Saturday, May 3, 2014

एक सोच फेसबुक के लिए


चहल-पहल की इस नगरी में 
हम तो निपट बेगाने है 
जपते राम नाम सदा 
हम उसी के दीवाने है 

बेगानों की इस दुनिया में 
सजे बाज़ार मतवालों के हैं 
छीन ले जो खुशियाँ सभी 
ऐसे दुश्मन भी  नहीं बनाने हैं 

भूल कर सब बैठे घर अपना 
ऐसे यहाँ बहुत दीवाने हैं 
सजा लेते चाँद तारों से अपना दामन 
लोग कैसे-कैसे इन कैदखानों में हैं 

हर हाल में करते खुद को गुमराह 
बिन पैसे यहाँ तमाश-खाने हैं 
मिलता दर्द जिनकी पनहा में 
हमें ऐसे घर नहीं बनाने हैं ||


अंजु चौधरी (अनु)



14 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-05-2014) को "संसार अनोखा लेखन का" (चर्चा मंच-1602) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Himkar Shyam said...

बहुत ही सुंदर और प्रवाहमयी रचना. पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ. अच्छा लगा...

Anju (Anu) Chaudhary said...

Aabhar aapka

Anju (Anu) Chaudhary said...

Aabhar ji

Anju (Anu) Chaudhary said...

Swaagat hai aapka

दिगम्बर नासवा said...

राम नाम ही एक सच है ... उसी का सहार श्रेष्ठ है ...
भाव भरी रचना ...

Anju (Anu) Chaudhary said...

😊😊

nayee dunia said...

ye achhi aur sachhi baat kahi ki sabhi bhul kar baithe ghar apne ..bahut sundar

संजय भास्‍कर said...

अनुभवों की पोटली

सदा said...

बहुत ही सच्‍ची बात ..... बेहतरीन प्रस्‍तुति

सदा said...

बहुत ही सच्‍ची बात ..... बेहतरीन प्रस्‍तुति

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर !

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही सुंदर विचार, शुभकामनाएं.

रामराम.

प्रभात said...

बधाई। बहुत अच्छा सुझाव भी है!