२१वीं सदी के रिश्ते.....(एकल होते परिवारों का दुःख.......जो मैंने समझा है ....मेरे विचार ...मेरी कविता )
आज के मशीनी युग में
समय कुछ ज्यादा ही
महंगा हो गया है
आप सब अब
अवकाश निकालो
आप लोगो से दो
बाते हैं करनी ..कि
सोया है सबका विश्वास
उसे तो जगा लो ...क्यूँकि
आज रिश्तो की पहचानकठिन सी हो गयी है......
हर रिश्ते में सिर्फप्यार कीiv> कमी सी हो गयी है....
माँ बाप और संतान कारिश्ता सिर्फ पालन पोषण
और नसीहतो तक हीसिमट कर रह गया है.....
क्या किया उन्होंनेसंतान के लिए ?ये प्रश्न उनके दिमाग मेंप्रेत बन कर बैठ गया हैकुछ नहीं ????सिर्फअपना फ़र्ज ही तोनिभाया है.....
बदले में कुछ चाहनेका उन्हें हक नहीं.....क्यूंकि,बच्चो की अबतो अपनी ही जिन्दगीहो गई हैं ....... और
पति पत्नी का रिश्ताभी तो सिर्फ
तनख्वाह दिन तक काही रह गया है......क्यूंकिदोनों की अब अपनी अपनीनिजी जिन्दगी है भाई...अजब सी दुनिया है ये ...दिल में है क्या ..ना जाने कोई ....क्यूँ ...आज पोते पोतिया,दादा दादी को नहीं जानते.....
वो इस रिश्ते को नहीं पहचानते......
क्यूंकि ......बूढे माँ बापघर की शोभा बिगाड़ते है....और उनकी आज़ादी में खलल डालते हैं
इस लिए वो लोग तो
वृद्धाश्रम में ही भाते है........
देखो तो ...भाई -भाई जान केदुश्मन बन बैठे हैं ...रिश्तो की मिठास की कमीको अब स्वीट डिशजो पूरा करती है.....
टूटे हुए रिश्तो काआज दौलत से एकअटूट रिश्ता जुड़ गया है......
फिर भी मैं ...ये ही कहूँगी कि .....ढूंढ़ सकते हो तो ढूंढ़ लाओवो स्वयं के रिश्ते जो खो गएहै इस दुनिया के चलन में
वो पक्के धागों से रिश्ते ....
वो रिश्तो की सच्ची मिठास......
वो प्यार, वो बंधन...वो हर चेहरे पर मुस्कानवो हँसीं-ठिठोली का वातावरणवो अपनों पर विश्वासजो मिलता था सबकोएक .... संयुक्त परिवार में ....((अनु))
Friday, August 5, 2011
२१वीं सदी के रिश्ते....
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27 comments:
waqt ki maar hai...kuch apni kamzori....rachna sahi baat kehti hai
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
वाह जी, क्या कहने। हकीकत से रुबरू करा रही है ये कविता
फिर भी मैं ...ये ही कहूँगी कि .....
ढूंढ़ सकते हो तो ढूंढ़ लाओ
वो स्वयं के रिश्ते जो खो गए
है इस दुनिया के चलन में
वो पक्के धागों से रिश्ते ....
बधाई
अपने रिश्तों से ..... बड़ी बड़ी बिल्डिंग में बैठे युवा कर्मचारी ... माँ और बाप से भी चेट पर बात करना चाहते है ...... रिश्तों की गर्माहट वो क्या समझेंगे...... वैसे अनुराधा जी.... आपके ये कविता आज के माहौल में फिट बैठती है .
मार्मिक प्रस्तुति....
पर मुझे नहीं लगता कि इतनी भयावह स्थिति हमारे समाज में अभी है..... पर बहुत जल्दी.... शायद....
नहीं ऐसा न ही हो तो ठीक.....!
कुँवर जी,
बहुत सही और बहुत ही बढ़िया।
सादर
ढूंढ़ सकते हो तो ढूंढ़ लाओ
वो स्वयं के रिश्ते जो खो गए
है इस दुनिया के चलन में
वो पक्के धागों से रिश्ते ....
वो रिश्तो की सच्ची मिठास......
वो प्यार, वो बंधन...
वो हर चेहरे पर मुस्कान
वो हँसीं-ठिठोली का वातावरण
वो अपनों पर विश्वास
जो मिलता था सबको
एक .... संयुक्त परिवार में ...
सच्ची और सटीक अभिव्यक्ति !!
आज के रिश्तों पर गहरी सोच ... अच्छी और सटीक प्रस्तुति
रिश्तो पर एक मार्मिक प्रस्तुति....सुन्दर..
सुन्दर प्रस्तुति
आज रिश्तो की पहचान
कठिन सी हो गयी है......
हर रिश्ते में सिर्फ
प्यार की
iv> कमी सी हो गयी है....
ANU JI SUNDER AUR BHAVOOK PRASTUTI KE LIYE HARDIK BADHAI, AAPNE BIKUL SAHI KAHA HAI AAJ KAL HER JAGEH , HER RISHTE ME PYAR KI KAMI SI HO GYI HAI ..................SARTAHK PRASTUTI KE LIYE AABHAR ...........HUM TO KAYAL HO GYA HAI AAPKI IS SUNDER RACHNA KE .....
गहरी सोच को दर्शाती रिश्तों की एक संवेदनशील प्रस्तुति।
आपने एकल समाज के दुःख दर्द और सच्चाई को परत दर परत उधेड़ दिया है...बहुत शशक्त रचना.
नीरज
HAM DAUD RAHE HAIN - EK AISI DAUD MEN KI JAHAN SIRPH MAIN AUR MAIN HI DIKHAI DETA HAI. RISHTON KE DARAKATE HUE ASTITVA KO BAHUT ACHCHHE SE VARNIT KIYA HAI.
BAHUT SUNDAR PRASTUTI .
वाह ! बहुत ही सशक्त रचना है अनु जी....
स्वयम का आकाश तलाशने की होड़... रिश्तों के सिमटते दायरे... विघटित और विलुप्त होते पारिवारिक पृष्टभूमि की वेदना को मुखरता से अभिव्यक्त करती सशक्त रचना है यह....
सादर....
संयुक्त परिवार का मजा एकल परिवार में कहाँ? जीवन की आपाधापी में संयुक्त परिवार विघटन का संकट झेल रहा है। अच्छी कविता, आभार
वो प्यार, वो बंधन...
वो हर चेहरे पर मुस्कान
वो हँसीं-ठिठोली का वातावरण
वो अपनों पर विश्वास
जो मिलता था सबको
एक .... संयुक्त परिवार में ....
sach me mujhe yaad hai, apna bachpan , pure milakar ham ek dozen bhai bahan the....wo ladna hasna khelna, jabardasti ki behoshi ka natak karna, sabki sahanubhuti ekatrit karna...sab kahan raha....
raat me khane pe to line lag jaati thi , niche baith kar khane samay:D
bahut pyari si rachna....dil ko chhoo gayee kyonki purane din yaad aa gya...
aur ab akal parewar ...mera hi ..bachcho ko jabardasti kabhi kabhi akele flat pe band kar ke jana tak padta hai.........uff!!
नवयुग में रिश्तों की बात करना तो फिजूल ही लगता है!
आजकल की पीढ़ी यदि आदर के साथ दादीजी-दादा जी की कह दें तो वही बहुत है!
आपने बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति पेश की है!
waakai.....rishton ki khoj aur pahchaan jaruri hai......
bahut saarthak rachna..
कटु सत्य को उजागर करती सुन्दर रचना
रिश्तों की खटास पर आपकी पोस्ट पढ़ते पढ़ते किसी का एक पड़ा प्यारा-सा शेर याद आ गया.सुनियेगा आप भी:-
करवटें लीं मेरे हालात ने जैसे जैसे.
दोस्त भी अपने बदलते गए वैसे वैसे.
सही कहा आपने। आज सारे रिश्ते पैसों तक सिमट कर रह गए है।
NICE REFLECTION OF TADAY'S SITUATION.CONGRATS.
ekdam sahi kaha annu... ek ek rishta khokhla hota ja raha hai bas..kaha dhundhe apnapan...
पश्चिमी चलन है.. लोग चल रहे हैं और जल भी रहे हैं पर फिर भी रुकना नहीं चाहते..
ज़िन्दगी की इस दौड़-धूप में सोचना ही नहीं चाहते कि क्या सही और क्या गलत है..
अफ़सोस है ऐसी नासमझी पर.. पर दुनिया है.. अपनी धुन में चली जा रही है... और जनता-जनार्दन जली जा रही है..
आभार
अनु जी ,
मन मष्तिष्क को आंदोलित कर गयी आपकी रचना ....
'रिश्तों की मिठास' की यादें जो अब न के ही बराबर रह गयी हैं , आँखों को नम कर जाती हैं |
आधुनिकता की अंधी दौड़ हमें कहाँ ले जायेगी , सोच कर मन व्यथित हो जाता है |
भावनाओं से परिपूर्ण, बेहद गहरी रचना.
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