चहल-पहल की इस नगरी में
हम तो निपट बेगाने है
जपते राम नाम सदा
हम उसी के दीवाने है
बेगानों की इस दुनिया में
सजे बाज़ार मतवालों के हैं
छीन ले जो खुशियाँ सभी
ऐसे दुश्मन भी नहीं बनाने हैं
भूल कर सब बैठे घर अपना
ऐसे यहाँ बहुत दीवाने हैं
सजा लेते चाँद तारों से अपना दामन
लोग कैसे-कैसे इन कैदखानों में हैं
हर हाल में करते खुद को गुमराह
बिन पैसे यहाँ तमाश-खाने हैं
मिलता दर्द जिनकी पनहा में
हमें ऐसे घर नहीं बनाने हैं ||
अंजु चौधरी (अनु)
14 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-05-2014) को "संसार अनोखा लेखन का" (चर्चा मंच-1602) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुंदर और प्रवाहमयी रचना. पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ. अच्छा लगा...
Aabhar aapka
Aabhar ji
Swaagat hai aapka
राम नाम ही एक सच है ... उसी का सहार श्रेष्ठ है ...
भाव भरी रचना ...
😊😊
ye achhi aur sachhi baat kahi ki sabhi bhul kar baithe ghar apne ..bahut sundar
अनुभवों की पोटली
बहुत ही सच्ची बात ..... बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत ही सच्ची बात ..... बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत सुन्दर !
बहुत ही सुंदर विचार, शुभकामनाएं.
रामराम.
बधाई। बहुत अच्छा सुझाव भी है!
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