Monday, July 16, 2012

जिंदगी कुछ इस तरह भी .....

रेल का एक सफर ....जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता हैं ......सफर तय हैं ..और मंजिल भी ...पर राह में मिलने वाले लोग अनजान ही रहते हैं हमेशा ....सोच का क्या हैं ...कुछ भी देखो ...वो दिमाग में घूमती हैं ...और शब्द विचार बन जाते हैं .....कुछ सोच ...जो लिखने के बाद कुछ इस तरह शब्दों के रूप में ... सबके सामने हैं ||

कच्चे मकान
सूखी धरती
सूनी राहें
बस एक छोटी सी उम्मीद
उस खुदा से |

******************************
****
सरपट दौड़ती रेल
पटरी को काटती पटरी
जैसे जिंदगी से
जीत का जश्न मनाती मौत |
*******************************************************
जब कभी दो प्यार करने वाले साथ होते हैं ....और फिर भी वो साथ नहीं होते (जिस्म साथ हैं ,पर आत्मा नहीं ) इसे क्या कहेंगे  ...इस अधूरे से साथ की क्या कोई परिभाषा हैं ..सोचने और समझने की भी बहुत कोशिश की ...पर उन दोनों की मूक भाषा को पढ़ने में नाकामयाब रही ....एक ही मंजिल  ,एक ही सफर ...दोनों का साथ ..फिर भी कितने दूर थे वो दोनों ...बातों में उनकी प्यार की  महक तो थी ..पर एक अंजना सा डर था ...वो डर कैसा था ?क्या था वो डर ?इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला मुझे  ..उस रेल के सफर में ...बहुत से मुसाफिर आए और चले गए ...पर बोगी में लास्ट की सीट पर बैठे वो दोनों बस एक मूक भाषा में एक दूसरे को देखते और मुस्कुरा देते थे ...बहुत चाह कि उन दोनों को ना देखूं  ...फिर भी ना जाने क्यों बार बार उन दोनों को देखने के लिए  ये मन  बेताबी दिखाने लगा था ....पूरे सफर में ..बस इतना ही पढ़ पाई उस प्यारी सी ...अदाकारा में ...जिसकी आँखे बहुत कुछ कहती थी .....
 
उन दोनों के मध्य 
कुछ पल गुज़रे ,
यूँ ही चुप चाप से
पर ....चेहरे पर अजीब सा ही नूर था 
फिर भी ..
जाने क्यूँ आज उसकी आँखों में ,
अजीब सा खालीपन था
बातो में उसकी ,
अजीब सा खोखलापन
जाने क्या वो क्या देखती रही 
उसकी उन वीरान सी  आँखों में
जबकि उसने नज़र भर कर 
एक  पल को भी निहारा ही नहीं ||
 
अनु  ...

38 comments:

vandana gupta said...

खूबसूरती से सहेजा है भावों को

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर ...
प्यारी सी अभिव्यक्ति..

अनु

मुकेश कुमार सिन्हा said...

hmmm!! to yatra me ye karti hain aap:)
daudti rel
bhagti rel
ruk ruk kar chati rel:)
ek dum jindagi ki tarah!!
.
waise aapne do jodi pyari ankho ko bade pyare shabdo se bandha hai...!

Anju (Anu) Chaudhary said...

मुकेश ....क्या करने ...आँखों को बंद भी तो नहीं किया जा सकता ना :)

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
भावों को ऐसे भी व्यक्त किया
जा सकता है।
नए रचनाकारों को सीखना होगा।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
भावों को ऐसे भी व्यक्त किया
जा सकता है।
नए रचनाकारों को सीखना होगा।

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत बढ़िया कविता...

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत बढ़िया कविता...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बढ़िया अवलोकन रहा .... अच्छी प्रस्तुति

आनंद said...

सारी पोस्ट का हर टुकड़ा निहायत खूबसूरत है अंजू जी
जाने क्या वो क्या देखती रही
उसकी उन वीरान सी आँखों में
जबकि उसने नज़र भर कर
एक पल को भी निहारा ही नहीं ||
अंत तो सबसे लाजबाब !

मेरा मन पंछी सा said...

कोमल भाव में पिरोई नर्म सा अहसास लिए
भावु करती रचना...
:-)

अशोक सलूजा said...

ये नाजुक एहसासों को महसूस करने का खेल है ..

दीपक बाबा said...

सुंदर :)

shikha varshney said...

वाकई यात्रा बहुत कुछ दिखा देती है :)

शिवनाथ कुमार said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....

संध्या शर्मा said...

शायद दोनों के बीच कुछ गुजरे पल
देखती रही उसकी उन वीरान सी आँखों में...
नाज़ुक अहसास...

Satish Saxena said...

बढ़िया रचना है...
शुभकामनाये अनु...

Dr. sandhya tiwari said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति............शुभकामनाये

शिवम् मिश्रा said...

बेहद उम्दा ... :)


आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, तेजाब :- मनचलों का हथियार - ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर !

रेल के अंदर बैठ
दो जोड़ी आंखे
दिखती है सामने
रेल के नीचे की पटरी
को सोचना पढ़ता है!

रश्मि प्रभा... said...

खुद में सिमटता सिहरता प्यार ... बहुत जबरदस्त प्रस्तुति

Anita said...

वाह..रेल का सफर और बन गयी एक कविता..बहुत सुंदर भाव !

Maheshwari kaneri said...

भावो की सुन्दर यात्रा..लाजवाब अभिव्यक्ति..

सदा said...

एहसासों का बेहतरीन संगम ... भावमय करती प्रस्‍तुति।

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

बातो में उसकी ,
अजीब सा खोखलापन
जाने क्या वो क्या देखती रही
उसकी उन वीरान सी आँखों में
जबकि उसने नज़र भर कर
एक पल को भी निहारा ही नहीं |
निगाहें चार हो न जाने मौन रह ही दिल में क्या क्या झांक और आंक आती हैं वे ही जाने पल दो पल का प्यारा साथ खुशनुमा बन जाता है जब सामने वाला सरल और सरस हो ...अच्छी चर्चा ...बार बार निगाहें वहीं दौड़ ....
भ्रमर ५

संगीता पुरी said...

अच्‍छे भाव सुंदर प्रस्‍तुति ..

एक नजर समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष पर भी डालें

हरकीरत ' हीर' said...

@.बहुत चाह कि उन दोनों को ना देखूं ...फिर भी ना जाने क्यों बार बार उन दोनों को देखने के लिए ये मन बेताबी दिखाने लगा था ....

हा...हा...हा... अंजू ही ये शायद सभी कवियों जे साथ होता है ...चेहरा पढने की कोशिश अक्सर राह चलते मैं भी करती रहती हूँ ....

ये खालीपन विवाहोपरांत किस औरत की ज़िन्दगी में नहीं होता ......

बहुत सुंदर रचना ....!!

प्रेम सरोवर said...

हृदय का धनी व्यक्ति ही दूसरों की भावनाओं को समझ सकता है। आपकी सोच एवं समझ दोनों काबिले तारीफ है। मेरे नए पोस्ट पर आपका सादर अभिनंदन है। धन्यवाद।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

,बेहतरीन रचना, हरेली अमावस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई

शSSSSSSSSSS
कोई है

amit kumar srivastava said...

एक साधारण सा परन्तु असाधारण एहसास | सुन्दर अभिव्यक्ति |

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

deep down the heart...

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना...

Santosh Kumar said...

शायद दोनों के बीच कुछ गुजरे पल
देखती रही उसकी उन वीरान सी आँखों में...

सुन्दर भाव, सुन्दर अभिव्यक्ति.

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर शब्दों मे अपनी अनुभूतियों को व्यक्त किया है ...!!
शुभकामनायें...

सुनील गज्जाणी said...

choti magar behad sunder badhai !

Ayodhya Prasad said...

बहुत खूबसूरत ..

ताऊ रामपुरिया said...

वर्तमान को पकडने और अभिव्यक्त करने की गजब की समझ है आपको, दार्शनिकता से भरपूर, शुभकामनाएं.

रामराम.