(आज मैं अपनी एक पुरानी पोस्ट आप सबके साथ साँझा कर रही हूँ ....इसे मैंने २४ फरवरी २०१० में लिखा था ....शब्दों के बदलाव के बिना और बिना किसी एड्टिंग के आप सबके सामने लाई हूँ )
मेरी तन्हाई में ,
किनते आंसू थे
कि तुझे से दूर होकर भी
तेरे पास थी मैं
चांदनी थी अपने चाँद के साथ
फिर भी बहुत उदास थी मैं |
मेरे चाँद को छिपा लिया बादलों ने
जो मेरे मन की
चांदनी की आखिरी आस था
सिमट गए मेरे सब सपने
उस अधूरी रात में
अब,टूट गए सब सपने
तुम्हारे आने की आस में |
क्यों किसी ने ना सुनी
मेरे बचपन और जवानियाँ
तनहा मैं जी गई
कितनी ही जिन्दगानियाँ
कमज़ोर हूँ..अकेली हूँ ...
फिर भी कि आँखों के बिन रोए
अश्क सी हूँ
मै वक़्त का वो भूला बिसरा लम्हा हूँ
या
तेरी निगाहों में खटका वो तिनका हूँ
जो,वो कहते है बोझ मुझे ,
पर,अब मैं तो खुद के ही
बोझ से भी हल्की हूँ |
ये मन अब किसी रिश्ते में ना बंध पाएगा
फिर भी ,
आज भी है इस दिल में
हजारों आरजुएँ
जो कभी नहीं होंगी
रहनुमाई सी
भटकन बडी है इस
प्यार की राहों में
जिस पर अब मुझे ही चलना है
क्यों
मेरी तन्हाई में ,इतने आंसू थे ||
अंजु (अनु)
33 comments:
bow kahte he bojh mujhe par me khud me hi halki hun.
jeena to he jeene ki aadat purani he.
wah kya baat he
sundar .
bahut khub kaha anu.
hmmmmmmmmm lilkhti to theek hai....magar jaane kyun aisa lagtaa hai.....ki ye ladki blog nahin banaa sakti.....itti choti si....aur blog ??
meri tanhai me kitne aanshu the.......superb!! god bless!!
thank ji aapne mera blog dekha......dil se shukriya hai aapka
http://khudaterinajreinayatho.blogspot.com/
TIME MILE PADHLENA AAJ NAHIN MILOONGA BYEE
KBHI ROYE THE HAM TERE AHSAS KO SAMJH KAR
NASHTAR SE LAGTI HAIN YE TERI AAHEN DIL KO
MAJBOOR HAI YE DILE GAM SE BEJAR BHABOOKA
SA UTHATA HAI JIGAR ME EK JAAN NIKAL NA JAYE
AFSOS KE ANSOO NAHIN HAME TERE GAMON KI ITZA
BAS ITNA SAMJH LEE JEE KE THAME HAIN APNE KO
http://2.bp.blogspot.com/_7xRCifZhlgg/SldJOs7OHWI/AAAAAAAAFE8/FIDj8QjBJKQ/s1600/neha129-762386.gif
तन्हाई में बैठ कर पढ़ा तो अपनी तन्हाई कम होती लगी .......
Tanhayee me ki gyee dastane guftgoo , "khud se jara khud ko jod kar dakho,tanhayeeyon ke foolon me mahak hoti hai,aayeene se akele me guftgoo ki koshish, aksar kamyab hoti hai ... badha ke hath bajoon me bhar le koyee ,tahayeeyon me akshar ,unse mulakat hoti hai " so deep with full of swwtest pains
कमज़ोर हूँ..अकेली हूँ ...
फिर भी कि आँखों के बिन रोए
अश्क सी हूँ
बहुत सुंदर लिखा है अनु जी ! बहुत खूब !
ये मन अब किसी रिश्ते में ना बंध पाएगा
फिर भी ,
आज भी है इस दिल में
हजारों आरजुएँ
sahi hai ye aarjuye hi to nahi mitti na ...
wah wah ab tak lekhni ke tevar aur teekhe hue hain,,,sunder
please see http://ajmernama.com/guest-writer/74625/
bahut sundar rachna.....har shabd say tanhai jhalak rahi hai....yehi sundarta hai is rachna ki
बहुत अच्छी और सार्थक रचना है अंजू जी |
आशा
तनहा मैं जी गई
कितनी ही जिन्दगानियाँ
कमज़ोर हूँ..अकेली हूँ ...
फिर भी कि आँखों के बिन रोए
अश्क सी हूँ
बहुत सुंदर लिखा है अनु जी ! बहुत खूब !
एडिटिंग के बिना भी मूल भाव में कोई बदलाव नहीं आया है बल्कि उसके सुन्दरता में निखार जस का तस है किसी खनिज की भांति उसका मूल स्वरुप दमकता हुआ ******
anju bahut sundar
मार्मिक अभिव्यक्ति....
मेरी तन्हाई में,कितने आंसू थे
कि, तुझसे दूर होकर भी,तेरे पास थी मैं---
कभी-कभी,तन्हाइयां बोलती हैं और दुनिया सुनती है.
कभी-कभी तन्हाइयां बोलती हैं.
कभी-कभी तन्हाइयां भी बोलती हैं.
कभी-कभी तन्हाइयां भी बोलती हैं.
पुरानी अभिव्यक्ति है ..... अभी तो ऐसा नहीं है न :):)
वैसे अशकों से तो हमेशा ही रिश्ता बना रहता है ...
तहाई का भी अपना ही मजा होता है..बहुत बढ़िया अनु..
marmik rachana jo apake bhavuk hone ka apane aap me praman hai. ati sundar.
बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति....
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (06-05-2013) के एक ही गुज़ारिश :चर्चा मंच 1236 पर अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें ,आपका स्वागत है
सूचनार्थ
बेहद उम्दा रचना!
बहुत सुंदर लिखा है अनु जी !
तनहा मैं जी गई
कितनी ही जिन्दगानियाँ
कमज़ोर हूँ..अकेली हूँ ...
फिर भी कि आँखों के बिन रोए
अश्क सी हूँ
मै वक़्त का वो भूला बिसरा लम्हा हूँ
-बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
कभी तनहाइयों में यूँ हमारी याद आएगी
न फिर तू जी सकेगा और न तुझको मौत आएगी
तन्हाई कभी अकेले नहीं आती...दोनों तरफ बराबर आती है...
भटकन बडी है इस
प्यार की राहों में
जिस पर अब मुझे ही चलना है
क्यों
मेरी तन्हाई में ,इतने आंसू थे ||
...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना...
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