बसंत के आने पर
( हरियाणा में पतंग बाज़ी के रूप में ...बसंत पंचमी मनाई जाती हैं )
बुढ़िया दादी .दोस्त पुराने ,
आँगन ,आँगन में वो छज्जे पुराने
आज नहीं हैं .....
मेरे यहाँ आने पर |
रोशन सपने देख रहा था
मैं अपनी धुंधली आँखों से ,
था ,वही मोहल्ला ,वही शहर ,पर
यहाँ अब मेरा कोई नहीं था ....
आज हैं बसंत ...पर मेरा आँगन
बिन हुड़दंग ,सुना सुना सा हैं |
फिर भी ...
इस बसंत ...हर घर
हँसी ठिठौली नाच रही
यहाँ घर घर के आँगन में
आज भी वो ही शोर हैं ,
हर मुंडेर पर ,
उडती पतंगों का हैं नज़ारा ...
हर किसी के हाथ में डोर हैं
घर की माँ ...आज भी
बनाती हैं ..सबके लिए
वो साधारण सा खाना |
और देखो तो ,बेटा आज भी
दोस्तों संग अपनी ही छत पर
लगाता है महफ़िल ...
पतंग बाज़ी की
आज भी ....
आई.....बो काटे एएएएएएएए
का शोर हैं छज्जे छज्जे पर ..और
फ़िल्मी गानों का आज भी वैसा ही दौर हैं
आया है बसंत ,
सज धज कर ,
मज़ा लुटाने को ....
भवरों से कर रही तितलियाँ
नैन मटका .....छज्जे छज्जे पर
भाग गया हैं आज भी
सबका डर .....बसंत के आने पर |
आज भी ...
ये तेरा ख्याल हैं या मेरी तमन्नाएँ
जो मुझे यहाँ तक खींच के हैं लाई
याद हैं आज भी ...तेरी वो हँसी
मुस्कुराती तेरी वो आँखे
जो सिर्फ मुझे देखती थी
छिप छिप के मेरे छज्जे पे
बसंत के आने पर ||
अनु
25 comments:
ये तेरा ख्याल हैं या मेरी तमन्नाएँ
जो मुझे यहाँ तक खींच के हैं लाई
बहुत सुन्दर....मुझे बहुत पसंद आई आपकी कविता..
शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।
आया बसंत अब बिखर रहे हैं रंग
होली तक बजते रहें ढफ़ और चंग
शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर...
आखों में बसंत नाच गया..
बसंत का सही खाका खींचा है .
बहुत सुन्दर भावपूर्ण शब्द चित्र..
आपके इस उत्कृष्ठ लेखन के लिए आभार ।
बसंत की खूबसूरत झांकी.
karnal mein patang udaane kaa man kar rahaa hai
ये तेरा ख्याल हैं या मेरी तमन्नाएँ
जो मुझे यहाँ तक खींच के हैं लाई
याद हैं आज भी ...तेरी वो हँसी
मुस्कुराती तेरी वो आँखे
जो सिर्फ मुझे देखती थी
छिप छिप के मेरे छज्जे पे
बसंत के आने पर ||
जीवन मे नया नया आया बसंत ऐसा ही खूबसूरत होता है. समय के साथ सब बदलते हैं आंगन भी,छज्जे भी और........घरों की तरह रिश्ते भी............पर.....जब भी आकाश मे पतंगों के उड़ने का मौसम आएगा हमारा बसंत होगा वहीँ कहीं जैसे ..........बचपन मे उडाई पतंग के संग ऊपर गई और खाली पतंग लौट आई............ अब ढूंढते हैं....क्या तुमने भी अपने बसंत के दिनों को आसमान पर छोड़ दिया है बाबु??? नीचे उतर लाओ उन्हें. शायद वे भी जान जाए कि इन आँखों मे नई उम्र के सपने नही तैरते अब....जीवन की सच्चाइयों का रूखापन बस गया है.
दुष्ट! कहाँ ले गई मुझे. मैं किसी पतंग पर सवार ढूंढ रही हूँ वो पतंग जो कटी ....नीचे नही आई थी...जाने कहाँ अटक गई..... चाचा की बिटिया की थी.ऊपर जाने पर वो मिलेगी और पूछेगी 'दीदी! मेरी पतंग कहाँ है...........देखो तुमसे कितने बरस पहले इसे ढूँढने लेने चली आई.भरी जवानी मे.....अपने छोटे छोटे बच्चों को तक को छोड़ दिया.........पर मेरी पतंग नही मिली'
लाख बसंत आए ........मुझे पतंगों का कटना गहरे अवसाद मे डूबा देता है अनु!
waha waha
बसंत का रूप सब जगह स्माया है..सुन्दर...बसंत पंचमी की शुभ कामनाये.
बसंत का रूप सब जगह स्माया है..सुन्दर...बसंत पंचमी की शुभ कामनाये.
बसंत की अनुपम छटा है ...
सही में बसंत.... कुछ नया सा.
बसंत आया , प्रीत का उल्लास लाया ....सुंदर पंक्तियाँ
भावों से भरी सुन्दर रचना । आभार ।
बसंत पंचमी और माँ सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ । मेरे ब्लॉग "मेरी कविता" पर माँ शारदे को समर्पित 100वीं पोस्ट जरुर देखें ।
"हे ज्ञान की देवी शारदे"
बसंत पंचमी की शुभकामनायें , माँ शारदे को नमन
छज्जे देख ,पतंगबाजी का अपना जमाना याद आया वो बीता बचपन ,अपना.. सुहाना याद आया...
शुभकामनाएँ !
आभार !
Waah! kyaa baat hai !
Beautiful poetry ! i like it
गहरे भाव।
सुंदर रचना।
वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
@याद हैं आज भी ...तेरी वो हँसी
मुस्कुराती तेरी वो आँखे
जो सिर्फ मुझे देखती थी
छिप छिप के मेरे छज्जे पे
बसंत के आने पर ||
वसंत पंचमी की शुभकामनायें! माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे!
बसंत का स्वागत करती अच्छी रचना।
बसंत पंचमी पतंग बिना अधूरी है।
*
आपका मेरे ब्लाग पर आना अच्छा लगा। मैंने भी आपका ब्लाग आज पहली ही बार देखा। आपके ब्लाग का नाम अपनो का साथ है। उसमें एक संशोधन कर लें। 'अपनो' की जगह 'अपनों' कर लें।
ये तेरा ख्याल हैं या मेरी तमन्नाएँ
जो मुझे यहाँ तक खींच के हैं लाई
याद हैं आज भी ...तेरी वो हँसी
मुस्कुराती तेरी वो आँखे
जो सिर्फ मुझे देखती थी
छिप छिप के मेरे छज्जे पे
बसंत के आने पर ||
बहुत खूबसूरत रचना अंजू जी... बहुत बहुत बधाई और वसन्त की मंगल कामनाएँ
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