रेल का एक सफर ....जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता हैं ......सफर तय हैं ..और मंजिल भी ...पर राह में मिलने वाले लोग अनजान ही रहते हैं हमेशा ....सोच का क्या हैं ...कुछ भी देखो ...वो दिमाग में घूमती हैं ...और शब्द विचार बन जाते हैं .....कुछ सोच ...जो लिखने के बाद कुछ इस तरह शब्दों के रूप में ... सबके सामने हैं ||
कच्चे मकान
सूखी धरती
सूनी राहें
बस एक छोटी सी उम्मीद
उस खुदा से |
******************************
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सरपट दौड़ती रेल
पटरी को काटती पटरी
जैसे जिंदगी से
जीत का जश्न मनाती मौत |
कच्चे मकान
सूखी धरती
सूनी राहें
बस एक छोटी सी उम्मीद
उस खुदा से |
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सरपट दौड़ती रेल
पटरी को काटती पटरी
जैसे जिंदगी से
जीत का जश्न मनाती मौत |
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जब कभी दो प्यार करने वाले साथ होते हैं ....और फिर भी वो साथ नहीं होते (जिस्म साथ हैं ,पर आत्मा नहीं ) इसे क्या कहेंगे ...इस अधूरे से साथ की क्या कोई परिभाषा हैं ..सोचने और समझने की भी बहुत कोशिश की ...पर उन दोनों की मूक भाषा को पढ़ने में नाकामयाब रही ....एक ही मंजिल ,एक ही सफर ...दोनों का साथ ..फिर भी कितने दूर थे वो दोनों ...बातों में उनकी प्यार की महक तो थी ..पर एक अंजना सा डर था ...वो डर कैसा था ?क्या था वो डर ?इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला मुझे ..उस रेल के सफर में ...बहुत से मुसाफिर आए और चले गए ...पर बोगी में लास्ट की सीट पर बैठे वो दोनों बस एक मूक भाषा में एक दूसरे को देखते और मुस्कुरा देते थे ...बहुत चाह कि उन दोनों को ना देखूं ...फिर भी ना जाने क्यों बार बार उन दोनों को देखने के लिए ये मन बेताबी दिखाने लगा था ....पूरे सफर में ..बस इतना ही पढ़ पाई उस प्यारी सी ...अदाकारा में ...जिसकी आँखे बहुत कुछ कहती थी .....
जब कभी दो प्यार करने वाले साथ होते हैं ....और फिर भी वो साथ नहीं होते (जिस्म साथ हैं ,पर आत्मा नहीं ) इसे क्या कहेंगे ...इस अधूरे से साथ की क्या कोई परिभाषा हैं ..सोचने और समझने की भी बहुत कोशिश की ...पर उन दोनों की मूक भाषा को पढ़ने में नाकामयाब रही ....एक ही मंजिल ,एक ही सफर ...दोनों का साथ ..फिर भी कितने दूर थे वो दोनों ...बातों में उनकी प्यार की महक तो थी ..पर एक अंजना सा डर था ...वो डर कैसा था ?क्या था वो डर ?इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला मुझे ..उस रेल के सफर में ...बहुत से मुसाफिर आए और चले गए ...पर बोगी में लास्ट की सीट पर बैठे वो दोनों बस एक मूक भाषा में एक दूसरे को देखते और मुस्कुरा देते थे ...बहुत चाह कि उन दोनों को ना देखूं ...फिर भी ना जाने क्यों बार बार उन दोनों को देखने के लिए ये मन बेताबी दिखाने लगा था ....पूरे सफर में ..बस इतना ही पढ़ पाई उस प्यारी सी ...अदाकारा में ...जिसकी आँखे बहुत कुछ कहती थी .....
उन दोनों के मध्य
कुछ पल गुज़रे ,
यूँ ही चुप चाप से
पर ....चेहरे पर अजीब सा ही नूर था
फिर भी ..
जाने क्यूँ आज उसकी आँखों में ,
अजीब सा खालीपन था
बातो में उसकी ,
अजीब सा खोखलापन
जाने क्या वो क्या देखती रही
जाने क्यूँ आज उसकी आँखों में ,
अजीब सा खालीपन था
बातो में उसकी ,
अजीब सा खोखलापन
जाने क्या वो क्या देखती रही
उसकी उन वीरान सी आँखों में
जबकि उसने नज़र भर कर
जबकि उसने नज़र भर कर
एक पल को भी निहारा ही नहीं ||
अनु ...
38 comments:
खूबसूरती से सहेजा है भावों को
बहुत सुन्दर ...
प्यारी सी अभिव्यक्ति..
अनु
hmmm!! to yatra me ye karti hain aap:)
daudti rel
bhagti rel
ruk ruk kar chati rel:)
ek dum jindagi ki tarah!!
.
waise aapne do jodi pyari ankho ko bade pyare shabdo se bandha hai...!
मुकेश ....क्या करने ...आँखों को बंद भी तो नहीं किया जा सकता ना :)
बहुत सुंदर रचना
भावों को ऐसे भी व्यक्त किया
जा सकता है।
नए रचनाकारों को सीखना होगा।
बहुत सुंदर रचना
भावों को ऐसे भी व्यक्त किया
जा सकता है।
नए रचनाकारों को सीखना होगा।
बहुत बढ़िया कविता...
बहुत बढ़िया कविता...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बढ़िया अवलोकन रहा .... अच्छी प्रस्तुति
सारी पोस्ट का हर टुकड़ा निहायत खूबसूरत है अंजू जी
जाने क्या वो क्या देखती रही
उसकी उन वीरान सी आँखों में
जबकि उसने नज़र भर कर
एक पल को भी निहारा ही नहीं ||
अंत तो सबसे लाजबाब !
कोमल भाव में पिरोई नर्म सा अहसास लिए
भावु करती रचना...
:-)
ये नाजुक एहसासों को महसूस करने का खेल है ..
सुंदर :)
वाकई यात्रा बहुत कुछ दिखा देती है :)
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....
शायद दोनों के बीच कुछ गुजरे पल
देखती रही उसकी उन वीरान सी आँखों में...
नाज़ुक अहसास...
बढ़िया रचना है...
शुभकामनाये अनु...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति............शुभकामनाये
बेहद उम्दा ... :)
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, तेजाब :- मनचलों का हथियार - ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
सुंदर !
रेल के अंदर बैठ
दो जोड़ी आंखे
दिखती है सामने
रेल के नीचे की पटरी
को सोचना पढ़ता है!
खुद में सिमटता सिहरता प्यार ... बहुत जबरदस्त प्रस्तुति
वाह..रेल का सफर और बन गयी एक कविता..बहुत सुंदर भाव !
भावो की सुन्दर यात्रा..लाजवाब अभिव्यक्ति..
एहसासों का बेहतरीन संगम ... भावमय करती प्रस्तुति।
बातो में उसकी ,
अजीब सा खोखलापन
जाने क्या वो क्या देखती रही
उसकी उन वीरान सी आँखों में
जबकि उसने नज़र भर कर
एक पल को भी निहारा ही नहीं |
निगाहें चार हो न जाने मौन रह ही दिल में क्या क्या झांक और आंक आती हैं वे ही जाने पल दो पल का प्यारा साथ खुशनुमा बन जाता है जब सामने वाला सरल और सरस हो ...अच्छी चर्चा ...बार बार निगाहें वहीं दौड़ ....
भ्रमर ५
अच्छे भाव सुंदर प्रस्तुति ..
एक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें
@.बहुत चाह कि उन दोनों को ना देखूं ...फिर भी ना जाने क्यों बार बार उन दोनों को देखने के लिए ये मन बेताबी दिखाने लगा था ....
हा...हा...हा... अंजू ही ये शायद सभी कवियों जे साथ होता है ...चेहरा पढने की कोशिश अक्सर राह चलते मैं भी करती रहती हूँ ....
ये खालीपन विवाहोपरांत किस औरत की ज़िन्दगी में नहीं होता ......
बहुत सुंदर रचना ....!!
हृदय का धनी व्यक्ति ही दूसरों की भावनाओं को समझ सकता है। आपकी सोच एवं समझ दोनों काबिले तारीफ है। मेरे नए पोस्ट पर आपका सादर अभिनंदन है। धन्यवाद।
,बेहतरीन रचना, हरेली अमावस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
शSSSSSSSSSS कोई है
एक साधारण सा परन्तु असाधारण एहसास | सुन्दर अभिव्यक्ति |
deep down the heart...
बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना...
शायद दोनों के बीच कुछ गुजरे पल
देखती रही उसकी उन वीरान सी आँखों में...
सुन्दर भाव, सुन्दर अभिव्यक्ति.
बहुत सुंदर शब्दों मे अपनी अनुभूतियों को व्यक्त किया है ...!!
शुभकामनायें...
choti magar behad sunder badhai !
बहुत खूबसूरत ..
वर्तमान को पकडने और अभिव्यक्त करने की गजब की समझ है आपको, दार्शनिकता से भरपूर, शुभकामनाएं.
रामराम.
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