मेरे बचपन की गलियाँ
अब मुझे नहीं पहचानती
वहाँ की धूप -छाँव जो
थी जीवन मेरा ...
अब भर देती हैं मन के
भीतर क्रंदन ही क्रंदन
बंदिशे जो अब और तब
भी लगती थी
मुझ पर ..
तान कर सीना मैं चलूँ
अपनी पिहिर की गलियों में
वो बात अब भी नज़र नहीं आती |
वहाँ के मेरे अनुपस्थित वर्ष
भर गए मौन मेरे इस सूने
जीवन में ...
और
जानती हूँ कि मृत्यु तक
मुझे ऐसे ही जीना होगा
सिर्फ ये ही सोच सोच कर
कि काश ......काश
ना रोका जाता मुझे
बाहर जाने से ,
ज्यादा पढ़ने से ,
स्वछंद विचरण से ,
बराबरी करने से ,
मुहँ खोलने से ,
जन्म से अब तक ,
ना रोका जाता
मुस्कुराने से ,
और बाद में
जीने दिया जाता मुझे
मेरी ही बेटी के संग
बिन गर्भपात के ,
मेरी ख्वाहिशों को
यूँ ना रौंदा जाता
किसी के अहम की खातिर
मुझे दर्द की सूखी नदी ना
दी जाती ...
मेरे अपनों के रहते हुए भी मैं ,
मूक तमाशा बनती रही,
मेरे सपनो का कत्ल हुआ ,
क्यूँ कि दुनिया के दूसरे छोर पर
समाज उनकी प्रतिक्रिया की
प्रतीक्षा कर रहा था ,
तभी मेरे मौन ने
अपनी ही गलियों से
एक दूरी बना ली
और बन कर अनजान
मैंने अपनी ही सोच की
एक अलग ही दुनिया बसा ली ||
अनु .....
अब मुझे नहीं पहचानती
वहाँ की धूप -छाँव जो
थी जीवन मेरा ...
अब भर देती हैं मन के
भीतर क्रंदन ही क्रंदन
बंदिशे जो अब और तब
भी लगती थी
मुझ पर ..
तान कर सीना मैं चलूँ
अपनी पिहिर की गलियों में
वो बात अब भी नज़र नहीं आती |
वहाँ के मेरे अनुपस्थित वर्ष
भर गए मौन मेरे इस सूने
जीवन में ...
और
जानती हूँ कि मृत्यु तक
मुझे ऐसे ही जीना होगा
सिर्फ ये ही सोच सोच कर
कि काश ......काश
ना रोका जाता मुझे
बाहर जाने से ,
ज्यादा पढ़ने से ,
स्वछंद विचरण से ,
बराबरी करने से ,
मुहँ खोलने से ,
जन्म से अब तक ,
ना रोका जाता
मुस्कुराने से ,
और बाद में
जीने दिया जाता मुझे
मेरी ही बेटी के संग
बिन गर्भपात के ,
मेरी ख्वाहिशों को
यूँ ना रौंदा जाता
किसी के अहम की खातिर
मुझे दर्द की सूखी नदी ना
दी जाती ...
मेरे अपनों के रहते हुए भी मैं ,
मूक तमाशा बनती रही,
मेरे सपनो का कत्ल हुआ ,
क्यूँ कि दुनिया के दूसरे छोर पर
समाज उनकी प्रतिक्रिया की
प्रतीक्षा कर रहा था ,
तभी मेरे मौन ने
अपनी ही गलियों से
एक दूरी बना ली
और बन कर अनजान
मैंने अपनी ही सोच की
एक अलग ही दुनिया बसा ली ||
अनु .....
33 comments:
गहन भाव समेटे हैं आपने अंजू जी...
नारी मन की जटिलताएं...कशमकश की सहज अभिव्यक्ति की है..
सादर.
बेबस नारी मन की मार्मिक व्यथा को बहुत ही सरल शब्दो में व्यक्त किया है..सुन्दर...
मार्मिक ,सहज अभिव्यक्ति.
गहरे जज्बात लिए सुंदर प्रस्तुति.
नारी मन की गहराइयों में छिपे कुछ सवालों को उकेरा है. बहुत मार्मिक और भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार .
बहुत ही मार्मिक चित्रण -------आभार
aaj ke samaaj me naari ki vyatha uski majbooriyon ka achcha chitran kiya hai....atisundar.
गहन भाव/ सहज अभिव्यक्ति.
मार्मिक
वाकई में बहुत टचिंग लिखा है आपने...
गहरे अहसास ! दिल को छूते हुए ....!
क्रप्या अन्यथा न लें ....
मेरे बचपन की "गालियाँ " शायद गलियाँ हों |
भूल-चूक लेनी देनी :-)क्षमा !
शुभकामनाएँ!
नारी मन की व्यथा को गहनता से उकेरा है
शुक्रिया ...अशोक जी ...ऐसे ही गलतियाँ बताते रहे ...आभार
मन की समवेदनाओं को मार्मिक शब्द दिये हैं ... सुंदर प्रस्तुति
नव संवत्सर का आरंभन सुख शांति समृद्धि का वाहक बने हार्दिक अभिनन्दन नव वर्ष की मंगल शुभकामनायें/ सुन्दर प्रेरक भाव में रचना बधाईयाँ जी /
गहरे एहसास लिए सुंदर कविता. . मार्मिक , सहज अभिव्यक्ति.
नारी मन की पीड़ा की बहुत सशक्त प्रस्तुति...बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी..
प्रभावी...स्पर्शी रचना...
सादर.
bachpan ki galiyan to hamari bhi suni ho gayee Anju...!!
ham bhi to apne gawon ke suandhe mahak se bahut duuur aakar bas gaye hain..!
par sach me bahut khubsurat dard darshaya aapne..:)
वहाँ की धूप -छाँव जो
थी जीवन मेरा ...
अब भर देती हैं मन के
भीतर क्रंदन ही क्रंदन
बंदिशे जो अब और तब
भी लगती थी
ya fir ....
वहाँ के मेरे अनुपस्थित वर्ष
भर गए मौन मेरे इस सूने
जीवन में ...
dard dikh raha hai...!!
मन की पीड़ा क शब्दों में उतारा है आपने ... पर इस परिवर्तन के नियम को तो झेलना ही होता है सभी को ...
नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
तभी मेरे मौन ने
अपनी ही गलियों से
एक दूरी बना ली
और बन कर अनजान
मैंने अपनी ही सोच की
एक अलग ही दुनिया बसा ली ||
...
यही होता है अंजू जी ... लोग अपना घरौंदा बना लेते हैं ..और एक अभेद्य किले में खुद को कैद कर लेते हैं !
नारी ह्रदय की पीडा का सहज चित्रण्।
तभी मेरे मौन ने
अपनी ही गलियों से
एक दूरी बना ली
और बन कर अनजान
मैंने अपनी ही सोच की
एक अलग ही दुनिया बसा ली ||
अपने मन के भावों को प्रकट करने का यह तरीका अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
nari man ka satic chitran.....
bahut hi sundar rachna....
nari man ka satic chitran.....
bahut hi sundar rachna....
nari man ka satic chitran.....
bahut hi sundar rachna....
आभार ।
नारी मन के भाव..उसकी पीड़ा को बहुत ही कोमलता से उभारा है..
बहुत ही गहन भाव अभिव्यक्ति....
देर से आये...मुआफी....उम्दा अभिव्यल्ति...वेदना उभर कर आई...लिखते रहें....हम पढ़ रहे हैं...भले कमेंट में देर हो जाये. :)
वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब अंजू जी
सुंदर रचना,बेहतरीन गहन भाव की प्रस्तुति,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
नारी पीड़ा की मार्मिक प्रस्तुति, जो हृदय को
आन्दोलित करती है।
मार्मिक अभिव्यक्ति
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