(डायरी के पन्ने ....जो कहानी संग्रह के रूप में लिखे जा रहें हैं ....उसे कुछ हिस्से साथ साथ यहाँ ब्लॉग पर आप सबके साथ साँझा कर रही हूँ .....चित्र गुगल से लिया गया है )
प्रिय!तुम अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए, ना जाने कैसे कैसे हथकंडे अपनाते हो |तुम जिंदगी के २ पड़ाव पार चुके हो, पर अब जब तुम्हें जीवन में एक स्थाई मुकाम मिला है तो ...मुझे मेरे जीवन की हर बात सोचने का मन करता है | क्यों,कब और कैसे पूरी जिंदगी बस घर के झमेलों में ही निकल गई | तुमने अपना स्थान पा लिया और मुझे, अपने लिए सोचने का वक्त ही नहीं मिला |
शादी हुई और शादी होते ही नई दुल्हन के कोई चाव देखने को नहीं मिले, तो मन टीस उठी, अपेक्षाएँ आहत हुई, जब जब कुछ देखा या सुना तो बस हर किसी को मुझे से कोई ना कोई उम्मीद या शिकायत ही रही ,मन और तन से मैं बार-बार टूटती रही ,फिर भी एक गहरी ख़ामोशी मेरे ही भीतर ..मुझ से ये सवाल जरुर करती थी कि ''यार!(मेरा तकिया कलाम) क्या मैं ऐसी हूँ कि हर किसी को मुझ से सिर्फ शिकायत रहती है ''|
मन में विचारों का उद्गम जब भी हुआ है तो हमेशा नकारात्मक सोच ही सबसे पहले मन में घर करती है |सबके सामने, मुझे अपने आप को साबित करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी ये कोई भी आम गृहणी आराम से समझ सकती है |कुछ सपने पूरे और कुछ अधूरे ही यादों के बस्ते में कैद पड़े हैं जो बाहर आने ले लिए अपने आप में मंथन मचाए हुए हैं ..और हर बार मेरा खुद से ये सवाल होता है कि '' यार! ये सपने इतना शोर क्यों करते हैं ?''
वास्तविक जीवन में कोई परेशां करे तो समझ में आता है ...पर ऐसे यूँ जाग कर सपने देखना और उनके पूरे होने की उम्मीद करना सत्य के धरातल पर कुछ मुमकिन हो ...ऐसा लगता तो नहीं है | मैं बहुत सपने देखती आई हूँ ..पर हर सपना पूरा हो ...ऐसा जरुरी तो नहीं है ना |
मेरी समस्या, मेरे शब्द और मेरी सोच है, जो मुझे कदम-कदम पर दुर्बल बनाती आई है,पर उसके बाद भी मैं बहुत अधिक यथार्थ और आशावादी हूँ| जीवन में कुछ भी हो जाने की स्थिति बहुत देर तक मुझ पर हावी नहीं रहती शायद ये ही मेरे जीवन का मूल-मंत्र है कि ''कुछ भी हो जाए,बस आगे बढ़ो'' ||
पर मेरी सबसे बडी सोच'' तुम '' हो कि तुम कब मुझे खुद सा समझोगे कि '' तुम्हारे जीवन में 'मैं कौन हूँ ' तुम्हारे लिए ?'' यह प्रश्न जाने-अनजाने हमारे जीवन में मुझे परेशां करने चला आता है | किन्तु मन में ये विचार भी बार-बार आता है कि क्या फर्क पड़ता है कि 'मैं कौन हूँ सिवाए इसके कि मेरा एक नाम है जो अब तुम से जुड़ चुका है और मैं एक शख्सीयत हूँ जिस से मैं अपने परिवार से जुड़ी हूँ' |
मैं खुद से मौज-मस्ती वाला जीवन जी रही हूँ ये सोच कर मुझे क्या जरुरत है इस बेकार की सोचों के झंझट में पड़ने की ...फिर भी पता नहीं क्यों एक अनचाही उदासी मेरे मन को घेर लेती है | फिर भी प्रिय ! मेरे पास जन्मों से संचित प्रेम और अपनेपन के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं जो मैं तुम्हें और परिवार को समर्पित कर सकूँ, पर मेरी इस दुनिया के बाहर भी एक दुनिया ओर है ...मेरी सोच और मेरे शब्दों की दुनिया...जिसे शायद ही आप कभी समझ सको,प्रिय !
(आगे भी सफर ऐसे ही जारी रहेगा ....मेरे साथ अंजु(अनु) चौधरी )
प्रिय!तुम अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए, ना जाने कैसे कैसे हथकंडे अपनाते हो |तुम जिंदगी के २ पड़ाव पार चुके हो, पर अब जब तुम्हें जीवन में एक स्थाई मुकाम मिला है तो ...मुझे मेरे जीवन की हर बात सोचने का मन करता है | क्यों,कब और कैसे पूरी जिंदगी बस घर के झमेलों में ही निकल गई | तुमने अपना स्थान पा लिया और मुझे, अपने लिए सोचने का वक्त ही नहीं मिला |
शादी हुई और शादी होते ही नई दुल्हन के कोई चाव देखने को नहीं मिले, तो मन टीस उठी, अपेक्षाएँ आहत हुई, जब जब कुछ देखा या सुना तो बस हर किसी को मुझे से कोई ना कोई उम्मीद या शिकायत ही रही ,मन और तन से मैं बार-बार टूटती रही ,फिर भी एक गहरी ख़ामोशी मेरे ही भीतर ..मुझ से ये सवाल जरुर करती थी कि ''यार!(मेरा तकिया कलाम) क्या मैं ऐसी हूँ कि हर किसी को मुझ से सिर्फ शिकायत रहती है ''|
मन में विचारों का उद्गम जब भी हुआ है तो हमेशा नकारात्मक सोच ही सबसे पहले मन में घर करती है |सबके सामने, मुझे अपने आप को साबित करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी ये कोई भी आम गृहणी आराम से समझ सकती है |कुछ सपने पूरे और कुछ अधूरे ही यादों के बस्ते में कैद पड़े हैं जो बाहर आने ले लिए अपने आप में मंथन मचाए हुए हैं ..और हर बार मेरा खुद से ये सवाल होता है कि '' यार! ये सपने इतना शोर क्यों करते हैं ?''
वास्तविक जीवन में कोई परेशां करे तो समझ में आता है ...पर ऐसे यूँ जाग कर सपने देखना और उनके पूरे होने की उम्मीद करना सत्य के धरातल पर कुछ मुमकिन हो ...ऐसा लगता तो नहीं है | मैं बहुत सपने देखती आई हूँ ..पर हर सपना पूरा हो ...ऐसा जरुरी तो नहीं है ना |
मेरी समस्या, मेरे शब्द और मेरी सोच है, जो मुझे कदम-कदम पर दुर्बल बनाती आई है,पर उसके बाद भी मैं बहुत अधिक यथार्थ और आशावादी हूँ| जीवन में कुछ भी हो जाने की स्थिति बहुत देर तक मुझ पर हावी नहीं रहती शायद ये ही मेरे जीवन का मूल-मंत्र है कि ''कुछ भी हो जाए,बस आगे बढ़ो'' ||
पर मेरी सबसे बडी सोच'' तुम '' हो कि तुम कब मुझे खुद सा समझोगे कि '' तुम्हारे जीवन में 'मैं कौन हूँ ' तुम्हारे लिए ?'' यह प्रश्न जाने-अनजाने हमारे जीवन में मुझे परेशां करने चला आता है | किन्तु मन में ये विचार भी बार-बार आता है कि क्या फर्क पड़ता है कि 'मैं कौन हूँ सिवाए इसके कि मेरा एक नाम है जो अब तुम से जुड़ चुका है और मैं एक शख्सीयत हूँ जिस से मैं अपने परिवार से जुड़ी हूँ' |
मैं खुद से मौज-मस्ती वाला जीवन जी रही हूँ ये सोच कर मुझे क्या जरुरत है इस बेकार की सोचों के झंझट में पड़ने की ...फिर भी पता नहीं क्यों एक अनचाही उदासी मेरे मन को घेर लेती है | फिर भी प्रिय ! मेरे पास जन्मों से संचित प्रेम और अपनेपन के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं जो मैं तुम्हें और परिवार को समर्पित कर सकूँ, पर मेरी इस दुनिया के बाहर भी एक दुनिया ओर है ...मेरी सोच और मेरे शब्दों की दुनिया...जिसे शायद ही आप कभी समझ सको,प्रिय !
(आगे भी सफर ऐसे ही जारी रहेगा ....मेरे साथ अंजु(अनु) चौधरी )
56 comments:
मन की कहती सुनती अपनी ही बात ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...जारी रहे
यही तो शायद हर नर मन की सोच है...ह्रदय स्पर्शी रचना। लिखती रहिए आगे भी पढ़ने का इंतज़ार रहेगा। शुभकामनायें...:)
wah re :)
पर मेरी सबसे बडी सोच'' तुम '' हो कि तुम कब मुझे खुद सा समझोगे कि '' तुम्हारे जीवन में 'मैं कौन हूँ ' तुम्हारे लिए ?
behtareen rachna...
आप बिलकुल मेरे हिस्से की बात भी लिख दीं अंजू जी.,, मैंने भी कहानी लिखी है एक ,कितनी समानता है इन अलग अलग लिखे दो कहानियों की.. आश्चर्य हो रहा है..क्या हम औरतें एक जैसे मन रखती हैं ...एक जैसे दिल होता है ...
बहुत सुन्दर ..!!
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रच दिया आपने.........
सुन्दर अति सुन्दर ...कितनी समानता है मेरे लिखे एक कहानी से ...उफ्फ्फ...क्या हम औरतें एक जैसी सोचती है , आश्चर्य हो रहा है अलग अलग दो जगह लिखी कहने के कुछेक अंश एक दुसरे से कितना मिलता है ...
लिखते रहिये अच्छा लग रहा ...
आदरणीया
सादर प्रणाम |
मैं बहुत लेखकों कों पढता हूँ,पर सबका पढ़ा ..कभी ऐसा एइसा एहसास नही हुआ ,की मन से ...अंतर्मन से खुशी हुयी |
आप पहिली ऐसी लेखिका और कवियत्री हैं |जिनकी रचनाये आदमी की सोच पर हावी होने के साथ साथ उसे ...उसकी सोच तक कों बदल सकती हैं |
बेहद प्रभावशाली लेखन |
बेहद सुंदरता के कही गयी बातेगहरे उतर कर कुछ तो असर करेंगी बधाई
बहुत सटीक और मार्मिक कहानी.
रामराम.
इस दुनिया से बाहर भी एक दुनिया... जो देती रहती है संबल सदा!
लिखे जा रहे संग्रह के लिए शुभकामनाएं!
सुंदर अभ्व्यक्ति !
bahut khubsurat post
बहुत खूब,मन की बात कहती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: तेरी याद आ गई ...
नारी मन के अंतर्मन को व्यक्त करती बढ़िया रचना.... शुभकामना ..
man ki bato ki sundar abhivyakti
सब अपने-अपने ढंग के हैं यहाँ, आपकी सोच और शब्दों की दुनिया आबाद रहे,क्योंकि जब तक आप हैं ,सब अनायास होता जायेगा -कोई क्यों सोचे कि आपका रोल क्या है!
.बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत गहन और बहुत सटीक बात कह दी आप ने कहानी के माध्यम से..
टिप्पणी स्पैम में है क्या?
रामराम.
दो और दो पांच का खेल, ताऊ, रामप्यारी और सतीश सक्सेना के बीच
sahaj aur sundar abhivyakti...
भारतीय गृहणी की कहानी अक्सर मेरी पत्नी यही बात मुझसे कहती है
अंतस को छूते गहरे अहसास...बहुत सुन्दर
नहीं जी कोई भी टिपण्णी स्पैम में नहीं है ताऊ जी
गृहिणियों की इस दुनिया के बाहर भी एक दुनिया है शब्दों की , जिसे समझते कम है लोग !
बहुत अपनी सी लगी अभिव्यक्ति !
aapne naari man ke andar ghumadte ehsaason ko ek sarthak abhvyakti
dee hai.
अनु जी, यह मानव मात्र की कहानी है..हर कोई यही सोचता है कि उसे समझने वाला कोई नहीं है..जबकि हकीकत यह है कि इन्सान खुद को ही नहीं जानता..जो स्वयं की यात्रा पर निकल जाता है उसे हर कोई अपना सा एक यात्री लगता है..
....फिर भी प्रिय ! मेरे पास जन्मों से संचित प्रेम और अपनेपन के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं जो मैं तुम्हें और परिवार को समर्पित कर सकूँ, पर मेरी इस दुनिया के बाहर भी एक दुनिया ओर है ...मेरी सोच और मेरे शब्दों की दुनिया...जिसे शायद ही आप कभी समझ सको,प्रिय ! ---अस्तित्व की खोज में---सुन्दर अभिव्यक्ति !
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मन का हौसला बुलंद रहे .... शब्द सामर्थय कभी कम न हो ..... मन के भावों को उजागर करती गहन प्रस्तुति
बहुत यथार्थवादी अभिव्यक्ति
Bahut sunder or dil ko chune waali post.
Bahut sunder avam dil ko chune waali post.
Bahut sunder or dil ko chune waali post.
भावों को समझा जा सकता है..
जीवन यथार्थ से भरी प्रेरक कहानी ...
dil ko chhutu hui
बहुत अपनी सी लगी ....
bahut kuch bhavo ko vykt karti .............
बहुत सुन्दर रचना...सीधे दिल को छू लेती है...
बहुत सुन्दर रचना...सीधे दिल को छू लेती है...
''कुछ भी हो जाए,बस आगे बढ़ो''
बहुत अच्छा लगा पढ़कर
साभार !
didi hum sab ki kahani likh di apne....ye prashn ka kabhi koi uttar milta hi nahi....fir bhi hum man kisi na kisi tarah behla hi lete hain......
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
खुद से की हुई बातें ... पर जब प्रेम है ... मस्ती है ... प्रवाह है तो ऐसा काहे सोचना ... जो नहीं है उसके बारे में, या जो नहीं मिला उसकी टीस जरूर उठती है ... पर जो मिला, इतना ज्यादा मिला उसको याद रखना अच्छा रहता है ... कई बार बस "थोड़ा सा न मिलना" की याद ... इतना कुछ मिलने के सुख को कम कर देता है ...
मन से लिखी मन की पांती
बहुत खूब | सुन्दर अभिव्यक्ति
जीवन में आशावादी ही रहना चाहिए , सारे सपने कभी किसी के पूरे नही होते , कुछ अधूरे रह ही जाते है, अंजू जी सच में ये व्यथा ही है की हम एक दुसरे के मनोभावों को अच्छे से समझ नही पाते ,अगर समझ ले तो बहुत सारी परेशानियों का हल हो जाये
खूबसूरत रचना...
नारी मन को व्यक्त करना तो कोई तुमसे सीखे .. शब्द नहीं है कि मैं कुछ कहूँ.. बस सलाम कबूल करो .
विजय
एक बार देखो , दर्पण में ,
खुद से ही कुछ बात करो
जीवन भर का लेखा जोखा
जोड़ के , सारी बात करो !
खाना पीना और सो जाना, जीवन से यह कैसी प्रीत ?
मरते दम तक साथ निभाएं,कहाँ से लायें ऐसे मीत !
मेरी समस्या, मेरे शब्द और मेरी सोच है, जो मुझे कदम-कदम पर दुर्बल बनाती आई है,पर उसके बाद भी मैं बहुत अधिक यथार्थ और आशावादी हूँ| जीवन में कुछ भी हो जाने की स्थिति बहुत देर तक मुझ पर हावी नहीं रहती शायद ये ही मेरे जीवन का मूल-मंत्र है कि ''कुछ भी हो जाए,बस आगे बढ़ो'' ||
पर मेरी सबसे बडी सोच'' तुम '' हो कि तुम कब मुझे खुद सा समझोगे कि '' तुम्हारे जीवन में 'मैं कौन हूँ ' तुम्हारे लिए ?'' यह प्रश्न जाने-अनजाने हमारे जीवन में मुझे परेशां करने चला आता है | किन्तु मन में ये विचार भी बार-बार आता है कि क्या फर्क पड़ता है कि 'मैं कौन हूँ सिवाए इसके कि मेरा एक नाम है जो अब तुम से जुड़ चुका है और मैं एक शख्सीयत हूँ जिस से मैं अपने परिवार से जुड़ी हूँ' |.....निशब्द करती रचना
यही तो होता है जब कोई मन की ना समझे। ….बहुत सुन्दर
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - एकला चलो पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
जो अनायास मिल गया और यह भी पता है कि यह सिर्फ़ हमारा है ,जब तक है हमारे लिये ही तो उसके लिये कोई सोचने-समझने का यत्न क्यों करेगा कोई .थोड़ा सा बचा रहे अपने लिये - लेखन में व्यक्त होने के लिए ही सही ..; हम लोग परस्पर पढ़ते रहेंगे!
ऐसा लगा कि आप ने मेरे दिल की बात अपनी कलम से लिख दी हो अंजू जी .. बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर
shayad ham sabhi ek si hai --bas likh kar jivit rahne ka pryas karrahi hai -apne shabdo ki dunia me khud ko talash karte ham
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