Tuesday, January 17, 2012
आखिर कब तक ?
कन्या और भूर्णहत्या की मिली जुली सोच के साथ लिखी गई कविता ......बहुत दुःख होता है जब आज कल की पढ़ी लिखी लड़की जब इस तरह का कदम उठती है तो ...वो खुद एक कन्या हैं ...उसके बाद भी घर परिवार के दबाब में उस बच्ची को जन्म से पहले ही मारने पर मजबूर कर दी जाती हैं या ...खुद अपनी इच्छा से उसकी हत्या की भागीदार बन जाती हैं ............आखिर कब तक ?
ये ही दुनिया की है रीत है भाई
कन्या दान कर ,
सबने अपनी जान हैं छुड़ाई
प्रश्नों की आंधी में
उजड़ रहे खुद के ही रिश्ते
नहीं सोचा क्या बीतेगी बेटी पर
जब कहेगा उसको कोई पराया
शादी कर हर किसी ने
अपने सर का बोझ
समझ कर उसे हैं उतरा ......
नहीं पूछा उसे किसी ने
क्या सुख हैं-.क्या दुःख है तुझे
बस अपनी ही मस्ती में
चलते रहे समय की ढलानों पर |
समय की ढलानों पर
अब भी हर रिश्ता बदल रहा
मकड़ी के जालो -सा
हैं उसके मन में उलझाव सा
बोझिल हैं अपनापन ,
मन के सूनेपन में हैं
अब भी हैं भारीपन
उसके जीवन की
एक साँझ और बीती
इसी कन्या का इन्साफ तो देखो
अपनी ही कन्या से इसने
अपनी ही कोख में जान हैं छुड़वाई |
भ्रम के परिवर्तन में दब गई वो
बन कर माँ,बहन ,दादी ,नानी |
खुद तो बन कर आई है
किसी के घर की महारानी
उसके मन के चौराहे पर
खांस रहा उसके अपनों का घमंड
एक बेटे की चाह में
कर डाली उसने
अपनी ही गर्भ -कन्या
की हत्या ...
अब उलटे मुहं लटक रही
उसके मन की पीढा
नहीं जानती वो कि उसने
एक घर की नींव को हैं खोदा और
एक घर की वंश बेल को बढने से है रोका ||
अनु
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35 comments:
एक कढवी सच्चाई ..कौन जाने पीढ पराई ...आखिर कब तक ???
:!! aisa hi hota hai...
par aakhir kab tak...
aur ye bhi sach hai ki bharat me jahan education jayda hai, wahan bhi bhrun hatya jayda ho rahi hai..
behtareen rachna..
मुकेश ...दुःख इसी बात का है की पढ़े लिखे होने के बाद भी सोच बहुत संकरी है इस भारत में अब भी सबकी |
kabhi maine bhi iss vishay pe likha tha....!
कटु सत्य...बहुत मार्मिक प्रस्तुति...कब हटेगा समाज की आँखों पर चढा भ्रम का पर्दा..
कथोर सत्य को लिखा है आपने ... य विडम्बना ही है समाज की .. हमारी सोच की ... अफ्सोसो होता है ...
bahut gehri bat .aaj ke samaj ki yahi manodasha hai .pta nahi kab badlegi ya aise hi pashu bane rahenge .........hum insan hai bhi ya nahi kabhi kabhi to ye bhi lagta hai ki hum aaj bhi pashu hai hajaro lakho saal pahle jaise........
bahut hi karari chot ki hai aapne aaj ke samjik parivesh pe......
ये और कब तक चलेगा.?? सटीक प्रस्तुति..
एक कड़वी सच्चाई की मार्मिक प्रस्तुति.
good one anju keep writing and keep spreading awareness
शुक्रिया ....कनेरी जी .......शिखा जी और रचना जी ...अपने मन की सोच को यहाँ सबके साथ साँझा किया हैं ...आभार आप सबका
सच में ये दुर्भाग्यपूर्ण बात है!
कुंठित समाज की दशा और सोच को
हम youth ही बदल सकते है !
बहुत सटीक एवं सुन्दर रचना!
बहुत सुंदर
समाज की असल सच्चाई को
बखूबी पेश किया है आपने ।
वाह,सटीक और सामयिक रचना.
Anju di ..this is the bitter truth and the most cruel activity of our society. It must be stopped at any cost. Otherwise our future generation will suffer.
You have raised a genuine issue.
Congratulations Anu di.... on this very important issue based post.
wahhhhh annu dil ki gaherai se likha hai jaise hamari hi aavaj..hamara hi dil ka kaha sun liya tumne..badhiya ji
sach hi kaha akhir kab tak? sarthak abhivaykti....
ek kathor satya jo khoon me faila hai ise kaise door kiya jaye upay to sochne hi honge. samajik bahiskaar shayad kuchh kaam aye.
pataa nahee kyon bhool jaatee hai maaein
wo bhee kisi kee kokh se stree ke roop mein janmee thee
saarthak rachnaa ,
अंजू जी ..बहुत ही अच्छी कविता है ..मैं तो ये कहूँगी की सबसे बड़े आश्चर्य और तकलीफ की बात यही है की नारी ही नारी की दुश्मन है ...
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
kalamdaan.blogspot.com
bhaut prabhavshali rachna
आज ब्लॉग बुलेटिन की पोस्ट में मैंने भी यही मुद्दा उठाया था ... आपके विचार जान बहुत अच्छा लगा ... आभार !
dil ko chu gayi aapki rachnaa...
bahut jordaar rachna..jwalant samasya ka sateek varnan..
मेरी कविता:वो एक ख्वाब था
कटु सत्य को कहती मार्मिक प्रस्तुति
कहा भी जाता है एक नारी ही नारी की दुश्मन होती है , संकीरण सोच के कारण समाज और घर परिवार के दबाव में औरतें ऐसा जघन्य कृत्य करने से भी नहीं गुजरतीं ................ ................... घर के सदस्यों या मुखिया की सोच भी इस प्रकार की होती है के सब आडम्बरों में लपेट कर कृत्य पे पर्दा डाल दिया जाता है. आज की मशहूर खिलाड़ी ने भी सीकरोक्ति पूर्वक कहा है की उसकी दादी उससे जिन्दा नहीं देखना चाहती थी . एक साहसिक और सफल व्यक्तितव के कारण समाज चुप रहा अन्यथा लोग अब तक उसके पीछे हाँथ धोकर पड़ चुके होते ............. आपके साहसिक प्रयास को शत-शत नमन .
कहा भी जाता है एक नारी ही नारी की दुश्मन होती है , संकीरण सोच के कारण समाज और घर परिवार के दबाव में औरतें ऐसा जघन्य कृत्य करने से भी नहीं गुजरतीं ................ ................... घर के सदस्यों या मुखिया की सोच भी इस प्रकार की होती है के सब आडम्बरों में लपेट कर कृत्य पे पर्दा डाल दिया जाता है. आज की मशहूर खिलाड़ी ने भी सीकरोक्ति पूर्वक कहा है की उसकी दादी उससे जिन्दा नहीं देखना चाहती थी . एक साहसिक और सफल व्यक्तितव के कारण समाज चुप रहा अन्यथा लोग अब तक उसके पीछे हाँथ धोकर पड़ चुके होते ............. आपके साहसिक प्रयास को शत-शत नमन .
hamare samaj ka kadwa sach. jise hum samjane atayar nahi.
bahut acche ek phir nayee koshish
बेहद दुःख की बात है मगर सच्चाई है...
जाने कब बदलेगी हमारी सोच....
सार्थक लेखन के लिए शुक्रिया.
बहुत सुंदर प्रस्तुति,मार्मिक सार्थक सटीक बेहतरीन रचना
welcome to new post...वाह रे मंहगाई
बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,बेहतरीन,..मेरे पोस्ट पर आने के लिए आभार
welcome to new post...वाह रे मंहगाई
maarmik rachna!
mamshaprshi rachana .......behatareen prastuti lagi ...sadar abhar Anju ji
pata nahi kab vo din aayega jab beti ke janam par bhi har koi khushiya manayega...sarthak rachna..
welcome to my blog
जीवन से संवाद करती है आपकी हरेक रचना .
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