Friday, January 20, 2012

पहले और अब के कवि ...

कोई और फोटो नहीं मिली ...इसलिए सोचा चलो अपनी ही फोटो डाल दे....अरे हम भी तो आज के वक्त की कवयित्री हैं भाई .....


पहले और अब का कवि

चश्मा चढ़ाए
झोला लटकाए
चला रहा हैं पैदल ..
देखते ही लोग उसे
कह देते थे...
वो देखो कवि लगता है ||

आँखों में सपने हैं
सपने जो अपने हैं
देखने में वो साधारण हैं ,पर
उम्मीदे हैं ,आसमन से ऊँची
धरती
पर लगने वाली
हर फसल सी
हर शाम बीतती थी जिसकी

दोस्तों के बीच ,
सिगरेट के धुंए में
उसकी बत्तीसी चमकती थी |
बात बात में वो गंभीर
होता था
चश्मे को ठीक कर
हर बात में तर्क देता था
हर किसी की बात में
बीच में कुशल तैराक सा
कूद
पड़ता था ,
अपनी सांझेदारी निभा कर
खुद पर ही खुश हो जाया करता था
क्रान्ति की किताबे
गीता सी बांचता था ,
कभी कभी एक घूँट लगा कर
हसंता तो कभी रोता था ,
फिर भी कभी उसके परिवार का पेट
उसकी कविता नहीं नहीं भरता था .......

और आज का कवि ..
दिखने में स्मार्ट हैं
तेज .चुस्त ,फुर्तीला
किसी को भी अपनी बातों में
अपनी ही बुद्धिमता से
पछाड़ने की अक्ल रखता हैं
नाप तोल के बोलता हैं
हसंता कम ...मुस्कुराता
अधिक हैं
बाईचांस
..कविता करना
इसका सिर्फ शौंक हैं
जबकि नक़ल करना इसका धंधा हैं
क्यूंकि ये अक्ल का अंधा हैं
मुस्कान इसका
सबसे
बड़ा हथियार हैं
और
वो अपनी बात किसी पर थोपता नहीं हैं
बस कहता हैं ...
बात कही ,
कोई
माने या ना माने
ये सोचने की फुर्सत नहीं
बात की और,कट लिया ,पतली गली से ,
अपनी बातों से हर दिल में
बस जाता हैं ....
काम निकलने पर वहाँ से
खिसक जाता हैं
किसी का दिल टूटे तो टूटे
कोई सपना रूठे तो रूठे
पर
वो बुत खड़ा हैं
आज भी सरे बाजार में ,
किसी नए की तलाश में
ये आज का कवि .....|


अनु

45 comments:

शिवम् मिश्रा said...

बढ़िया कंट्रास्ट दिखाया आपने ... आभार !

shikha varshney said...

अरे वाह ...क्या कमाल कहा है ..वाह वाह ..मजा आ गया अंजू जी.:)

सुभाष नीरव said...

अच्छी तुलना की आपने पहले और अब के कवि की… पर आज के सभी ऐसे कवि नहीं हैं… कविता के ऊपर आपकी फोटो भी फिट है… हाँ, टापइंग में गलत हाथ पड़ गया और 'कवयित्री' से 'कवित्री' हो गया… हा हा !

रश्मि प्रभा... said...

कवि हो या कवयित्री - प्रतिस्पर्द्धा , पछाड़ने की ख्वाहिश उसे कवि और कवयित्री नहीं रहने देती . कहने को जो कह लें , लिख लें - पर उसे वटवृक्ष होना होता है या ओस की बूंद ...

Anju (Anu) Chaudhary said...

सुभाष जी गलती सुधार करवाने के लिए आभार

Fatan said...

हकीकत उजागर कर दी आप ने ऐसे लोगों की ढोल की पोल खोल दी अपनी बिरादरी से भगा डालेंगे अंजू दी

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ह्म्म, ऐसी तुलना वही कर सकता है जो दोनो जमानों के कवियों से मिल लिया हो। अनुभव बोलता है। :)

amit kumar srivastava said...

vaah...ji vaah...

विभूति" said...

स्पष्ट और रोचक व्याक्या कल और आज की.....

Anju (Anu) Chaudhary said...

रश्मि दीदी ..मैं आपकी बात से सहमत हूँ ....

इस कविता को मात्र व्यंग्य के रूप में लिखा हैं ....

RITU BANSAL said...

हा! हा !हा !..अच्छा व्यंग्य है..अनु जी..
kalamdaan.blogspot.com

vidya said...

:-)
रोचक चित्रण...
कवि बदल गए...मगर शुक्र है कविता वैसी ही है...दिल के करीब...
सस्नेह.

Rakesh Kumar said...

वाह! सुन्दर फोटो लगा जी.
आपकी कविता शानदार है.
लिखने का स्टाइल निराला है.

आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,अनु जी.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अच्छी प्रस्तुति,बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
अंजू जी,..शीर्षक के मुताबिक़ आपकी फोटो सही है,...
new post...वाह रे मंहगाई...

નીતા કોટેચા said...

bahut sahi kaha annu aaj ke kavi aur ekhako ka anubhav hame gujrati jagat me bhi hota hai aur bahut buri tarah bas sab chup rah jate hai kisi me sach bolne ki takat nahi.. tumhari himmat ki dad denio padegi ki itna kuch likh pai..badhiya hai ji..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छी हास्य रचना ..

Nirantar said...

pahle bhee aise hote honge
par samay kee gart mein chhup gaye
jo dikhtaa hai wo hee yaad rahtaa hai
nice impression aaj ke kavi kee tasveer bhee achhee lagee

Vandana Ramasingh said...

वाह ! अच्छा चित्रण किया है कवि का

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत बढ़िया सटीक पंक्तियाँ रची हैं..... और फोटो वो भी बड़ी अच्छी लगी :)

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

मधुर व्यंग्य...

amrendra "amar" said...

aapne to sabko ek baar phir se apne gireban me jhakne ko majbur ker diya........sasakt rachna ke liye hardikbadhai

kunwarji's said...

kya khoob kataaksh hai.....?


kunwar ji,

deewan-e-alok.blogspot.com said...

behad rochak lagi rachna anu ji.. behad accha laga padhna...

Jeevan Pushp said...

अरे वाह !बढ़िया तुलनात्मक रचना !
सुन्दर व्यंग !
आभार !

Yashwant R. B. Mathur said...

बिलकुल सटीक।


सादर

मुकेश कुमार सिन्हा said...

aajkal ke kavi.........:))
par kaviyatri ke bare ma nahi bataya...!!
pahle saari me rahti thi....
bada sa juda, aur aanchal hota tha...
aajkal ki .........
arre dekh lo upar hai na photo:)))

कुमार संतोष said...

सुन्दर प्रस्तुति.
खूबसूरत रचना !

Maheshwari kaneri said...

बहुत सही और सटीक....

Amrita Tanmay said...

उत्‍तम अभिव्‍यक्ति ।

आनंद said...

कट लेने में ही भलाई है ..... :)

nilesh mathur said...

बहुत सुंदर ...

nilesh mathur said...

बहुत सुंदर ...

avanti singh said...

sundr rachna.....apni photo dalne wali baat bhi pyaari lgi....acha likhti hai aap :)

दिगम्बर नासवा said...

Ye tulnatmak adhyan lajawaab hai ...

Pallavi saxena said...

सार्थक एवं सुंदर अभिवयक्ति...

बी.एस.गुर्जर said...

व्यंग भी और संदेश भी , हम जैसे कवियों के लिए ...बहुत उम्दा आपका बहुत -२ शुक्रिया इस पोस्ट के लिए ..धन्यबाद ....

Rakesh Kumar said...

आपकी प्रस्तुति को सुनीता जी की हलचल पर देखकर अच्छा लगा.

मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है जी.

Yashwant R. B. Mathur said...

आज 22/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति मे ) पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

मेरा मन पंछी सा said...

कल और आज के कवियो कि बहूत अच्छी तुलना कि है
बहूत खूब अंजू जी

डॉ टी एस दराल said...

अज़ी कवियों का हाल भी फिल्म स्टार्स जैसा रहा है ।
आज के कवि भी समझदार हो गए हैं ।

डॉ टी एस दराल said...

अज़ी कवियों का हाल भी फिल्म स्टार्स जैसा रहा है ।
आज के कवि भी समझदार हो गए हैं ।

अरुण चन्द्र रॉय said...

आज भी झोला लटकाए अपने सरोकार के लिए प्रतिबद्ध कवि हैं लेकिन ब्लॉग जगत और इन्टरनेट की दुनिया में नहीं मिलेंगे.... इन्टरनेट जगत में आपकी कविता के कवि मिलेंगे.... कविता और भी गंभीर हो सकती थी यदि मात्रा बाहरी आवरण पर कविता ना लिखकर कंटेंट पर भी ध्यान देतीं....

अनुपमा पाठक said...

कवि होना आसान है... कविमना होना आकाशकुसुम!

virendra sharma said...

बढ़िया कटाक्ष यथार्थ से साक्षात्कार .

सुनील गज्जाणी said...

bahut sunder tulnaatmak adyyan kiya hai aap ne naye aur varisth kaviyon ke madhy . sunder
sadar