Thursday, October 11, 2012

आखिरी सफर


ये जानते हुए कि
मैं छोड़ी जा चुकी हूँ
फिर भी एक इंतज़ार है
कि तुम ....खुद से
अपनी गलती  स्वीकार करो 
ताकि मैं लौट सकूँ
जहाँ से मैं आई हूँ 

पर  मैं जानती हूँ 

ये सब भ्रम है मेरे ही मन का |

हां ....सीता के देश में
मैं ..सीता सी नहीं हूँ
वो ,कर्तव्यों के लिए
त्यागी गई
और मैं ...अपने प्यार में 

 धोखे की खातिर...
अपवित्र ,और खरोंचा हुआ शरीर लेकर 
खुद पर लज्जित हूँ
और अब तो दिल पर
एक बोझ सा लदा है
अपनी ही किस्मत का |

मेरे लिए अब ये जरुरी था
कि ढूँढतीं फिरूं ,
अपने जिस्म को ढोने के लिए
वो चार कंधे ,
जिस पर तय करना है,मुझे अब ये
आखिरी सफर ||



अंजु (अनु )

63 comments:

राजीव तनेजा said...

कहीं कुछ सोचने को मजबूर करती रचना

राजीव तनेजा said...

कहीं कुछ सोचने को मजबूर करती रचना

Accurate Packing Machinery said...

bahot hi achiii rachna hai...ji..

Pawan Jindal, General Secretary said...

Bahut sundar anu ji , sahitya ki sarita bahati rahe, bhav ubharte rahen aur ham anandit hoten rahen. Kya bat hai.

Pawan Jindal, General Secretary said...

Bahut sundar anu ji , sahitya ki sarita bahati rahe, bhav ubharte rahen aur ham anandit hoten rahen. Kya bat hai.

तेजवानी गिरधर said...

बहुत अच्छी रचना है, बधाई

Dr. sandhya tiwari said...

मेरे लिए अब ये जरुरी था
कि ढूँढतीं फिरूं ,
अपने जिस्म को ढोने के लिए
वो चार कंधे ,
जिस पर तय करना है,मुझे अब ये
आखिरी सफर || ये पंक्तियाँ मेरे दिल को छु गयी

तेजवानी गिरधर said...

please see http://ajmernama.com/guest-writer/22585

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर रचना अनु...

palash said...

anu ji
gud post.
aapki post par kuch jodna chahti hun
मै सीता नही,सावित्री नही
मै हूँ बस एक नारी
जो किसी भी सूरत में
ना अबला ना बेचारी
भले ही तुमने मुझे भोगा
दिया है तुमने मुझे धोखा
फिर भी ये जीवन मेरा है
जीने का अधिकार मेरा है
अभी तक ढूंढती रही
तुझमें अपना जीवन
और तुम्हे बस दिखता
रहा मात्र मेरा यौवन
आज से चलूंगी मैं
नयी ऊर्जा से नयी राह पे
बनाने अपनी पहचान
जीने की नयी चाह लिये

पी के शर्मा said...

वाह...एक अच्‍छी रचना से मुलाकात कराने के लिए धन्‍यवाद

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह आपने तो मेरी कविता को और भी खूबसूरत बना दिया ....आभार

रश्मि प्रभा... said...

ज़िन्दगी की सलीब पर टंगा वजूद और तलाश ....... चार कांधों की,यानि मुक्ति की - ज़िन्दगी के कई पडाव कौंध गए इस दर्द में

Sadhana Vaid said...

बहुत सुन्दर अनु जी ! एक बहुत ही भावपूर्ण एवं सम्वेदना से परिपूर्ण रचना ! मन को कहीं गहराई तक कुरेद गयी !

Rewa Tibrewal said...

stri kay man ki vyatha ko bahut khoob shabd diya hai apne...

Satish Saxena said...

निराशा जीवन के प्रति अपराध है ...
शुभकामनायें !

ANULATA RAJ NAIR said...

क्या कहूँ अंजु जी....
जो सफर चाहा वो मुक्कमल न हुआ...
अब अनजाने सफर की राह पकड़ ली.......

अनु

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

सच्चाई से रूबरू कराती बहुत सुंदर रचना
क्या बात

संध्या शर्मा said...

ओह... क्या चार कांधे का सफ़र मुक्ति दे सकेगा उसे उन जख्मों से जो उसके अपनों से मिले हैं... मर्मस्पर्शी भाव

Kunwar Kusumesh said...

ऊपर "पलाश" की टिप्पणी ने आपकी कविता को जो आशावादी मोड़ दिया है वो लाजवाब है,अनु जी।मेरी और से उन्हें बधाई। वास्तव में निराशा को अपने जीवन पर हावी नहीं होने देना चाहिए,हालात तो बदलते रहते है ना।

Ramakant Singh said...

मेरे लिए अब ये जरुरी था
कि ढूँढतीं फिरूं ,
अपने जिस्म को ढोने के लिए
वो चार कंधे ,
जिस पर तय करना है,मुझे अब ये
आखिरी सफर ||

वक़्त ने रिश्तों को इतना समेट दिया है कि आपकी बाते सच लगने लगती हैं

धीरेन्द्र अस्थाना said...

एक स्त्री के मन की पीड़ा जो सदियों से अव्यक्त ही रही !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मर्मस्पर्शी रचना .... पर मुक्ति क्यों ? संघर्ष करना चाहिए ।

अरुन अनन्त said...

अनु जी आपकी रचना ने आज का दिन बना दिया, ह्रदय हो छू गई

Anonymous said...

दर्द ... यथार्थ से रूबरू कराती,ह्रदय को सोचने पर विवश करती सुन्दर रचना ....


सादर

Anonymous said...

दर्द ... यथार्थ से रूबरू कराती,ह्रदय को सोचने पर विवश करती सुन्दर रचना ....


सादर

Anonymous said...

दर्द ... यथार्थ से रूबरू कराती,ह्रदय को सोचने पर विवश करती सुन्दर रचना ....


सादर

Pushpa said...

नारी की एक व्यथा का सार है .... अपने आदर्शों से लड़ती मरती एक स्त्री का प्रतिरूप है ... बहुत कुछ बंया कर रही है ...... बेहद दिल को छू लेनेवाली रचना है अंजू जी .... ... बधाई

Dr. Vandana Singh said...

एक दर्द सा उकेर दिया अंजू जी... कमाल लिखा है...

रंजू भाटिया said...

bahut sundar bhaaw lage aapki is rachna ke anju ji ..behtreen abhiwykti

Pallavi saxena said...

वाकई ज़िंदगी में एक बार ऐसा वक्त आता है जब इंसान को जीने की कोई इच्छा बाकी नहीं रह जाती और तब उसे तालश हॉटई है चार कंधों की ....बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

रवीन्द्र प्रभात said...

अच्छी रचना है, बधाई !

रवीन्द्र प्रभात said...

अच्छी रचना है, बधाई !

आशा बिष्ट said...

behad pranshaneey rachna..

आशा बिष्ट said...

अच्‍छी रचना

vandana gupta said...

ओह ! इतना दर्द भर दिया

Pratik Maheshwari said...

दर्द है जो ऐसे बाहर आया है?
बेहद गहन रचना..

सदा said...

वाह ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Arun sathi said...

aabhar...sambedanshil rachna

मुकेश कुमार सिन्हा said...

itna dard kyon????
kya jaruri hai aiseee soch ko sameten....

Anju (Anu) Chaudhary said...

mukesh ...ye soch hai ...soch ka kya hai ...kuch bhi kabhi bhi

Kailash Sharma said...

बहुत मर्मस्पर्शी और सशक्त भावाभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर

महेन्‍द्र वर्मा said...

ओह ! जीवन में ऐसे पड़ाव भी आते रहते हैं।

Rachana said...

मेरे लिए अब ये जरुरी था
कि ढूँढतीं फिरूं ,
अपने जिस्म को ढोने के लिए
वो चार कंधे ,
जिस पर तय करना है,मुझे अब ये
आखिरी सफर ||
bahut his under jeevan ka dukhad sach hai

Aditi Poonam said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति -बहुत सुंदर भाव

gazalkbahane said...

राम भी तो बंधा है
अनेकों उलझे-सुलझे संबंधों
के जाल में, जंजाल में
कहीं है वह पुत्र
दशरथ का कैकयी का भी
सौतेला ही सहीं
कहीं बंधा है अपने ही
दिये वरदान के बंधन मे
शतरूपा और स्वयंभू मनु को दिये गये वरदान से
तो कहीं धोबी सरीखी प्रजा
के वचन बेंधते हैं उसके हृदय को
सीते!
क्या तुम भी नहीं समझ पायीं
मेरी व्यथा
क्या एकान्त केवल तुम्हें सालता है?
मुझे नहीं

palash said...

Thanks Anu ji

palash said...

Thanks sir ji

उपेन्द्र नाथ said...

मर्म को स्पर्श करत बेहतरीन कविता...

amit kumar srivastava said...

जीवन दर्शन अथवा यथार्थ |

रचना दीक्षित said...

सुंदर चित्र से सजी बेहतरीन कविता. आत्मीय और भावपूर्ण.

मन्टू कुमार said...

सोचने को विवश करती हुई आपकी ये लाजवाब रचना..बहुत खूब|

सादर नमन |

Vaanbhatt said...

कंधे ज्यादा से ज्यादा तलाशने चाहिए...जिससे वक्त पर कम से कम चार मिल जायें...मैंने तो देहदान का संकल्प ले लिया है...कभी इसी कशमकश से गुज़र के... सुन्दर भाव लिए प्रेरक रचना...

इमरान अंसारी said...

वाह,.... बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

अंतिम सफर चार काँधे पर हो इसलिए तमाम उम्र की आहुति दे दी जाती है, जानते हुए कि ये चार काँधे उनसे ही मिलेंगे जिनसे जीवन भर तिरस्कार मिला... बहुत अच्छी रचना, बधाई.

कविता रावत said...

कश्म कश्म भरे लम्हों की मार्मिक प्रस्तुति ...

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

ये जानते हुए कि
मैं छोड़ी जा चुकी हूँ
फिर भी एक इंतज़ार है
कि तुम ....खुद से
अपनी गलती स्वीकार करो
ताकि मैं लौट सकूँ
जहाँ से मैं आई हूँ
पर मैं जानती हूँ
ये सब भ्रम है मेरे ही मन का ...............सुन्दर पोस्ट

प्रेम सरोवर said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

Rajput said...

सीता सी नहीं हूँ
वो ,कर्तव्यों के लिए
त्यागी गई ...
बहुत शानदार रचना ।

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही अच्छा लिखा है। धन्यवाद।

Rashmi Garg said...

very nyc..

kavita verma said...

bahut khoob..

उड़ता पंछी said...

वाह,.... बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।



हो सके तो पढियेगा, पोस्ट
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!