बचपन हमारा
खुले खेत ..
कच्ची पगडण्डी
खेतो में पानी
लगती फसल
उस राहा...भागता
बचपन हमारा
पेड़ पर झूला
रुक कर उस में ..
झूलता बचपन हमारा
अमुया का पेड़ ..
पेड़ की छाया
बसते को फेंकता
बचपन हमारा
रुक कर उस में ..
झूलता बचपन हमारा
अमुया का पेड़ ..
पेड़ की छाया
बसते को फेंकता
बचपन हमारा
कच्ची अम्बी
झुकती डाली
डाल पे कूकती
कोयल काली काली
शरारत में
आम तोड़ता
बचपन हमारा
टाट की झोंपड़ी
धूप और बरसात से
खुद को और बच्चे को
छिपती एक माँ
हमारी जेब में
उछलते कन्चे
उस संग खेलता
कूदता बचपन हमारा
बेपरवाह ...सबसे
ट्रेक्टर की आवाज़
दोस्ती की डगर
उस पर हाथ पकड़
चढ़ता बचपन हमारा
दूर बजती विद्धालाये की घंटी
मास्टर जी की याद
आती छड़ी
विद्धालाये की ओर
भागता बचपन हमारा
मास्टर जी की क्लास
छिप छिप कर बैठते
हम ...
२ दुनी ४ की
भाषा में
कहाँ लगा अपना मन
खुली खिड़की से
झांकता ये स्वतंत्र मन
कभी आकाश के बादल
बादलों से आँख मिचौली
खेलते सूरज के
दुर्लभ दर्शन ..
तो कभी उडती
चिड़ियाँ को
गिनता ये बचपन
खुद की दुनिया को
बुनता और खो जाने वाला
ये बचपन .....
तभी पड़ी ...मास्टर जी छड़ी
तो वर्तमान में लौट के
आता ये बचपन .....
छिप छिप कर बैठते
हम ...
२ दुनी ४ की
भाषा में
कहाँ लगा अपना मन
खुली खिड़की से
झांकता ये स्वतंत्र मन
कभी आकाश के बादल
बादलों से आँख मिचौली
खेलते सूरज के
दुर्लभ दर्शन ..
तो कभी उडती
चिड़ियाँ को
गिनता ये बचपन
खुद की दुनिया को
बुनता और खो जाने वाला
ये बचपन .....
तभी पड़ी ...मास्टर जी छड़ी
तो वर्तमान में लौट के
आता ये बचपन .....
(अनु.)
38 comments:
Good old days :)
Brilliant projection of thoughts !!
purani wo samay fir se yaad kara di, jo kahin andar chhipa baitha tha...jo kabhi kabhi khushi de jata tha...aaaj fir se man khush hogaya...
thanx anu:)
बहुत सुन्दर शरारतों से भरी रचना...
आभार...
Sahitya Varidhi Sammaan paane ke liye dil se bahut bahut badhai.............aur haan kabhi party bhi de dena...madam :)
shukriya mukesh....tum jaisa dost har kisi ko mile is jeevan mei
बचपन की मधुर स्मृतियों की याद दिलाती अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
अल्हडपन का क्या खूब नमूना पेश किया है आपने
२ दुनी ४ की
भाषा में
कहाँ लगा अपना मन
खुली खिड़की से
झांकता ये स्वतंत्र मन
कभी आकाश के बादल
बादलों से आँख मिचौली
खेलते सूरज के
दुर्लभ दर्शन ..
खूबसूरत दिल की उड़ान को प्रस्तुत किया है अनु जी आपने.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
मनोभावों को बहुत अच्छे से उभारा है आपने.
मुकेश सर की टिप्पणी से पता चला कि आप सम्मानित हुई हैं.बहुत बहुत बधाई.
सादर
bachpan yad dila diya ... bahut badhiya.. :)
कितनी लम्बी दौड़ दौड़े , पर झुला थमता ही नहीं
badi sundarta se bachpan ukera he aapne kavita me,
aam to hamen bhi khoob tode hain bachan main!
आपने बचपन की यादों को कविता में बहुत अच्छे ढंग से बाधा है!
हमें भी अपना बचपन याद दिला दिया!
बहुत सुन्दर शरारतों से भरी रचना...
बचपन याद दिला दिया,
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
"nostalgic"
sweet memories...
आपकी प्यारी-सी कविता ने बचपन की याद दिला दी,अनु जी.
सारी बचपन की यादें ताज़ा कर दिन ..अच्छी प्रस्तुति
आपकी ये कविता पढ़ के मुझे बचपन के एक कविता याद आयी,
"यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे,
मैं भी उसमे बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे "
मन को मोह लिया आपकी कविता ने !
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दहेज़ कु-प्रथा !
बचपन को पुनः जीने को प्रेरित करती सुन्दर क्षणिकाएं ... बहुत सुन्दर...
यूं ही नही याद आता बचपन....
बहुत बढ़िया कविता..
आपने तो पुराने दिनों की याद दिला दी ...
बहुत सुंदर ...प्यारी सी कविता बचपन की यादें और बातें लिए....
पहुँचे आज बुढ़ापे के पास ,
वो बचपन लगे ,आज भी ख़ास||
शुभकामनायें !
हूँ.... प्यारा होता न बचपन... आपकी कविता भी बहुत प्यारी है....
very beautiful poem
"samrat bundelkhand"
बचपन हमारा...एक बार चला जाए तो आता नहीं दोबारा ...सुन्दर प्रस्तुति...काश.............आ जाए ,सब यही चाहते होंगे...कि बस एक बार लौट आये...
waakai bachpan ki yaad dilaa dee aapne!
आप सभी दोस्तों का धन्यवाद जिन्होंने मेरे संग अपना बचपन जीया और फिर से उसको याद कर उस पल में खो गए ............आभार आप सबका
bachpan ke hindole me ham bhi jhool aaye aur gaanv ki mundero aur kheto ki mendho par ham bhi aapke saath sath kood aaye....lagta hai apka bachpan bahut shararat bhara tha. bahut sunder shabdo se bayaan kiya bachpan ko. vartani ka dhyaan rakhe.
lo kar lo baat......shabd aapke....aur bachpan hamara.....!!kar diyaa aapne hamara vaaraa-nyaaraa
fir kisi rchna pr apna mt vykt kroonga
टाट की झोंपड़ी
धूप और बरसात से
खुद को और बच्चे को
छिपती एक माँ
हमारी जेब में
उछलते कन्चे
उस संग खेलता
कूदता बचपन हमारा
बेपरवाह ...सबसे............अन्नू जी ऐसा लगता है ,जैसे में अपने गाव में हूँ ,सच आपने बचपन की याद दिला दी ......आभार ........
बचपन की याद आ गयी
सुंदर प्रस्तुति
बचपन को पुनः जीने को प्रेरित करती सुन्दर क्षणिकाएं ... बहुत सुन्दर...
शुभकामनायें !
बचपन की यादों पर कविता बहुत अच्छी लगी....
बड़ी मुश्किल से कमेन्ट पोस्ट हुआ है...
बहुत सुन्दर.तुम्हारी कविता एक बार फिर मुझे अपने गाँव ले गई.
बहुत बेहतरीन..........
bahut sundar..bachpan ki yaaden bhulaye nahi bhulti hain..
तुम बचपन को इस तरह भी याद करोगी ......हमेँ अपने साथ बहा ले जाओ गी......बाकि क्या कहुँ तेरे साथ बचपन तो गुजारा नहीँ....तुम शरारती रही होगी बचपन मेँ ये पक्का है... बहुत सुन्दर...रच्ना...अनु....
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