कोई और फोटो नहीं मिली ...इसलिए सोचा चलो अपनी ही फोटो डाल दे....अरे हम भी तो आज के वक्त की कवयित्री हैं भाई .....
पहले और अब का कवि
चश्मा चढ़ाए
झोला लटकाए
चला आ रहा हैं पैदल ..
देखते ही लोग उसे
कह देते थे...
वो देखो कवि लगता है ||
आँखों में सपने हैं
सपने जो अपने हैं
देखने में वो साधारण हैं ,पर
उम्मीदे हैं ,आसमन से ऊँची
धरती पर लगने वाली
हर फसल सी
हर शाम बीतती थी जिसकी
दोस्तों के बीच ,
सिगरेट के धुंए में
उसकी बत्तीसी चमकती थी |
बात बात में वो गंभीर
होता था
चश्मे को ठीक कर
हर बात में तर्क देता था
हर किसी की बात में
बीच में कुशल तैराक सा
कूद पड़ता था ,
अपनी सांझेदारी निभा कर
खुद पर ही खुश हो जाया करता था
क्रान्ति की किताबे
गीता सी बांचता था ,
कभी कभी एक घूँट लगा कर
हसंता तो कभी रोता था ,
फिर भी कभी उसके परिवार का पेट
उसकी कविता नहीं नहीं भरता था .......
और आज का कवि ..
दिखने में स्मार्ट हैं
तेज .चुस्त ,फुर्तीला
किसी को भी अपनी बातों में
अपनी ही बुद्धिमता से
पछाड़ने की अक्ल रखता हैं
नाप तोल के बोलता हैं
हसंता कम ...मुस्कुराता
अधिक हैं
बाईचांस ..कविता करना
इसका सिर्फ शौंक हैं
जबकि नक़ल करना इसका धंधा हैं
क्यूंकि ये अक्ल का अंधा हैं
मुस्कान इसका
सबसे बड़ा हथियार हैं
और
वो अपनी बात किसी पर थोपता नहीं हैं
बस कहता हैं ...
बात कही ,
कोई माने या ना माने
ये सोचने की फुर्सत नहीं
बात की और,कट लिया ,पतली गली से ,
अपनी बातों से हर दिल में
बस जाता हैं ....
काम निकलने पर वहाँ से
खिसक जाता हैं
किसी का दिल टूटे तो टूटे
कोई सपना रूठे तो रूठे
पर वो बुत खड़ा हैं
आज भी सरे बाजार में ,
किसी नए की तलाश में
ये आज का कवि .....|
अनु
45 comments:
बढ़िया कंट्रास्ट दिखाया आपने ... आभार !
अरे वाह ...क्या कमाल कहा है ..वाह वाह ..मजा आ गया अंजू जी.:)
अच्छी तुलना की आपने पहले और अब के कवि की… पर आज के सभी ऐसे कवि नहीं हैं… कविता के ऊपर आपकी फोटो भी फिट है… हाँ, टापइंग में गलत हाथ पड़ गया और 'कवयित्री' से 'कवित्री' हो गया… हा हा !
कवि हो या कवयित्री - प्रतिस्पर्द्धा , पछाड़ने की ख्वाहिश उसे कवि और कवयित्री नहीं रहने देती . कहने को जो कह लें , लिख लें - पर उसे वटवृक्ष होना होता है या ओस की बूंद ...
सुभाष जी गलती सुधार करवाने के लिए आभार
हकीकत उजागर कर दी आप ने ऐसे लोगों की ढोल की पोल खोल दी अपनी बिरादरी से भगा डालेंगे अंजू दी
ह्म्म, ऐसी तुलना वही कर सकता है जो दोनो जमानों के कवियों से मिल लिया हो। अनुभव बोलता है। :)
vaah...ji vaah...
स्पष्ट और रोचक व्याक्या कल और आज की.....
रश्मि दीदी ..मैं आपकी बात से सहमत हूँ ....
इस कविता को मात्र व्यंग्य के रूप में लिखा हैं ....
हा! हा !हा !..अच्छा व्यंग्य है..अनु जी..
kalamdaan.blogspot.com
:-)
रोचक चित्रण...
कवि बदल गए...मगर शुक्र है कविता वैसी ही है...दिल के करीब...
सस्नेह.
वाह! सुन्दर फोटो लगा जी.
आपकी कविता शानदार है.
लिखने का स्टाइल निराला है.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,अनु जी.
अच्छी प्रस्तुति,बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
अंजू जी,..शीर्षक के मुताबिक़ आपकी फोटो सही है,...
new post...वाह रे मंहगाई...
bahut sahi kaha annu aaj ke kavi aur ekhako ka anubhav hame gujrati jagat me bhi hota hai aur bahut buri tarah bas sab chup rah jate hai kisi me sach bolne ki takat nahi.. tumhari himmat ki dad denio padegi ki itna kuch likh pai..badhiya hai ji..
अच्छी हास्य रचना ..
pahle bhee aise hote honge
par samay kee gart mein chhup gaye
jo dikhtaa hai wo hee yaad rahtaa hai
nice impression aaj ke kavi kee tasveer bhee achhee lagee
वाह ! अच्छा चित्रण किया है कवि का
बहुत बढ़िया सटीक पंक्तियाँ रची हैं..... और फोटो वो भी बड़ी अच्छी लगी :)
मधुर व्यंग्य...
aapne to sabko ek baar phir se apne gireban me jhakne ko majbur ker diya........sasakt rachna ke liye hardikbadhai
kya khoob kataaksh hai.....?
kunwar ji,
behad rochak lagi rachna anu ji.. behad accha laga padhna...
अरे वाह !बढ़िया तुलनात्मक रचना !
सुन्दर व्यंग !
आभार !
बिलकुल सटीक।
सादर
aajkal ke kavi.........:))
par kaviyatri ke bare ma nahi bataya...!!
pahle saari me rahti thi....
bada sa juda, aur aanchal hota tha...
aajkal ki .........
arre dekh lo upar hai na photo:)))
सुन्दर प्रस्तुति.
खूबसूरत रचना !
बहुत सही और सटीक....
उत्तम अभिव्यक्ति ।
कट लेने में ही भलाई है ..... :)
बहुत सुंदर ...
बहुत सुंदर ...
sundr rachna.....apni photo dalne wali baat bhi pyaari lgi....acha likhti hai aap :)
Ye tulnatmak adhyan lajawaab hai ...
सार्थक एवं सुंदर अभिवयक्ति...
व्यंग भी और संदेश भी , हम जैसे कवियों के लिए ...बहुत उम्दा आपका बहुत -२ शुक्रिया इस पोस्ट के लिए ..धन्यबाद ....
आपकी प्रस्तुति को सुनीता जी की हलचल पर देखकर अच्छा लगा.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है जी.
आज 22/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति मे ) पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
कल और आज के कवियो कि बहूत अच्छी तुलना कि है
बहूत खूब अंजू जी
अज़ी कवियों का हाल भी फिल्म स्टार्स जैसा रहा है ।
आज के कवि भी समझदार हो गए हैं ।
अज़ी कवियों का हाल भी फिल्म स्टार्स जैसा रहा है ।
आज के कवि भी समझदार हो गए हैं ।
आज भी झोला लटकाए अपने सरोकार के लिए प्रतिबद्ध कवि हैं लेकिन ब्लॉग जगत और इन्टरनेट की दुनिया में नहीं मिलेंगे.... इन्टरनेट जगत में आपकी कविता के कवि मिलेंगे.... कविता और भी गंभीर हो सकती थी यदि मात्रा बाहरी आवरण पर कविता ना लिखकर कंटेंट पर भी ध्यान देतीं....
कवि होना आसान है... कविमना होना आकाशकुसुम!
बढ़िया कटाक्ष यथार्थ से साक्षात्कार .
bahut sunder tulnaatmak adyyan kiya hai aap ne naye aur varisth kaviyon ke madhy . sunder
sadar
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