
सुंदर प्रस्तुति बढ़िया रचना,.....
बहुत ही बढ़िया।
सादर
वाह.. क्या कहने,
वाकई बहुत सुंदर रचना है।
बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण प्रस्तुति...शायद प्रेम की यह भी परिणिति है..
कुछ कशमकश , कुछ सवाल.मार्मिकता से उकेर दिए आपने.
बहुत बढ़िया!
लोहड़ी पर्व की बधाई और शुभकामनाएँ!
maarmik,bhaavprn rachana
बहुत ही मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
खूबसूरत कविता
बीते प्यार भरे लम्हे से लेकर जुदाई तक का सफ़र बहुत ही मार्मिक और सुन्दर तरीके से पेश किया है..
अति उत्तम भावपूर्ण रचना है
मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
सुन्दर...
शुभकामनाएँ..
मार्मिक रचना ..ऐसा क्यों होता है कि सब एक तरफ़ा ही लगाने लगता है ..
मार्मिक प्रस्तुति ..ऐसा क्यों होता है कि सब एक तरफ़ा ही लगने लगता है ...
MUJHE CHHODKAR JAANE WAL HAR FESHLA TERA THA …KYA BAAT HEN ?
बहुत अच्छी मन को छूती रचना,सुंदर प्रस्तुति
नई रचना-काव्यान्जलि--हमदर्द-
एक बेहद मार्मिक रचना दिल को छो गई !
पढ़ते गया और हर शब्द मन में समाते गया !
मेरी नई पोस्ट पे आपका स्वागत है !
आभार !
मार्मिक प्रस्तुति !
मकर संक्रांति की शुभकामनायें !
भावपूर्ण रचना कभी समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://aapki-pasand.blogspot.com/
दिल को कुरेदती एक उत्तम रचना.
आभार.
bahut hi achchi prastuti.
marmik prastuti.... bahut sundar
marmsparshi aur khoobsurat kavita....
बहुत ही सुंदर आप की रचनाएँ मन को छु लेनने वाली होती है
Sundar rachna, maarmik bhavabhivyakti!
i just loved it... It says all what i have with in me... :) Lovely.... :)
मैं तुम तक आती हूँ और तुम कोहरा बन ,
खुली आँखों से भी
नहीं दिखते
सूरज की पहली किरण
आने पर भी |-
अपने आप में एक छोटी सी कविता..
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